मुद्दे की बात : कोरोनाकाल के बाद ऑनलाइन क्लासेस और साउंड पॉल्यूशन, आम जनजीवन प्रभावित, खासकर विद्यार्थी और मरीज
⚫ ऑनलाइन क्लास के समय घर के सामने से अगर कोई बारात बैंड-बाजों और ढोल-ढमाके के साथ निकल गई तो क्लास गई समझो। वर्तमान समय में माता-पिता अपनी आर्थिक चुनौतियों का सामना करते हुए भी बच्चों के लिए ऑनलाइन क्लासेस हेतु विभिन्न प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक उपकरण ले रहे हैं, लेकिन सभी के लिए अपने घरों पर साउंडप्रूफ रूम बनाना संभव नहीं है। ऐसे में संपूर्ण समाज ही इस समस्या से निपटने में अपना योगदान दे, तभी आने वाली पीढ़ी का भविष्य उज्जवल होगा।⚫
⚫ अनिल पेंडसे
मित्रों जैसे जैसे समय परिवर्तन लेता है, वैसे वैसे कुछ नई सुविधाएँ बढ़ती हैं तो साथ ही कुछ नई परेशानियां भी देखने में आती है। वर्तमान समय में अधिकतर छात्र अपने घरों से ही विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे JEE, Medical, UPSC व अन्य तैयारी हेतु ऑनलाइन क्लासेस अटेंड कर रहे हैं। क्लास अटेंड करते समय जिन छात्रों के घरों के आसपास किसी भी प्रकार के धार्मिक स्थल हैं या पड़ोसियों ने किसी प्रकार के गोडाउन बना रखे हैं या पालतू पशु कुत्ता आदि पाल रखे हैं या जिनके घरों के आसपास कोई निर्माण कार्य हो रहा है या जो चाल में, तंग गलियों में रहते हैं उन सभी विधार्थियों को रहवासी क्षेत्रों में होने वाली हर आवाज उनकी पढाई में बाधा बन रही है। आप देखते हैं कि निर्माण कार्यों में मशीनरी का प्रयोग बढ़ गया है।
रहवासी क्षेत्रों में आवाज करती ड्रिलिंग मशीन, जेसीबी मशीन, कॉन्क्रीट मिक्सिंग मशीन, सरिये कटिंग मशीन, इलेक्ट्रिक आरी, टाइल्स पॉलिशिंग, मार्बल कटिंग मशीन, किसी भी प्रकार का फेब्रिकेशन वर्क, फिटिंग के लिए मशीन और इन सभी मशीनों से होने वाली आवाज के अतिरिक्त यदि आस-पास में कोई धार्मिक स्थल है तो ऑनलाइन क्लास अटेंड करना लगभग असंभव है।
तो समझो क्लास गई
जब कोई विद्यार्थी अपना ध्यान केंद्रित करते हुए कुछ सुनना चाहता है, उस समय आसपास के ऊंचे मकानों के आउटलेट से लगातार गिरने वाले पानी की आवाज भी परेशानी का कारण हो जाती है। लगभग 40 मिनिट चलने वाली एक ऑनलाइन क्लास के समय घर के सामने से अगर कोई बारात बैंड-बाजों और ढोल-ढमाके के साथ निकल गई तो क्लास गई समझो, क्लास ले रहे टीचर अपने छात्रों को माइक म्यूट करने के लिए कहते हैं। इससे विद्यार्थी अपने प्रश्न पूछने से रह जाता है। लगातार हेडफ़ोन का प्रयोग भी स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से ठीक नहीं है। यह आपके सुनने की क्षमता पर आजीवन प्रभाव छोड़ सकता है। वर्तमान समय में माता-पिता अपनी आर्थिक चुनौतियों का सामना करते हुए भी बच्चों के लिए ऑनलाइन क्लासेस हेतु विभिन्न प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक उपकरण ले रहे हैं, लेकिन सभी के लिए अपने घरों पर साउंडप्रूफ रूम बनाना संभव नहीं है। ऐसे में संपूर्ण समाज ही इस समस्या से निपटने में अपना योगदान दे, तभी आने वाली पीढ़ी का भविष्य उज्जवल होगा।
वह सब बोरा जाते हैं खुशी में
शहर के अधिकांश सब्जी मार्केट और अन्य स्थानों पर पिछले कुछ समय से इस तरह के ध्वनि विस्तारक यंत्रों का उपयोग धड़ल्ले से किया जा रहा है। जिस प्रकार से सफाई एक स्पर्धा हो गई है उसी प्रकार से हमें ‘ध्वनी प्रदुषण मुक्त शहर-प्रतियोगिता’ करना होगी।
आजकल समाचार पत्रों में शादी में बैंड, डीजे, ढोल न बजाने या बजाने को लेकर समाचार आ रहे हैं। जिस परिवार में शादी होती है, उस परिवार के लोग खुशी के मारे बौरा जाते हैं और अपनी खुशी प्रकट करने के लिये शोर का सहारा लेते हैं दस-दस हजार वाली फटाके की लड़ फोडते हैं। तेज आवाज में बैंड बजाते हैं संपूर्ण मोहल्ले को पता लगना चाहिये कि आज यहॉं शादी है। बैंड के साथ साथ ढोल का भी काम्पीटिशन होता है। बैंड वाला अलग चल रहा है वहीं ढोल वाला अलग मस्ती पैदा कर रहा है। बाराती झूम रहे हैं। तकनिक के इस युग में डीजे इसमें और बडा साउंड बना देता है। ट्राफिक से भरी सड़कों पर तेज आवाज में डांस होता है सब कुछ थम सा जाता है। किसी विद्यार्थि को, वृद्ध को, रोगी को परेशानी है तो होने दो पर ‘आज मेरे यार की शादी है’ तो बजा कर ही रहेंगे।
यही हो हम सब का संकल्प
अपने बच्चों के लिए एक प्रकार से हमारा यह सामाजिक दायित्व है कि अपने आसपास रहने वाले विद्यार्थियों को अपने किसी भी क्रियाकलाप के कारण परेशानी उत्पन्न ना हो। इसका सतत ध्यान रखें।
⚫ हमारे मोबाईल की रिंगटोन हो, या हो वाहनों में लगे हॉर्न।
⚫ धार्मिक कार्यक्रमों में लाउडस्पीकर हो, या पार्टी में हो डीजे,
बारातों में ढोल हो या हो शादियों में हो बैंडबाजे, नहीं करेंगे शोर अब यही होगा संकल्प हमारा।