कहानी : आयटम
⚫ कॉफी हाऊस में जब गीतिका पहुँची तो संगम पहले ही वहाँ उपस्थित था, बेचेनी से इतंजार कर रहा था, अपनी इस नयी फेसबुक फ्रेन्ड का। जब गीतिका पर संगम की नजर पड़ी तो देखता ही रह गया। कंधे तक कटे बाल, जींस गहरे ब्लू रंग की जिसके घुटने और कमर के पास के कुछ हिस्से आज के फैशन के हिसाब से फटे हुए थे, बोले जा सकते है। जिससे उसका दूधिया रंग बाहर किसी लाइट के फ्लेश के समान चमक मार रहा था। नैन नक्श ठीक ठीक थे।⚫
⚫ इंदु सिन्हा ‘’इंदु’’
लगभग एक वर्ष हो रहा था गीतिका और संगम की दोस्ती को। ये दोस्ती शुरू हुई थी फेसबुक से , पहले दोनों फेसबुक फ्रेन्ड बने फिर रियल लाइफ में। संगम को याद नहीं आ रहा था कि फ्रेन्ड रिक्वेस्ट पहले किसने भेजी उसने या गीतिका ने? एक बार तो दोनों में बहस भी हुई थी इस बात को लेकर, लेकिन गीतिका ने कहा था चाहे किसी ने भी पहले रिकवेस्ट भेजी हो अच्छे लोगों को तो भगवान मिला ही देते है। फिर बहस खत्म करके दोनों जोर से हँस दिये थे।
गीतिका लगभग पैतीस वर्षीया एक विवाहित महिला थी और संगम भी लगभग गीतिका का हम उम्र ही था। गीतिका संगम से प्रभावित थी ऐसा नहीं कि संगम बड़ा ही हेन्डसम हो या धनी हो। संगम औसत था कुल मिलाकर ऊँचाई यही कोई पाँच फीट दस इंच के लगभग होगी। गन्दुमी रंग, नैननक्श ठीक ठीक। आँखों में एक चुम्बकीय आकर्षण। यही आकर्षण फेसबुक की वाल पर उसके पोस्ट किये पिक्स, में था। पिक्स को देखते ही गीतिका सुध बुध खो बैठी थी। एक बात ये भी थी कि फेसबुक वाल पर दर्द भरी शायरी और कविताएँ, वो दीवानी हो गयी थी, उन कविताओं की शायरियों की। उसने जब प्रोफाइल देखी पता चला संगम भोपाल की किसी कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर था। गीतिका ने देखा तो वो सोचने लगी इंदौर भोपाल में ज्यादा दूरी नहीं है मुलाकात की जा सकती है।
फिर क्या था, फेसबुक के लाइक्स कमेन्ट से ये जो सिलसिला चल निकला तो चुम्बन और लव वाले इमोजी तक पहुँच गया | सुबह के गुड मार्निंग में भी लव वाले इमोजी या फिर प्यारा चुंबन रहता था। गुड नाइट में भी प्यारे प्यारे रोमाटिंक वाले पिक्स आने जाने लगे। पहली बार रियल में भोपाल ही मिले थे दोनों। गीतिका कुछ एन जी ओ से जुडी थी इसी सिलसिले में वो महिलाओं के ग्रुप के साथ भोपाल पहुँची थी। अपने आने की सूचना उसने संगम को पहले ही दे दी थी। संगम भी बेकरार था अपनी फ्रेन्ड से मिलने के लिये। शाम की चाय पर दोनों की मुलाकात तय हुई। भोपाल के व्यस्त मार्केट चौक बाजार में था, बड़ा सा रेस्टोरेंट। वहाँ मिलना तय हुआ दोनों का। फेसबुक पिक्स देखी हुई थी और विडियो कॉल दोनों ही एक दूसरे को नियमित करते थे, इसलिये पहचानने में कोई दिक्कत नहीं हुई मोबाइल नंबर भी एक दूसरे के पास थे ही घंटों वाट्सएप चेट्स भी चलती थी।
कॉफी हाऊस में जब गीतिका पहुँची तो संगम पहले ही वहाँ उपस्थित था, बेचेनी से इतंजार कर रहा था, अपनी इस नयी फेसबुक फ्रेन्ड का। जब गीतिका पर संगम की नजर पड़ी तो देखता ही रह गया। कंधे तक कटे बाल, जींस गहरे ब्लू रंग की जिसके घुटने और कमर के पास के कुछ हिस्से आज के फैशन के हिसाब से फटे हुए थे, बोले जा सकते है।
