मजदूर दिवस पर विशेष : मजदूर की चाहत

⚫ डॉ. नीलम कौर

नहीं माँगते महल दो महले
बस अपनी एक छत ही दे दो
मेहनत हम दिनभर करते हैं
उसकी तो पूरी मजूरी दे दो

छप्पन भोग का क्या करना
बस दो जून की रोटी दे दो
भरा रहेगा पेट हमारा तो
फिर चाहे कितनी ड्यूटी दे दो

कहने को तुम हो धनवान
पर दिल तुम्हारा नहीं दयावान
थोड़ी सी तिजोरी का धन
बन उदार हमें दे दो

ज्यादा की चाहत किसे है
दो जोड़ी कपड़े दे दो
घर बार तुम्हारा भरा
रहे ये दुआ है/
बस हमको हमारे
हिस्से की जमीं दे दो

वो जो ऊपर बैठा है, उसने तो
अपना सबकुछ दे डाला
फिर तुम क्यों कब्जा कर बैठे
सबको उनके हिस्से का दाय दे दो ।

डॉ. नीलम कौर

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