भाजपा में कोई क्यों याद रखेगा सुहास को…
⚫ पार्टी की पुरानी पीढ़ी के अनुभव एवं समर्पण को आपने फूंक मार कर उड़ा दिया। यह वह कार्यकाल रहा, जिसमें श्रेष्ठ कार्यकर्ता अकाल मौत के शिकार बना दिए गए। जिसमें काम करने वालों को घर बिठा दिया गया और नाकाम तथा निकम्मों की फौज को प्रश्रय दिया गया। आपने तो पार्टी को उस दिशा की तरफ धकेल दिया था, जहां संशय और निराशा के सिवाय और कुछ था ही नहीं। संवाद एवं संपर्क भाजपा के संगठन की रीढ़ रहे हैं। ⚫
हेमंत भट्ट
एक किस्सा याद आया। एक तत्कालीन विधायक को कर्मचारियों के तीखे विरोध का सामना करना पड़ा था। वह धमकियां और धुड़कियां सुनते रहे। करीब एक घंटे तक लगातार उनके साथ यह सुलूक होता रहा। फिर भी विधायक महोदय उस कुर्सी से उठ कर वहां से जाने का नाम ही नहीं ले रहे थे। काफी समय बाद वह कुर्सी छोड़कर बाहर निकल गए। इस देरी की वजह बहुत कम लोगों को पता चल सकी। दरअसल विवाद के दौरान नेताजी इस कदर डर गए थे कि उनका पायजामा गीला हो गया था। संभवत: इसी के चलते वह तब तक कुर्सी से नहीं उठे, जब तक वहां से इस गीलेपन की निशानी नहीं मिट गयी। उनकी यह कोशिश नाकाम रही और उस कुर्सी को धोने के बाद भी ऑफिस के कचराघर के हवाले कर दिया गया। इस घटनाक्रम को जानने वालों को यह यकीन हो गया था कि धुले जाने के बाद भी कुर्सी सड़ांध मार रही है।
एक कुर्सी से असह्य बदबू
यह कुर्सी और सड़ांध के ऐसे ही किस्से की पुनरावृत्ति का समय है। प्रदेश भाजपा मुख्यालय से हुई एक रुखसती के बाद एक कुर्सी से असह्य बदबू उठने की बात कही जा रही है। मामला 2016 से लेकर बाद वाले करीब छह साल तक का है। जिक्र प्रभावी पथ संचलन वाले संघ के एक प्रभावी चेहरे के चर्चित किस्म के पद संचलन का है। जिन हजरत की बात हो रही है, वह तमाम विवादास्पद हरकत के बाद भी किस्मत की खा रहे हैं। अब वह संस्कारधानी जबलपुर में एक और कुर्सी पर बैठकर मध्यप्रदेश सहित छत्तीसगढ़ में बौद्धिक किस्म की गतिविधियों पर नजर रखेंगे। इसके साथ ही इनकी पुरानी कुर्सी से उपजी दुर्गन्ध ने भी फिर जोर पकड़ लिया है। उस पर बने गीलेपन के वह दाग फिर उभर आये हैं, जो छह साल से अधिक समय की देन थे।
पार्टी की प्रतिष्ठा का लहू बहाया निर्दयता के साथ
उस दौरान कभी पद की मर्यादा पर पानी फेरा गया तो कभी पार्टी की प्रतिष्ठा का लहू निर्दयता के साथ बहाया गया। इसी दौरान कभी मेहनती पार्टीजनों के पसीने को उनके पीड़ा से टपके आंसुओं में बदल कर इस कुर्सी को गीला किया गया तो कभी कुशाभाऊ ठाकरे से लेकर माखन सिंह के कार्यकाल वाली भाजपा की विरुदावली को किसी रुदाली में बदलकर विलाप करने के लिए अभिशप्त कर दिया गया। इस सबको झेलने और समझने वाले अब भौंचक अंदाज में देख रहे हैं कि ऐसी करतूतों का भी पुरस्कार मिल रहा है। जिनकी बुद्धि ने सआशय पार्टी को शक्ति प्रदान करने में साथ नहीं दिया, वह अब बौद्धिक के दरोगा होने जा रहे हैं। वह भी उन दो प्रदेशों के लिए, जहां अगले साल विधानसभा चुनाव हो रहे हैं और इन साहब की साहबी के दौर में ही भाजपा मध्यप्रदेश में वर्ष 2018 का चुनाव जीतते-जीतते हार गयी थी।
जमीनी सक्रियता का इंतजार ही करते रहे कार्यकर्ता