जिससे उसका दूधिया रंग बाहर किसी लाइट के फ्लेश के समान चमक मार रहा था। नैन नक्श ठीक ठीक थे।
चलेगी दो तीन साल ये फ्रेन्ड चलेगी फिर बाद में आगे की सोचेंगे।ऊँचाई लगभग पाँच फीट तीन इंच होगी, वो सोचने लगा।
इतने में गीतिका सामने थी, वो ख्यालों से बाहर आया और अपना हाथ बढ़ा दिया हेलो गीतिका।
हाथ संगम, गीतिका ने प्यार से हाथ बढ़ाया था। चलो उस कोने वाली टेबल पर बैठते है।
जी ,गीतिका ने धीरे से सिर झुका दिया था। लक दक करती यूनिफार्म में घूमते वेटर को संगम ने आवाज दी।
यस सर, वेटर नजदीक आया।
गीतिका क्या लोगी स्नेक्स में, संगम ने प्यार भरी नज़रों से गीतिका को देखा।
कुछ भी जो भी तुम चाहो। गीतिका के चेहरे पर मुस्कान थी।
ओके ….. । संगम ने आर्डर दे दिया।
पनीर पकोडे, फ्राई पनीर पास्ता, क्रीम कॉफी।
वेटर आर्डर लेकर चला गया।
बीस पच्चीस मिनिट से पहले आयेगा नहीं। तब तक बात करते हैं, ये सोचकर संगम ने कुछ पूछने के लिये गीतिका के चेहरे को देखा ही था, कि गीतिका ने पूछा – ।
संगम एक बात पूछू बुरा तो नहीं मानोगे।
अरे नहीं ,बुरा क्यो मानूंगा ? तुम मेरी अच्छी दोस्त हो और अब मेरा लव भी हो, कुछ भी पूछ सकती हो।
तुम जो फेसबुक पर दर्द भरी शायरी कविता पोस्ट करते रहते हो वो क्यों? जीवन तो खुशियों का नाम है गीतिका ने पूछा।
देखो गीतिका, जिसके पास जो होगा, वही तो दिखायेगा। कहते-कहते- संगम का चेहरा उदास हो चला था।
सॉरी, मैने शायद कुछ गलत बोल दिया। गीतिका के स्वर में दुख था, शायद उसने कुछ गलत बोल दिया ?
अरे नहीं-नहीं तुमने गलत कुछ भी नहीं कहा है। सही पहचाना है मुझको – कहते – कहते – संगम ने अपना हाथ गीतिका के हाथ पर रखकर हल्के से दबा दिया था।
गीतिका के पूरे शरीर में एक सिहरन सी दौड गयी। संगम के हाथ की तपन धीरे धीरे उसके भीतर उतरने लगी।
संगम ने अपने दोनों हाथों से गीतिका के दोनों हाथ थाम लिये थे, फिर उसकी आँखों में झाँकते हुए बोला, गीतिका ,
गीतिका ने नजरे संगम की नजरों से मिलायी आगे सुनने के लिये।
देखो गीतिका दर्द तो मेरे जीवन में बहुत बिखरा है। पत्नी इतनी कर्कश और झगडालू मिली है कि कभी कभी मुझ पर हाथ भी छोड़ देती है। आये दिन छोटी छोटी बातों पर लड़ती झगड़ती है हम दोनों में प्यार जैसी कोई बात बिल्कुल नहीं है। आये दिन के झगड़ों से परेशान होकर ही मम्मी को गाँव जाकर रहना पड़ रहा है पुश्तैनी घर में। मैं रात में आठ नौ बजे तक ऑफिस में रहता हूँ, जिससे टेंशन से बचा रहूँ।
ओहो—। गीतिका की आवाज़ दुख भरी थी। ये वजह है दर्द भरी शायरी कविता का,
हाँ गीतिका। संगम ने कहा।
लेकिन झगड़ों की कोई वजह तो होगी? क्यों झगड़ा होता है दोनों के बीच। गीतिका ने पूछा ,
उसको घर के काम में परेशानी है खाना नहीं बनाना, घर के कामों में कोई रूचि नहीं, बिना वजह शक करना ऑफिस की कुलिग पर। ऑफिस में तो सबसे बात तो करनी होती है आठ दस घंटे ऑफिस में रहते है। संगम ने अपनी बात पूरी की।
