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कुछ खरी खरी : मतदाताओं का इशारा, समझे तो ठीक वरना विकल्प है हमारा, उस को पगडंडी से एट लेन तक लाने का माद्दा

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हेमंत भट्ट

मतदाताओं के बूते कुर्सी पर बैठने वाले यह भूल जाते हैं कि मतदाताओं के प्रति हमारे भी कुछ कर्तव्य हैं लेकिन मतदाता उनकी भूल को कभी कबूल नहीं करते हैं और वे बदलाव की बयार चला देते हैं। काफी सालों तक जनता ने आशीर्वाद दिया लेकिन मतदाताओं को नगर सरकार से कुछ भी हासिल नहीं हुआ वही समस्याएं मुंह बाए खड़ी है। अधिकारी सुनते नहीं हैं। जनप्रतिनिधि ध्यान देते नहीं। आखिरकार 13 जुलाई को मतदाताओं ने अपने मन की बात हल्के झटके के साथ सुनाई। वरना सालों से मन मंदिर में तो बस एक ही पार्टी का नाम था लेकिन जिम्मेदारों ने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई और मतदाताओं ने उनकी कुर्सी हिलाई। मतदाताओं का इशारा जिम्मेदार समझ जाए तो ठीक है वरना उनको दूसरा सहारा लेना भी आता है। अभी हल्का झटका दिखा दिया है। जीत के अंतर को काफी कम कर दिया है। यह संकेत समझना जरूरी है। इसके बावजूद भी शहर के जिम्मेदार सबक सीखने को तैयार नहीं हैं। परिणाम के चार दिन बाद शहर की सफाई स्थिति और बिगड़ गई है। जिंदगी चारों ओर नजर आ रही है। सड़कों पर मवेशी घूम रहे हैं। गंदगी और गोबर है। शहर के बाहरी क्षेत्र में ही नहीं अपितु धानमंडी में भी ऐसे नजारे आम हैं। वैसे देखा जाए तो रतलाम के मतदाताओं को भी राजस्थान की तर्ज पर ही मतदान करने की शुरुआत करना होगी। हर 5 साल में सरकार को बदल देते हैं। ऐसा ही रतलाम के मतदाता भी करेंगे, तभी उनकी सुनी जाएगी। पार्षद की कुर्सी को तो बहुत ही समझ बैठे हैं।

महापौर चुनाव जिताने के लिए भाजपाइयों को एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ा। पार्षद उम्मीदवार को अपने बूते वार्ड में जीतने का मंत्र देने वाले स्वयं भी इस बार न केवल महापौर अपितु पार्षदों के लिए भी वार्ड में घूमे। बावजूद इसके विपक्षी दल ने भाजपा की जड़े तो हिला दी है।

स्थिति की लगी कमजोर सब ने लगाया अपना अपना जोर

कांग्रेस महापौर उम्मीदवार की घोषणा होने के बाद ही भाजपाइयों को लगने लगा था कि इस बार जीत आसान नहीं होगी। इसलिए बारी बारी से भाजपा संगठन प्रमुख और अन्य लोग आते रहे और कार्यकर्ताओं को पार्टी के हित में मतदान करवाने की घुट्टी पिलाते रहे। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बीडी शर्मा, भाजपा प्रदेश महामंत्री सबनानी प्रारंभिक दौर में आए। इसके पश्चात स्थिति नहीं संभली तो प्रदेश मुखिया मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को बुलाने के जतन शुरू हुए। उन की तारीख तय हुई। शहर में रोड शो निकला, तब जाकर कुछ लगा कि मुख्यमंत्री चौहान के आने के बाद शहर में भाजपाई माहौल हो गया है लेकिन फिर भी मन में खुटका तो था ही, इसलिए मतदान के ऐन पहले प्रदेश के वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा, पूर्व शिक्षा मंत्री पारस जैन सहित अन्य मंत्रियों ने भी शहर में डेरा जमाया और वार्ड में घूम घूम कर मतदाताओं को प्रभावित करने का जतन किया। इसकी शिकायत भी हुई।

