मुद्दे की बात : रतलाम कलेक्टर ने की सुरक्षा में चूक जानलेवा पगडंडी पर, यदि कुछ अनहोनी हो जाती तो…अन्य अधिकारियों ने भी मुंह नहीं खोला सुरक्षा इंतजाम को लेकर
हेमंत भट्ट
रतलाम, 15 दिसंबर। माना कि जिले के कलेक्टर नरेंद्र सूर्यवंशी आमजन की समस्याओं के समाधान के लिए काफी संवेदनशील है। लेकिन संवेदनशीलता का पालन करने के लिए जब जोश, जुनून और उत्साह हावी हो जाता है तो सुरक्षा में चूक होना लाजमी है, यह आमजन के लिए है। मगर कलेक्टर जैसे पद पर कार्यरत ऐसी व्यक्ति जब अपनी जान की सुरक्षा में चूक कर दें तो यह बहुत गंभीर मसला है। खास बात तो यह है कि उस दौरान अन्य अधिकारियों ने भी अपना मुंह नहीं खोला की सुरक्षा का इंतजाम जरूरी है। इससे ऐसा लगता है कि कानून का पालन करवाने वाले अधिकारी ही कानून का पालन नहीं करते हैं और नहीं उनकी आदत में है कि वे ऐसा कुछ करें इससे साफ जाहिर हो जाता है कि जिला प्रशासन के उच्च अधिकारी से लेकर अन्य अधिकारी भी दो पहिया वाहन पर बैठते या चलाते समय हेलमेट का उपयोग नहीं करते हैं।
बुधवार को कलेक्टर सूर्यवंशी जनजाति बहुल आदिवासी क्षेत्र सैलाना के बेड़दा ग्राम में पहुंचे। उन्होंने वहां पर ग्रामीणों से विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की। शासकीय योजनाओं की जानकारी ली। ग्रामीणों ने उन्होंने शिकायत भी की। उन्हीं शिकायतों के समाधान के चलते जब वे तालाब की समस्या को लेकर गंतव्य की ओर रवाना होने लगे तो उन्हें बताया गया कि वहां पर फोर व्हीलर नहीं जा सकती है। पगडंडी है। तो उन्होंने आव देखा न ताव तत्काल ग्रामीण की बाइक पर सवार होकर तालाब की ओर निकल पड़े, जबकि तालाब वाला मार्ग पगडंडी होने के बावजूद काफी पथरीला था। यहां तक कि पहाड़ी क्षेत्र था। चढ़ाव था। रास्ते में बड़े-बड़े पत्थर थे।
क्योंकि दोनों ने ही नहीं पहन रखा था हेलमेट
यहां पर बाइक चलाने वाला सारथी थोड़ा मजबूत था, तो कुछ अनहोनी हुई नहीं, वरना जब बाइक फिसलती तो कुछ भी हो सकता था। गंभीर चोट लग सकती थी क्योंकि ना तो वाहन चालक ने हेलमेट पहना और ना ही कलेक्टर साहब ने। यही सुरक्षा में सबसे बड़ी चूक हुई है जिसे नजरअंदाज कर दिया गया है।
समस्या के समाधान में कर गए जान की सुरक्षा में चूक
ग्रामीणों की शिकायत का त्वरित निराकरण करने के उद्देश्य से वे जानकी सुरक्षा में चूक कर गए और बिना हेलमेट के बाइक सवार के पीछे न सिर्फ बैठे बल्कि वाहन चलाने वाले को भी हेलमेट पहनने के लिए प्रेरित नहीं किया। इसके अलावा अन्य आला अफसरों ने भी ऐसी कोई सीख देना मुनासिब नहीं समझा जिससे कि सुरक्षा के इंतजाम हो सके। इससे तो यही लगता है कि न केवल कलेक्टर बल्कि जिला प्रशासन के आला अफसर भी दो पहिया वाहन चलाने के दौरान हेलमेट का उपयोग नहीं करते हैं। यदि ऐसा वे करते तो उन्हें याद रहता क्योंकि वह तो चार पहिया वाहन में घूमते हैं। यदा-कदा कभी दो पहिया वाहन पर बैठ गए तो वह तो अधिकारी हैं उन्हें कौन रोकने वाला, कौन टोकने वाला।
रहा प्रभु का आशीर्वाद वरना हो सकती थी अनहोनी
कलेक्टर सूर्यवंशी ने उबड़ खाबड़ रास्ते में से जैसे-तैसे मार्ग तय कर लिया और गंतव्य तक पहुंच गए। यह गनीमत रही, प्रभु का आशीर्वाद रहा, लेकिन कभी कुछ अनहोनी घटना हो जाती तो इसका जिम्मेदार कौन होता। यह विचारणीय प्रश्न है। चिंतनीय प्रश्न है। जब कलेक्टर रैंक के अधिकारी जब चूक कर जाते हैं तो आमजन बिना हेलमेट के वाहन चलाते हैं तो वह भी गलती करते ही हैं लेकिन उन्हें जुर्माना लगता है। सजा मिलती है तो फिर कलेक्टर की चूक को क्या कहा जाए? क्या यातायात के नियमों का पालन केवल पुलिस के डर से ही किया जाए। अपनी जान की सुरक्षा के मद्देनजर नहीं?