इतने में वेटर आ गया था आर्डर की गयी चीजे लेकर संगम ने अपने हाथों को गीतिका के हाथों से हटा दिया। स्नेक्स सभी स्वादिष्ट थे, कॉफी बड़ी ही टेस्टी लगी, गीतिका ने क्रीम कॉफी पहली बार पी थी।
गीतिका ने मोबाइल देखा, लगभग घंटे भर से ज्यादा समय हो रहा था उसे चलना चाहिये। ये सोचकर उसने संगम से कहा –
संगम चलें, मुझे निकलना चाहिये, दूसरी महिलाएं भी आ गयी होगी उनकी मीटिंग अटेंड करके सुबह हम लोग निकल जायेंगे।
संगम ना जाने किन ख्यालों में खोया हुआ था, लगातार वो गीतिका को देखा जा रहा था।
संगन कहाँ खो गये हो चलो भी, गीतिका बोली|चलो – चलो भी| गीतिका बोली। चलो – चलो कहकर संगम उठे खड़ा हुआ। क्या सोच रहे थे। गीतिका बोली
कुछ नहीं – कहकर संगम चलने लगा पार्किंग की तरफ जहाँ उसने गाड़ी पार्क की हुई थी।
हल्की रोशनी थी पार्किंग में, गाडियों की कतारें, इंतजार में थी मालिक के। गीतिका के कदम चलते रूक से गये, बोली संगम मैं ऑटो से चली जाऊगी, तुम परेशान ना हो।
इतने में अचानक संगम ने उसे अपनी बाँहो में जकड़कर उसके होठो को अपने होठो से लॉक कर दिया गीतिका कुछ समझ नहीं पायी। पूरा शरीर एक मीठी मीठी छुअन से मदहोश होने लगा• उसने अपने आप को बाँहो की कैद से आजाद़ करने की कोशिश नहीं की।
एक लम्बे चुम्बन के बाद संगम ने अपने होंठो पर हाथ फैरते हुए कहा, गीतिका डॉर्लिग ये ही सोच रहा था, कुछ छूट तो नहीं गया? गीतिका शरमा गयी। किसी बीस वर्षीया लड़की के समान।
गीतिका जब अपने होटल पहुँची तब भी उसे संगम के चुम्बन का स्वाद परेशान करता रहा। यहाँ तक कि रात में नींद में भी वही चुम्बन उसे याद आता रहा।
दूसरे दिन सुबह दस बजे सभी महिलाएं इंदौर के लिए रवाना हुई गाडियों की व्यवस्था एन जी ओ की तरफ से ही थी।
रास्ते में महिलाओं की बातें हंसी मजाक ठिठोली में चुम्बन का स्वाद होठो पर महसूस होता रहा।
घर पहुँचकर भी मन अनमना सा रहा, ऐसा क्यों हो रहा है मन • गीतिका सोचने लगी। थोड़ी सी थकान लग रही थी, वो कपड़े चेंज करके बेडरूम में आ गयी, बेडरूम में बड़ी सी तस्वीर लगी थी ,उसकी और उसके पति नीरज की हंसती मुस्कराती तस्वीर। उसे लगा नीरज तस्वीर से निकल कर सामने आ गये है और पूछ रहे है गीतिका तुमने मेरे साथ धोखा क्यों किया? बोलो क्या कमी थी हमारे प्यार में।
गीतिका घबरा गयी, बोली मैंने तो कुछ भी नहीं किया कहाँ धोखा दिया क्या फेसबुक फ्रेन्ड से मिलना गलत है?
मैंने कब कहा गलत है? नीरज की आवाज़ आयी तो फिर गीतिका ने सवाल किया।
तुम्हारे साथ जो उसने पार्किंग में किया वो सही था? नीरज बोला,
अरे यार, छोटी सी बात थी ऐसा कुछ विशेष नहीं था। गीतिका ने दोनों हाथों से अपने कान बंद कर लिये,सोने की कोशिश करने लगी ,
नीरज की आवाज़ दूर जाने लगी थी।
लगभग शाम सात बजे तक वो सोती रही। नींद जब खुली तब तक नीरज ऑफिस से आ चुका था।
क्या हुआ गीतिका, कैसा रहा तुम लोगों का आयोजन, फंक्शन। नीरज ने ऑफिस का बेग बेडरूम के साथ रखी छोटी सी टेबल पर रखते हुए पूछा।
आयोजन अच्छा रहा। गीतिका बोली।
क्यों कुछ विशेष? नीरज ने पुछा।