केवल अपने दम पर कांग्रेस के उम्मीदवार

कांग्रेस द्वारा महापौर पद के लिए घोषित उम्मीदवार मयंक जाट ने अपने बलबूते ही चुनाव प्रचार करते हुए मतदाताओं से अपने मन की बात कही और मतदाताओं के सुझावों को मानते हुए अपना वचन पत्र भी बनवाया। मतदाताओं का सीधा सीधा जुड़ाव हुआ कांग्रेसी उम्मीदवार ने पूरे शहर भर में घूमते घूमते वहां की समस्याएं जानी और महापौर बनने के बाद उन को ठीक करने के लिए आश्वस्त भी किया। शहर के हर क्षेत्र में महापौर उम्मीदवार अपने तई प्रयास से ही कांग्रेस में जान फूंकने का जतन किया। आमजन भी महापौर पद के प्रत्याशी को करीब से जान पाए। उनके व्यवहार और कार्यप्रणाली से रूबरू हुए। धीरे-धीरे शहर भर में मतदाता ही माउथ पब्लिसिटी करते रहे कि वास्तव में कांग्रेस ने महापौर प्रत्याशी के पद पर दमदार व्यक्ति को उतारा है। शुरू से आखरी तक महापौर प्रत्याशी और क्षेत्र के लोग ही चुनाव प्रचार में डटे रहे। मतदान के 2 दिन पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ जरूर आए और रोड शो कर मतदाताओं को मतदान के लिए प्रेरित किया। शहर भर में पूर्व मुख्यमंत्री के रोड शो की चर्चा रही क्योंकि उसके 2 दिन पहले जो रोड शो हुआ था, उसमें इतना जनसैलाब नहीं था। कुछ माह पहले भी कमलनाथ महंगाई के विरोध में आमसभा लेने आए थे और सैलाना रोड से रैली निकली थी लेकिन उसमें गिनती के वाह नहीं थे जबकि इस बार सैलाब उमड़ पड़ा। इसे कहते हैं कांग्रेस को पगडंडी से एट लेन तक लाने का माद्दा रखना। साल की शुरुआत में ही जब पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ आए थे, तब शहर में रैली निकली थी, जिसमें वाहन काफी कम थी लेकिन साल के मध्य में जब पूर्व मुख्यमंत्री आए तो सैलाब उमड़ पड़ा। भले ही महापौर का चुनाव हारे हैं लेकिन बुलंद हौसले अभी बता रहे हैं कि विधानसभा में दमखम से उतरेंगे और उसकी तैयारियां अभी से शुरू हो गई है।

मतदाताओं ने जता दिए थे मंसूबे

जैसे-जैसे चुनाव प्रचार परवान चढ़ रहा था वैसे वैसे मतदाताओं का मन भी परिवर्तन की राह पर चलने लगा था। मतदाता इसलिए खासे नाराज और परेशान थे कि डेढ़ दशक से अधिक समय तक भाजपा का महापौर बनाने के बावजूद आम जन को सुविधाओं के लिए मोहताज होना पड़ा। बाजार में चाहे पार्किंग की समस्या हो या महिलाओं के लिए सुविधा घर की। दो-दो महिला महापौर ने भी महिलाओं की सुध नहीं ली जो कि बाजार में खरीदारी करने के लिए जाती है। खास दिक्कत तो ग्रामीण क्षेत्र से आने वाली महिलाओं के लिए थी। मुश्किल दौर में उन्हें दुकानदारों के घर में ही अपनी दुविधा का समाधान करना पड़ता था। लेकिन महिलाओं की इस समस्याओं को दो-दो महिला महापौर ने नजर अंदाज कर दिया। इसके अलावा जल वितरण व्यवस्था, सफाई व्यवस्था आदि सभी की दिक्कतों के चलते मतदाताओं ने मजा चखाने का मन बनाया और सबक सिखाते हुए महापौर की कुर्सी हिलाने की ठानी। भाजपा के लिए जो काफी आसान जीत थी उसे काफी मुश्किल बना दिया इसे कहते हैं दमदार उम्मीदवार। मतदाताओं को पता चल गया है कि युवा उम्मीदवार में दिल में शहर के लिए कुछ करने का जोश, जुनून, उत्साह और जज्बा है। राजनीति के पंडितों का कहना है कि कांग्रेस महापौर उम्मीदवार अब चुप बैठने वालों में से नहीं हैं, वे अपनी राजनीति की रणनीति बनाने में जुट गए हैं

उन्होंने गाए ऐसे गीत

नगर निकाय चुनाव में महापौर सहित वार्ड पार्षद में अपनी दावेदारी जताने वालों को येन केन प्रकारेण टिकट से हाथ धोना पड़ा। यहां तक कि पार्टी से निष्कासन की धमकी भी दे डाली। ऐसे तमाम लोगों को क्या ऑफर दिया यह तो वही जाने, लेकिन यह बात करते रहे कि पार्टी के सम्मान के लिए हम अपनी उम्मीदवारी वापस ले रहे हैं। पार्टी से बढ़कर कुछ नहीं है। हमारे लिए पार्टी ही सर्वोपरि है। ऐसे गीत गाने वाले महिला पुरुष उम्मीदवारों ने पार्टी के पक्ष में और विपक्ष में किसने क्या किया? यह तो जानकार जानते ही हैं और जिन्होंने उम्मीदवारी से हटाया वे भी जानते थे कि इसका खामियाजा तो भुगतना होगा। और वही हुआ भी। कई वार्ड में जहां कांग्रेस विजय हुई है, वहां पर भाजपा निर्दलीयों से भी हार गई। यही स्थिति भी चिंता का विषय है।

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