उद्दंड छात्र पर कलेक्टर की ऐसी मेहरबानी : छात्र ने की शिकायत, कलेक्टर ने आव देखा न ताव, तत्काल डिप्टी कलेक्टर और जिला शिक्षा अधिकारी को भेज दिया प्रवेश करवाने, विद्यार्थी को बिठाया सरकारी वाहन में
⚫ कुछ दिन पहले छात्र ने दूसरे छात्र से ना सिर्फ मारपीट की बल्कि अपशब्द भी कहे
⚫ यहां तक की स्कूल की टीचर से भी बदतमीजी की
⚫ ज़िद्दी छात्र को सुधारना चाहता था स्कूल प्रबंधन, लेकिन वह सुधरने को तैयार नहीं
⚫ पहुंच गया जनसुनवाई में पेरेंट्स को लेकर
⚫ क्या प्रभाव पड़ेगा अन्य विद्यार्थियों पर
हरमुद्दा
रतलाम, 20 दिसंबर। लगता है कलेक्टर नरेंद्र सूर्यवंशी की संवेदनशीलता का नाजायज फायदा उठाया जा रहा है और वह ऐसे पर मेहरबान भी हो रहे हैं। विद्यार्थी ने स्कूल प्रबंधन की शिकायत करते हुए बताया कि उसे स्कूल से निकाल दिया। बस फिर क्या था कलेक्टर ने आव देखा न ताव तत्काल डिप्टी कलेक्टर त्रिलोचन गौड़ और जिला शिक्षा अधिकारी केसी शर्मा को निर्देश दिए कि तत्काल विद्यार्थी को ले जाएं और विद्यालय में प्रवेश दिलाएं। दोनों अधिकारी ने विद्यार्थी को सरकारी वाहन में आगे बिठाया और ले आए उसके कहने पर माणक चौक स्थित शासकीय बहुउद्देशीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में।
शासकीय बहुउद्देशीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय माणक चौक की प्राचार्य नीरू वर्मा ने हरमुद्दा को बताया कि कासिम नाम का विद्यार्थी कक्षा नवी में पड़ता है। कासिम ने कुछ दिन पहले विद्यार्थियों से झगड़ा किया और मारपीट भी हुई। कासिम की इस हरकत पर स्कूल टीचर ने उसे डांटा तो उनके साथ भी बदतमीजी की। तब उसे कहा गया कि पैरंट्स को लेकर आएंगे, तभी कक्षा में बैठने दिया जाएगा। विद्यार्थी ने पेरेंट्स को क्या कहा यह तो जानकारी नहीं लेकिन मंगलवार को जनसुनवाई में पहुंचा। स्कूल प्रबंधन, ज़िद्दी छात्र को सुधारना चाहता था लेकिन वह सुधरने को तैयार नहीं। इसका प्रभाव विद्यार्थियों पर गलत पढ़ रहा था। इसीलिए उस उसे कहा गया था कि पैरंट्स को लेकर आए, तब क्लास में बैठ सकेगा।
लगता है हुई है उनसे गलती
जनसुनवाई में पेरेंट्स के साथ पहुंचे विद्यार्थी ने कलेक्टर को बताया कि उसे स्कूल से निकाल दिया, तब कलेक्टर श्री सूर्यवंशी ने अधिकारी द्वय डिप्टी कलेक्टर और जिला शिक्षा अधिकारी को निर्देश दिए कि वह तत्काल विद्यार्थी का प्रवेश दिलाएं। लगता है इस मामले में कलेक्टर साहब ने सुनवाई में गलती की। मुद्दे को समझे बिना ही निर्देशित कर दिया। प्रथम दृष्टया तो अधिकारी भी यही समझे कि किसी प्राइवेट स्कूल का मामला होगा। फीस जमा नहीं करवाई होगी। इसलिए निकाल दिया होगा। इसलिए तत्काल उसे सरकारी वाहन में बिठाकर जब माणक क्षेत्र में लाए तो गाड़ी कासिम ने थाने के सामने रुकवाई। कहा कि यह है स्कूल।
स्कूल प्रबंधन से ली जानकारी और बिठाया कक्षा में
अधिकारी द्वय स्कूल पहुंचे। प्राचार्य से चर्चा की, तब पूरी जानकारी सामने आई कि मामला क्या था। जबकि विद्यार्थी ने ऐसा कुछ भी नहीं बताया था। विद्यार्थी की शिकायत झूठी थी, कि उसे स्कूल से निकाल दिया है, जबकि स्कूल प्रबंधन उसे सुधारने के लिए उसे कक्षा में बिठाने से मना किया था कि जब तक पेरेंट्स नहीं आएंगे। हम नहीं बिठाएंगे, ताकि पेरेंट्स को भी पता चले कि उनका बेटा कितना शरारती है और टीचर के साथ बदतमीजी करता है। इसका असर अन्य छात्रों पर विपरीत पड़ रहा है।
संवेदनशीलता का गलत फायदा
शिक्षा क्षेत्र से जुड़े शिक्षकों और शिक्षाविदों का इस मुद्दे पर कहना है कि लोग संवेदनशीलता का गलत फायदा उठा लेते हैं। इस प्रकरण से ऐसा ही लगता है कि झूठी शिकायत करो तो भी मान सम्मान के साथ सरकारी गाड़ी मिलेगी और स्कूल में प्रवेश भी। जबकि विद्यार्थी सुधरने का नाम नहीं लेते हैं। ऐसे में इस प्रकार के हस्तक्षेप भी ठीक नहीं है। अन्य छात्रों पर तो यही असर पड़ेगा कि झूठी शिकायत करो और मान सम्मान के साथ सरकारी वाहन में बैठकर आओ। स्कूल प्रबंधन जिद्दी विद्यार्थियों को अपने हिसाब से ठीक करता है, ताकि वह भी पढ़े और अन्य विद्यार्थियों को भी पढ़ने दे।