खरी-खरी : कार्रवाई की गाज जिम्मेदारों पर क्यों नहीं गिरती, आम जनता पर ही क्यों, इतनी सी कार्रवाई में फूले नहीं समा रहे जिले के मुखिया
हेमंत भट्ट
पिछले दिनों शहर में यातायात सुधार के नाम पर पौन किलोमीटर की सड़क ही जिम्मेदारों को नजर आई। बुलडोजर चला। अतिक्रमण तोड़ा ताकि यातायात व्यवस्थित हो सके लेकिन जिम्मेदारों को उन जिम्मेदारों लापरवाही नजर नहीं आई, जिनकी बदौलत अतिक्रमण की बाढ़ आई हुई है। अतिक्रमण की गाज गिरी तो केवल लोगों पर ही। मैदानी अधिकारी और कर्मचारी की बदौलत जिन लोगों ने चारों ओर अतिक्रमण कर रखे हैं, उस और जिला प्रशासन का कोई ध्यान नहीं है। जिला प्रशासन का मैदानी अमला कार्य करने में तो सुस्त है लेकिन माल जोतने में मस्त है। तभी तो फिर से सड़क पर उनके पैर पसरने लगे हैं। वजह साफ है कि गांधी दर्शन के चलते जिम्मेदारों के मुंह बंद हो जाते हैं। इतनी सी कार्रवाई में जिले के मुखिया फूले नहीं समा रहे हैं।
अतिक्रमण हटाने की मुहिम का शहर के अन्य मार्गों पर कोई असर नहीं हुआ है। चाहे स्टेशन रोड का चौराहा हो या फिर हॉट रोड। बाजना बस स्टैंड, हो या फिर लक्कड़पीठा या गणेश देवरी के पास ही तोपखाना वहां पर आज भी सीना ठोक कर दुकानदार अपना सामान सड़क पर, गाड़ी लगाकर अतिक्रमण कर रहे हैं। यातायात में व्यवधान पैदा कर रहे हैं। ऐसे तमाम अतिक्रमणकारियों पर वैसी ही कार्रवाई करनी चाहिए जो कि पिछले दिनों असामाजिक तत्वों पर की गई। उनके मकान तोड़े गए उनकी दुकानें तोड़ी गई क्योंकि ऐसे अतिक्रमण करने वाले भी उसी श्रेणी में आते हैं जिससे समाज में रहने वाले लोग प्रभावित हो रहे हैं। अतिक्रमण करने वाले ऐसे सभी लोग आदतन अपराधी से कमतर नहीं हैं। अतिक्रमण पसरा पड़ा है। उस सरकारी जमीन पर धन्ना सेठों का कब्जा है, जो कि आम जनता के उपयोग के लिए है। आवागमन के लिए है लेकिन प्रशासन की सह मानो या फिर जनप्रतिनिधि का आशीर्वाद, उनको कोई हिला नहीं सकता। इतने वह बाहुबली हो गए हैं। चंद लोगों के कारण पूरे शहर का यातायात ही नहीं, पूरा सिस्टम बिगड़ा हुआ है सुधारने के लिए कोई तैयार नहीं। बस नौटंकी, नौटंकी और नौटंकी के अलावा कुछ नहीं। तथाकथित इतने में ही खुश हो जाते और उनकी कार्यप्रणाली पर गुणगान करने लगते हैं। भाट बन जाते हैं। जबकि पूरा अमला ही उनकी कार्यप्रणाली, उनके व्यवहार से खफा है। करिंदों का तो यहां तक कहना ही की कहीं पर भी भौएं तानना अच्छी कार्यशैली और कार्यकुशलता का परिचायक नहीं है। जो जानकारी एक भृत्य में होती है, वह भी नहीं है। कार्य करवाने के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल ठीक नहीं।
वह केवल कुर्सी तोड़ने के अलावा कुछ नहीं कर रहे
यातायात सुधार के नाम पर केवल और केवल पौन किलोमीटर सड़क पर जिला प्रशासन ने पैदल मार्च किया, उसके बाद भूल गए सारे कामकाज। खास बात तो यह है कि जिले के मुखिया का अपने कर्मचारियों और अधिकारियों पर इतना भी दबदबा नहीं है कि वह मैदान में जाकर कार्य कर सकें क्योंकि वह तो पहले ही अपना जमीर बेच चुके हैं मक्कारी के लिए। शासन ने जिन्हें शहर, समाज और आमजन के प्रति जिम्मेदारी देकर नियुक्त किया है। वह केवल कुर्सी तोड़ने के अलावा कुछ नहीं कर रहे या फिर जहां पर उनका उल्लू सीधा हो रहा है, वही बात करते हैं। बाकी कि वह परवाह नहीं करते हैं। चाहे उनका एक शहर से दूसरे शहर तबादला करते रहो या निलंबित कर दो। उनकी सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता है क्योंकि उनको न तो काम करना आता है और ना ही वे करना चाहते हैं। बस पद और पावर के बल पर ताउम्र सरकारी जमाई बन कर जिंदगी बसर करना चाहते हैं, अपनी कार्यप्रणाली से नाम रोशन करना नहीं चाहते। वे तो अपने परिवार के लिए ऐशो आराम खरीदने की मशीन ही बने हैं।
मोटी तनख्वाह मिलने के बावजूद भी भ्रष्टाचार, भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचार
ऐसे सभी तमाम अधिकारियों कर्मचारियों पर मुखिया का कोई नियंत्रण नहीं है। तभी तो अदने से कर्मचारी भी बेखौफ होकर रिश्वत मांगते हैं। उन्हें पता है कि कुछ नहीं होगा और बड़े पद पर पदोन्नति मिलेगी। अच्छी मोटी तनख्वाह मिलने के बावजूद भी भ्रष्टाचार, भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचार को आगे बढ़ाने वाले ऐसे लोगों पर शिकंजा कसने में भी सफलता की सीढ़ी नहीं चढ़ पा रहे हैं।
नियमों का पालन करवाने में जिम्मेदार बेपरवाह
यातायात सुधार के नाम पर नजर आया केवल अतिक्रमण, मैजिक ऑटो वालों की मनमानी नहीं। यह वाहन वाले जब चाहे जहां चाहे खड़े हो जाते हैं चाहे चौराहा हो। सड़क हो या सवारी के चक्कर में खड़े रहते हैं और यातायात जाम होता है। जिम्मेदार नियमों का पालन करवाने में बेपरवाह बने हुए हैं। कलेक्टर कुमार पुरुषोत्तम के समय ठेला वालों और सब्जी विक्रेताओं को स्थान तय कर दिए थे कि वही बैठेंगे लेकिन नगर निगम वालों ने ठेले वालों से वसूली कर करके उन्हें शहर की सड़कों पर खड़े रहने की इजाजत दे दी और फिर से वही ढाक के तीन पात वाली कहावत चरितार्थ हो गई। जगह तो मिल गई लेकिन वहां पर बैठ नहीं रहे हैं। अब जब यह बैठेंगे नहीं तो फिर उनको वहां पर सुविधाएं कैसे मुहैया कराएंगे।
आम जनता परेशान, परेशान और परेशान
नगर निगम आयुक्त सोमनाथ झारिया ने दुकान के बाहर से सामान सजाने वालों पर कार्रवाई करते हुए सामान उठाने की नसीहत दी थी लेकिन वह नियम का पालन करवाने में भी जिम्मेदार लापरवाही बने रहे और दुकानदार न केवल सामान दुकानों के बाहर रख रहे हैं। अभी तो अतिक्रमण भी बढ़ा रहे हैं। न्यू क्लॉथ मार्केट में ही देख लीजिए 3-3 फीट की दुकानों को 6 से 8 फीट में तब्दील कर लिया है। हर बार लगातार नवरात्रि से दीपावली तक सड़कों पर कच्चा पक्का अतिक्रमण कर लिया जाता है मगर जिम्मेदार उनको टोकने को तैयार नहीं, रोकने को तैयार नहीं। इस तरह आम जनता परेशान, परेशान और परेशान हो रही है। शहर में कई सारे मार्केट बने हैं लेकिन पार्किंग की सुविधा नहीं है तो फिर जिम्मेदार आंख मूंदे क्यों बैठे रहे। जरूर आंख और मुंह और नियम का पालन करवाने के लिए उनके हाथ बांध दिए। परिणाम स्वरूप वाहनों की पार्किंग सड़कों पर और यातायात विभाग की बल्ले-बल्ले वे चालान बनाने के लिए तत्पर मतलब की चारों तरफ से परेशान केवल आमजन को ही होना है।
धन का धुला करने पर ही आमादा
शहर में मवेशियों का राज है इनके लिए भी नगर निगम में कानून कायदे निकाले थे तबेले हटाने की बात कही थी लेकिन बस केवल वह बातें वह कानून कायदे फाइलों में ही है या फिर फाइलों से केवल फायदों तक ही आए हैं। क्रियान्वयन तक मूर्त रूप नहीं ले पाए हैं। नतीजतन शहर मवेशियों की गंदगी से पटा पड़ा है। आप कितनी भी साफ-सफाई कर लो, मवेशी उसे गंदा करके जा रहे हैं। यह बात तो जिम्मेदार लोगों के लिए और भी बढ़िया है कि गंदगी की सफाई के लिए और योजना बनेगी। प्रोजेक्ट बनेगा। धन राशि आएगी। बटवारा होगा, मगर काम नहीं होगा, बस यही होता आया है। सरकारी कर्मचारी और अधिकारी धन का धुला करने पर ही आमादा रहते हैं इसके अलावा और कुछ नहीं।
मुख्य दरवाजा खुलवाने में ही अपनी नेतागिरी समझने लगे वे
गांधी उद्यान की ही बात ले ली जाए। कुछ महीने पहले ही गांधी उद्यान के बाहर की दीवारों पर प्लास्टर हुआ। लोहे की जालियां लगाई। रंग रोगन हुआ। सुंदरता बढ़ाई गई। लाखों रुपए खर्च किए कमीशन बटा, लेकिन पिछले पखवाड़े सुंदरता के आगे कमीशन खोरी का ताबूत तैयार हुआ और एंगल लगाकर पतरे ठोक दिए। शहर की सुंदरता, गांधी उद्यान की सुंदरता गई भाड़ में। नेता लोग केवल इसी में खुश हो गए कि मुख्य दरवाजा खुलवाने में सफल हो गए। जबकि गांधी उद्यान की सुंदरता को खर्चा करके ढक दिया गया ताकि गांधी उद्यान में कुछ भी होता रहे कोई देखने वाला नहीं चाहे वहां पर असामाजिक करती हो रहे हो। जब पहले ही पता था कि गोल्ड पार्क पीछे बनना है तो फिर गांधी उद्यान की दीवारों पर खर्चा करने की क्या आवश्यकता थी और यदि किया है तो उसे दिखाओ भी सही।