कुछ विशेष नहीं फेसबुक पर एक फ्रेन्ड है संगम उससे जरूर मुलाकात हुई थी। गीतिका ने बताया।
अच्छा कैसा रहा सब ?नीरज ने पूछा।
अच्छा, फेसबुक वाले सभी मित्र अच्छे होते नहीं, कोई कोई अच्छा भी होता है, इतनी हजारों की लिस्ट में किसको फुर्सत है मिलने की। नीरज ने बात खत्म करने के लिये कहा।
डिनर की क्या तैयारी है नीरज ने पूछा थक गयी हो तो बाहर से आर्डर कर देते हैं। ठीक है गीतिका ने अनमने भाव से कहा।
क्यों क्या हुआ? सब ठीक है ना गीतिका। नीरज ने पूछा।
हाँ – हाँ सब ठीक है, बाहर से आर्डर कर देते हैं? गीतिका बोली,
ठीक है नीरज ने कहकर मोबाइल पर आर्डर नोट करवाने लगा।
पालक पनीर, चिली पनीर, फ्रुट रायता, दाल तड़का और बटर नान।
देखो आर्डर आये तुम ले लेना। जब – जब तक मैं फ्रेश होकर कपड़े चेंज कर लेता हूँ कहकर नीरज दूसरे रूम में चला गया।
लगभग आधे घंटे में आर्डर लेकर डिलेवरी बॉय आ गया था।
डिनर होटल बावर्ची से मंगवाया था ,जो शहर का फेमस होटल था
खाना खाते खाते भी गीतिका का मन भोपाल में ही उड रहा था। चुम्बन का स्वाद होठो पर ही था। इन्हीं ख्यालों में डूबते उतरते में गीतिका ने खाना खत्म किया।
अरे, गीतिका मैं बताना भूल गया था, तुमको, आने वाली पन्द्रह तारीख को मुझे दो दिनों के लिए भोपाल जाना है। कुछ ऑफिशियल काम है। चाहों तो तुम भी चलो तुम्हारे फेस बुक फ्रेन्ड संगम से भी मिल लेंगे, क्या ख्याल है? कहकर नीरज में गीतिका को देखा।
अरे वाह। क्यों नहीं। जरूर, गीतिका के अंदर खुशी की लहर दौड़ने लगी। वो उत्साह से बोली
ठीक है फिर पक्का रहा ,तुम भी भोपाल चलोगी। नीरज ने कहा। फिर पुछा,
ये तुम्हारी महिलाओं की मीटिंग कोई आयोजन तो नहीं है। ये जरूर पता करो मैं टिकिट बुक करवा लेता हूँ। नीरज ने कहा।
नहीं नहीं उन दो दिनों में कोई आयोजन नहीं है। आप बुक करवा लेना। गीतिका ने नीरज के मन की शंका भी उसी समय दूर कर दी।
दूसरे दिन नीरज लगभग साढ़े दस बजे ऑफिस चला गया।
उसके जाते ही गीतिका ने तुरंत ही संगम को फोन कर दिया।
संगम खुशी के मारे चहक उठा फिर मुलाकात। संगम के मन में भी सपने अंगडाई लेने लगे थे। इस बार मुलाकात के।
गीतिका भी संगम को फोन करने के पश्चात संगम के ख्यालों में खो गयी। वो सोचने लगी इस बार संगम के घर जाकर जरूर मिलेगी। उसकी पत्नी से मिलना चाहती थी। इतने अच्छे व्यक्ति को परेशान करने वाली आखिर वो महिला कैसी है। संगम से उसके कर्कश और बुरे बर्ताव के बारे में इतना सुन चुकी थी, वो चाहती थी एक बार मिल ले। कहा सोचकर उसने संगम को दुबारा मोबाइल किया। संगम ने तुरंत फोन उठाया और बोल क्या हुआ। गीतिका याद ज्यादा आ रही है।
नहीं नहीं ऐसी बात नहीं। गीतिका ने कहा मैंने इसलिए फोन किया था इस बार तुम्हारे घर चलकर तुम्हारी वाईस से मिल लेगे।
अरे नहीं वाइफ कहाँ से बीच में आ गयी। संगम घबरा गया।
क्यों मैंने हसबेंड से तुम्हारे बारे में जिक्र किया है, तो तुमको क्या आपत्ति है? गीतिका परेशान हो उठी।
तुमने हसबेंड को बताया है? संगम की आवाज में आश्चर्य था।