आप जिन मंसूबों (‘षड़यंत्र’ भी कह सकते हैं) के साथ प्रदेश में अवतरित हुए, उन्हें आपने हर सीमा के अतिक्रमण के साथ पूरा करने में कोई कसर नहीं उठा रखी। विंध्य क्षेत्र के समर्पित संगठन मंत्री चंद्रशेखर कुमार आपके पहले शिकार बने। लंबे समय तक भाजपा के कार्यकर्ता आपसे जमीनी सक्रियता का इंतजार ही करते रहे। तो उन्होंने पहला निर्णय अतुल राय को सह संगठन मंत्री बनाकर किया। पहले ही चरण में प्रदेश संगठन को एक दी गई मालगुजारी मानकर अतुल राय के रूप में एक मुनीम और लठेत की नियुक्ति माना गया ।अहंकार, सत्ता और नव धनाढ्य के दिखावे का शर्मनाक सार्वजनिक प्रस्तुतीकरण किया गया। जल्दी ही अतुल राय अपने कर्मों की गति को प्राप्त हुए। पर इन्होंने इस आत्मघाती निर्णय से कुछ नहीं सीखा । कोई प्रयास नहीं करना, आराम तलब की जिंदगी और पूरे समय मोबाइल के जरिए सोशल मीडिया पर व्यस्त रहने को ही आपने संगठन की कार्यपद्धती माना।
जीता हुआ चुनाव हार गई भाजपा
टिकट और पद देने में जातिवाद और पट्ठावाद भाजपा संगठन के नए पैमाने बने। 2008 में मध्य प्रदेश में भाजपा संगठन के कारण हारा हुआ चुनाव भाजपा ने जीता था पर 2018 में संगठन के ही कारण जीता हुआ चुनाव भाजपा हार गई। आपकी जमीनी पकड़ नहीं होने ,पट्ठावाद ,जातीयता और योग्य लोगों को व्यवस्था से बाहर करने की घटिया रणनीति कायम रही।
प्रायोजित तरीके से थपथपा लीजिए अपनी पीठ
फिर तो आपने ऐसे-ऐसे और उन-उन लोगों के आखेट को अपने मनोरंजन का केंद्र बना दिया, जो लोग सही अर्थ में भाजपा और संघ की अवधारणा का अनुरूप काम कर रहे थे। आप स्वयं तथा प्रायोजित तरीके से अपनी पीठ थपथपा लीजिये कि आपने युवाओं को अवसर दिया, किंतु उसी थपथपाने की प्रक्रिया में वह धूल भी तो उड़ी, जिसमें पार्टी की पुरानी पीढ़ी के अनुभव एवं समर्पण को आपने फूंक मार कर उड़ा दिया। यह वह कार्यकाल रहा, जिसमें श्रेष्ठ कार्यकर्ता अकाल मौत के शिकार बना दिए गए। जिसमें काम करने वालों को घर बिठा दिया गया और नाकाम तथा निकम्मों की फौज को प्रश्रय दिया गया। आपने तो पार्टी को उस दिशा की तरफ धकेल दिया था, जहां संशय और निराशा के सिवाय और कुछ था ही नहीं। संवाद एवं संपर्क भाजपा के संगठन की रीढ़ रहे हैं। मगर आपने संवाद को मोबाइल फोन पर बतियाने तथा संपर्क को केवल अपने हितों के साथ संसर्ग में ही परिवर्तित कर दिया। ऐसे में आपका चले जाना जितना शुभ संकेत था, आपका फिर मूल संगठन में चले आना उससे भी अधिक भयावह आशंकाओं से भर दे रहा है।
सच को पहचानने में भी एक बार फिर चूक कर गया संघ
उस कुर्सी के गीलेपन और सड़ांध की कसम, आप ने जो कुछ भी किया, वह न किसे सुहास का प्रतीक था और न ही सुवास का। खैर, आपको इस सबसे कोई अंतर नहीं पड़ेगा। जिसके सच को पहचानने में संघ भी एक बार फिर चूक कर गया हो, उसके असत्य को नमन करने में ही खुद की भलाई है। मात्र इतना कहा जा सकता है कि कम से कम उस मातृ संगठन की तो लाज रख लीजिये, जिसने आपको वह बनाया, जिसके आप किसी भी दृष्टिकोण से लायक नहीं थे। आपकी जगह और कोई होता तो उसका अभिवादन ‘नमस्ते सदा वत्सले’ से करता, लेकिन आपके लिए तो ‘नमस्ते’ से ही काम चला रहा हूं । ‘संघ शक्ति कलियुगे’ का अर्थ होता है कि कलियुग में संगठन शक्ति ही प्रधान है। मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान तथा आपके पूर्ववर्तियों द्वारा कायम की गयी इसी शक्ति को आपने जिस तरह कलियुग की भेंट चढ़ाया, कभी उसकी याद कीजिएगा। और शायद इसलिए ये सवाल भी उठेगा कि भाजपा में आपके छह साल के कार्यकाल को कोई किस कारण से याद रख पाएगा।