हाँ – हाँ क्यों नहीं गीतिका बोली। तुम मेरे फेसबुक फ्रेड हो। सभी फेस बुक फ्रेन्डस से कहाँ बात होती है? गीतिका ने समझाया।
वो तो ठीक है गीतिका लेकिन हो सकता है जिस समय तुम लोग आओ वाइफ का व्यवहार तुम लोगों के प्रति अच्छा नहीं हो। संगम ने कहा
दूसरी तरफ खामोशी देखकर वो बोला।
हेलो, गीतिका सुन रही हो ना। हाँ सुन रही हूँ बोलो। गीतिका ने कहा। तुमने भी कहाँ अपने हसबेंड को बता दिया। क्या जरूरत थी बताने की। संगम की आवाज़ में थोड़ा गुस्सा महसूस हुआ गीतिका को।
अरे, इसमें छिपाने की क्या बात है? हसबेंड से शेयर किया मैंने। गीतिका बोली। नहीं मिलना चाहते हो तो कोई बात नहीं। गीतिका बोली।
अरे नहीं, मिलना चाहता हूँ। तुम लोग भोपाल तो आओ। कहकर संगम ने मोबाइल काट दिया।
भोपाल होटल प्लाजा। शानदार रूम। नीरज और गीतिका पहुँच चुके थे। रूकने की व्यवस्था कंपनी की तरफ से थी• नीरज जल्दी जल्दी तैयार भी हो रहा था सुबह ग्यारह बजे उसे मीटिंग में पहुँचना था। गीतिका ने ब्रेकफास्ट आर्डर कर दिया था।
गरम गरम आमलेट, मक्खन, ब्रेड और उपमा वेटर रूम में रखने आ गया था। गीतिका और नीरज ने नाश्ता किया, नाश्ता करते-करते नीरज ने कहा।
आज तो शाम को कुछ शॉपिंग कर लेना, मैं भी आ जाऊँगा साथ ही चलेंगे। कल शाम को संगम के घर चलेगे। ठीक ही कहकर नीरज ने अपना बेग लिया और चला गया मीटिंग के लिये।
नीरज के जाने के बाद गीतिका नाइटी में ही कम्बल में घुसकर आराम से अपनी पसंद का म्युजिक सुनने लगी। म्युजिक सुनते सुनते ही उसकी झपकी लग गयी।
तेज आवाज से उसकी नींद खुल गयी देखा तो होटल के रूम में टेलीफोन की घंटी बज रही थी। उसने फोन उठाया तो रिसेप्शन से फोन था।
हेलो मेम।
बोलिये गीतिका ने कहा,
कोई मिस्टर संगम है आपको मिलना चाहते है, भेज दूं आपके रूम में।
हाँ भेज दो। गीतिका ने कहा। उसने संगम को बताया था कहाँ रूकेगे।
संगम के आने के पहले उसने फटाफट शाल लपेटी और कंबल से बाहर निकलकर सोफे पर बैठ गयी।
कॉल बेल – बजी।
अन्दर आ जाओ संगम,गीतिका बोली।
संगम ने देखा दरवाजा बंद नहीं था दरवाजे को खोलकर रूम में कदम रखा, समझ में नहीं आया कहाँ बैठे बेड के समाने रखे सोफे पर गीतिका बैठी थी, सामने सेन्ट्रल टेबल पर नाश्ते की जूठी प्लेटस रखी थी, उसके ठीक सामने कुर्सी थी, वो वही बैठ गया। वहाँ बैठना उसे कर्न्फट नहीं लग रहा था। लेकिन बैठा रहा।
संगम, गीतिका बोली उसे भी शायद महसूस हो रहा था वो शायद अन्कर्न्फटेबल महसूस कर रहा है। वो बोली तुम यहाँ सोफे पर आकर बैठो।
नहीं नहीं ठीक हूँ, संगम को वहाँ ये डर भी था, भीतर कही ना कहीं। गीतिका का हसबेंड आ गये,कोई समस्या ना आन पड़े।
गीतिका बोली नीरज मीटिंग में गये है शाम तक आयेंगे। अच्छा हाँ मैं पूछना ही भूल गयी तुम क्या लोगे चाय कॉफी ?
नहीं ,नाश्ता मैं करके ही चला था सोचा तुमसे मिलता चलु। संगम ने कहते – कहते गीतिका पर नजर डाली। हल्की ब्लू कलर की नाईटी भली लग रही थी उस पर।
क्या देख रहे हो, गीतिका बोली।
कुछ नहीं, कुछ नहीं कहकर उसने नजर घुमा ली। क्या सोच रहे हो, कल हम लोग तुम्हारे घर आये या नहीं?
नहीं ऐसा कुछ नहीं सोच रहा संगम बोला, तुम आना चाहती हो आ जाना, वाइफ बर्ताव खराब करे तुमसे। इसलिये। संगम बोला ,
अरे बाबा, वाइफ पढी लिखी शिक्षित है ना ? क्यों करेगी खराब बर्ताव? तुम टेंशन मत लो। गीतिका बोली। हसबेंड को भी बताया है, मैंने।
मैं टेंशन नहीं ले रहा हूँ, कहते कहते संगम ने अचानक सौफे के पास जाकर गीतिका को सोफे पर लिटाकर उस पर झुक गया। उसका चेहरा अपने नजदीक कर उसके लिप्स को लॉक कर दिया।
गीतिका कुछ समझ नहीं पायी जैसे ही संगम ने उसके होठो को अपने होठो में जकडा वो सुधबुध भूल गयी, संगम रसपान करते समय सोच रहा था कि रूम में अंदर आते ही वो दरवाजा लॉक करके आया था। जब तक चुम्बन पूरा होता तब तक संगम दूसरे हाथ से उसके शरीर की गोलाइयों और गहराईयो को टटोल चुका था, उसे लेकर सीधा बेड पर।
गीतिका चाहकर भी उसे नहीं रोक पा रही थी, शायद दूसरे की चाह का लालच या यौन सुख। वो सोचो के दायरे और सुख के बारे में बाहर आ पाती तब तक संगम उसकी नाइटी हटाकर उसमे समा गया था।
लगभग घंटे भर बाद दोनों शिथिल होकर बेड पर पडे थे। गीतिका को कुछ गिल्टी सी महसूस हो रही थी।
संगम ये सब नहीं करना था, अपने को, गलत था।
अरे छोड़ो भी क्या गलत क्या सही। संगम ने लापरवाही से कहा। चलो फटाफट कपड़े चेंज करो। मैं अब निकलता हूँ।
कल शाम को घर आते है, ठीक है। गीतिका बोली।
हाँ बिल्कुल, डिनर घर पर करेंगे, वाइफ को लेकर दिल पर मत लेना। संगम बोला।
मतलब, गीतिका का स्वर उलझन भरा था।
मतलब ये गीतिका डॉर्लिग वो तुम लोगों से अगर बतमीजी भी करे तो बुरा मत मानना ठीक है।
बॉय, कहकर संगम चला गया।
संगम के जाने के बाद गीतिका सोच में पड़ गयी।
संगम के घर जाये या नहीं। लेकिन आज जो हुआ गलत हुआ, लेकिन बहुत सुख भी मिला। फिर गिल्टी सी क्यों महसूस हो रही है। वो सोचने में इतना डूब गयी कि ना जाने कब उसकी आँख लग गयी।
जब आँख खुली तो देखा शाम के पाँच बजने वाले थे। अरे इतनी देर तक सोती रही। वो उठी फटाफट वॉशरूम में घुस गयी, नीरज के आने से पहले उसे रेडी रहना है।
घंटे भर बाद जब नीरज आया तो गीतिका तैयार थी, पन्द्रह बीस मिनिट बाद ही दोनों भोपाल घूमने निकल गय।
भारत भवन शाहपुरा लेक, बड़ा तालाब झील, बहुत सी जगहों पर दिन भर घूमने में दोनों बहुत ही इंजॉय किया। भोपाल के म्यूजियम भी देखते ही बनते थे।
अदभूत, भारतीय संस्कृति पुरातन युग में कैसी थी, सब कुछ बेहद शानदार था।
होटल पहुँचते पहुँचते दोनों थक चुके थे, डिनर बाहर कर लिया था, बेड पर पडते ही दोनों गहरी नींद में जा चुके थे।
दूसरे दिन नीरज को ऑफिस का काम ज्यादा नहीं था वो जाते जाते बोल गया गीतिका को शाम को तैयार रहना संगम के घर चलेगे।
दोपहर में उसने ज्यादा बात नहीं की संगम से, बस संगम का ही फोन आया था कि ये पूछने के लिये नीरज लेते है या नहीं?
गीतिका ने बताया कभी-कभी कोई खास मौका हो तब।
ओके कहकर संगम ने फोन काट दिया था।
उसके बाद गीतिका रूम में ही सामान वगैरा की पैकिंग करती रही। भोपाल से ही कुछ सामान खरीदा था, वहीं बेग और सूटकेस जमाती रही कुछ समय टी.वी. के न्यूज चैनल देखकर टाइम पास किया कोरोना की तीसरी लहर डरावनी आ रही है। लगभग हर न्यूज चैनल पर यही खबर चल रही थी।
इसी तरह दिन निकल गया, शाम को क्या पहने जिससे की संगम की वाइफ पर अच्छा इम्प्रेंशन पड़े। रॉयल ब्लू और पिंक कलर का सूट कैसा रहेंगा?
यही ठीक रहेगा ,हल्का मेकअप, वो तैयार हो चुकी थी, नीरज भी आ गये।
आते ही नीरज ने देखा गीतिका रेडी है बोले तुम रेडी हो तो ओला बुक कर दूँ?
बिल्कुल बिल्कुल कर दो •रूम लॉक कर दोनों होटल के बाहर लगभग दस मिनिट में ओला सामने थी।
घर तलाशने में ज्यादा समस्या नहीं आयी।
भोपाल की अरेरा कॉलोनी प्रसिद्ध है।
घर के बाहर एक कलात्मक लुक था। खूबसूरत सी नेम प्लेट थी। जिसको दो फरिशते दोनों और से हाथो में थामे खड़े थे, नेम प्लेट को सुनहरी जंजीर से लटकाया हुआ था, ये बनावट बड़ी सुन्दर थी।उसके नीचे गुलाबों के खूबसूरत गमले थे पत्थर के जिसमें अनेकों गुलाब खिले थे। सुन्दर सफेद फूलों की लताओं से दरवाजा कुछ कुछ ढका हुआ था। कॉल बेल की आवाज म्युजिक जैसी थी, जैसे कहीं पास ही घुंघूरू बज उठे हो।
दरवाजा संगम ने ही खोला। गर्मजोशी से उसके नीरज से हाथ मिलाया आईये – आईये वेलकम ,
प्लीज बैठिये ,संगम ने बड़ी ही इज्जत से सहज होकर कहा।
दोनों ही विशाल ड्रॉइग रूम में बैठ गये •तीन और सोफे राउण्ड शेप में थे, कोने में एक दीवान कुछ कुछ पुराने लुक सा जिसे राजस्थानी अंदाज में सजाया गया था। कोने में छोटी सी टेबल पर सितार सजा था, उसके ऊपर राजस्थानी दो कठपुतली हवा में लटक रही थी। उस कोने की साज सज्जा कवर कुर्सीया भी राजस्थानी लुक में थी।
सोफे के बीच में बड़ी सी सेंट्रल टेबल थी उसके सामने बुक शेल्फ बहुत सी साहित्यिक पुस्तके थी।
पढ़ने की हॉबी किसे है संगम ने कभी जिक्र नहीं किया था उससे। गीतिका ने सोचा।
वाओ – ss ! क्या शानदार है, मस्त, ड्राईंगरूम। बहुत सुन्दर, नीरज ने कहा।
संगम थैक्यू कहता हुआ खुश हो गया। फिर सामने ही बैठ गया।
सिमरन – सिमरन बाहर आओ डॉर्लिग – । संगम ने आवाज दी।
सिमरन बड़ा प्यारा नाम है, गीतिका ने सोचा इतने में ड्राइग रूम के सामने वाले दरवाजे के रंग पर्दे के भीतर से आवाज आयी ये पर्दा तो हटाईये।
अच्छा-अच्छा, कहकर संगम ने पर्दे को हटा दिया तो हाथों में ट्रे पकड़े हुए सिमरन खड़ी थी उसने ड्राइग रूम के अंदर कदम रखा। ब्लेक रंग की पिकं रंग के फूलों से सजी साड़ी में लंबी और सुंदर गठीले शरीर वाली सिमरन के बाल कमर तक खुले थे साइड में दोनों और सिंपल से हेयर पिन लगे थे।तीखे नैन नक्श वाली सिमरन के बांये गाल पर तिल जैसे उसकी सुन्दरता की रक्षा कर रहा हो।
सुन्दर गिलासों में पानी के साथ दो प्लेट में मिठाई थी काजू बर्फी और बेसन के लड्डु दोनों ने पानी के गिलास के साथ बर्फी का एक एक टुकडा उठा लिया।
सिमरन ट्रे सेन्ट्रल टेबल पर रखकर वहीं बैठ गयी नीरज नमस्ते करने के बाद चोर नजरो से रह रह कर सिमरन को देख लेता था उसकी नजरे बता रही थी वो सिमरन को देखकर इम्प्रेस हो गया है।
कितनी सुन्दर है सिमरन। गीतिका ने सोचा। लेकिन कर्कश और झगड़ालु किस काम की सुन्दरता। बेचारे संगम को दु:खी कर रखा है।
क्या सोचने लगी आप ?सिमरन बोली।
कुछ नहीं, बस आपका ड्राईग रूम देख रही थी बड़ा ही सुन्दर सजाया है सितार?
सिमरन को सितार बजाने की हॉबी है बड़ा अच्छा बजाती है सितार। संगम ने जवाब दिया।
अरे वाह। नीरज और गीतिका एक साथ बोले।
आइये डिनर लग चुका है डिनर टेबल पर बाते होती रहेंगी। सिमरन खड़े होते हुए बोली – ।
डिनर टेबल पूरे पारदर्शी रंगीन ग्लास की थी, डिनर भी शानदार था।
सूप और चिली पनीर स्टार्टस में थे| संगम और सिमरन भी साथ ही बैठे डिनर के लिये नीरज और संगम एक पंक्ति में सामने, सिमरन और गीतिका एक पंक्ति में,
पनीर कोफ्ता, मक्खनी दाल, फ्रुट रायता, कर्स्टड, गाजर का हलवा। कितनी सारी डिश।
बहुत परेशान हुई होगी आप, गीतिका ने औपचारिकता निभायी ,
अरे नहीं – नहीं ऐसी कोई बात नहीं,मुझे तो कुकिंग की हॉबी है। रोज नयी नयी डिश बनाना ओर संगम को खिलाना। क्यों संगम डॉर्लिग , है ना !
अरे हाँ मैं तो भूल गया था गीतिका को बता ही नहीं पाया। तुम्हारी हॉबीज के बारे में।
कोई बात नहीं। अभी बता दो कहकर जोर से हंस दी थी सिमरन।नीरज उसकी हंसी में खोया था।
सिमरन झेंप गयी थी नीरज को इस तरह देखते हुए।
कुछ लीजिए ना गाजर का हलवा लीजिये कहकर सिमरन ने गाजर का हलवा नीरज की प्लेट में रखा।
बहुत ही टेस्टी बना है खाना, नीरज बोला इसी प्रकार हंसी मजाक करते हुए डिनर खत्म हुआ। डिनर खत्म करके सभी वापस ड्राइंग रूम में आ गये।
अरे सिमरन सुनाओ कोई गीत सितार के साथ। संगम ने कहा।
क्यो नहीं। कहकर सिमरन ने सितार पर मीरा का भजन सुनाया ।नीरज मंत्रमुग्ध था सिमरन की कला पर।
कितना अच्छा गाती है सिमरन , गीतिका सोच रही थी। इसका मतलब संगम झूठ बोलता रहा। गीतिका को उससे घृणा होने लगी।
भजन समाप्त हुआ। नीरज और गीतिका तालियां बजा उठे।
बहुत अच्छा गाती हो आप गीतिका बोली ,
थेक्यू, कहकर सिमरन मुस्करा दी।
अच्छा अब हमें चलना चाहिये। कहकर नीरज ने चलने की इजाजत मांगी।
ओ रूकते थोडी देर। संगम ने कहा नहीं कल सुबह इंदौर के लिये निकलना है। नीरज ने कहा,
ठीक है बॉय गुडनाइट कहकर दोनों ने विदा ली, ओला बुक कर दी थी नीरज ने।
सिमरन और संगम बाहर तक छोडने आये उनको।
सड़क के कोने तक ओला पहुँची ही थी गीतिका याद आया उसका चश्मा तो डाइनिंग टेबल पर ही रह गया है, डिनर करते समय चश्मा उतार कर रख दिया था| उसने तुरंत ओला रूकवायी। बोली नीरज मैं चश्मा डाइनिंग टेबल पर भूल आयी हूँ यही रूको, मैं चश्मा होकर आयी।
ठीक है कहकर ओला सड़क के किनारे ही रूकवा दी नीरज ने।
तेज तेज कदमों से कुछ मिनिट में संगम के घर पहुँच गयी अच्छा हुआ थोड़ी दूर पर ही चश्मा याद आ गया होटल पहुँचकर याद आता तो गड़बड़ हो जाती, नजदीक का चश्मा था पढ़ने और मोबाइल पर कुछ काम नहीं कर पाती। सोचते सोचते संगम के घर दरवाजे तक पहुँच गयी थी। दरवाजा खुला था तो जल्दबाजी में वो बिना कॉल बेल बजाये, घर के अंदर चली गयी |ड्रांइग रूम खाली था, डाइनिंग रूम से सिमरन और संगम के जोर से हंसने की आवाज बाहर तक आ रही थी।
वो रूक गयी। वहीं,
क्यो कैसी है गीतिका मेरी फ्रेन्ड ? संगम की आवाज आयी।
अच्छी है, मुझसे सुन्दर कम है। सिमरन बोली ,डॉर्लिग तुम्हारी बराबरी वो क्या करेगी। संगम ने हंसते हुए कहा।
फिर क्या जरूरत थी फेसबुक पर फ्रेन्ड बनाकर घर लाने की ? सिमरन ने पूछा
अरे यार, चिपक गयी थी घर दिखाओ मुझे। इसलिये लाना पड़ा
उसका हसबेंड कैसे घूर रहा था मुझको। सिमरन का स्वर उभरा।
घूरने दो बिचारे को,घूर ही सकता है। वो बस, सब उसकी बीबी जैसी नहीं होती, कहकर जोर से हँस दिया संगम।
मतलब, सिमरन बोली।
मलतब ‘आयटम’ आयटम है गीतिका के साथ थोडा इंजाय करना था,इंजॉय किया। आयटम तो आयटम ही रहेगा।
ओ हो ….. कहकर सिमरन हंस दी।
गीतिका के शरीर का पूरा खून ऐसे लगा मानो खींच लिया गया हो।उसके पैरों के नीचे से धरती खिसक गयी हो। वो वापस आ गयी। बिना चश्मा लिये।
‘’आयटम’’ शब्द सुनने के बाद उसे स्वयं से घृणा होने लगी।
कवियत्री/कहानीकार
208, अरावली अपार्टमेंट
रतलाम