कुछ खरी-खरी : विपक्ष को गले लगाने की होनी चाहिए कुवत, जेल में डालने की नहीं, … प्रबुद्ध वर्ग में दोनों हो गए फूल के कुप्पा, जो थे वह और जो नहीं थे वह भी, … खिसियानी बिल्ली खंबा नोचे, आखिर उनको उठना पड़ा वहां से

⚫ हेमंत भट्ट

⚫ बात कड़वी है मगर कहना भी जरूरी है। सत्ताधारी पार्टियों में विपक्ष को गले लगाने की कुवत होनी चाहिए। जेल में डालने की बुजदिली नहीं। सभी को विरोध दर्ज कराने का अधिकार है। यह तो विपक्ष के साथ सरासर अन्याय ही कहा जाएगा। …आयोजन प्रबुद्ध वर्ग के साथ संवाद का था। आयोजन में प्रबुद्ध जनों को आमंत्रित किया गया, मगर आयोजन में पहुंचे प्रबुद्धजन के दोनों वर्ग फूल कर कुप्पा हो गए थे। एक जो प्रबुद्ध जन की श्रेणी में आते हैं दूसरे वह जो प्रबुद्ध जन की श्रेणी में नहीं थे। …भाजपाइयों की इसे मनमानी और दबंगई कहा जाएगा कि वे पत्रकारों के लिए आरक्षित सेक्टर में महिला पदाधिकारी और कार्यकर्ताओं को बिठा दिया गया, मगर उन्हें उठना पड़ा वहां से। ⚫

सत्ता का नशा, पार्टी का अहंकार सर चढ़कर बोलता है तो विपक्ष को गले लगाने की कुवत किसी में भी नहीं बचती है। जो सरकार विपक्ष को तवज्जो ना दे सके, उसकी बात को सुन सके, समझ ना सके। विरोध को जान न सके तो फिर काहे की सरकार। काहे का शासन। प्रदेश के मुखिया होने के नाते कम से कम विपक्ष को संतुष्ट तो कर ही सकते हैं।

और मुख्यमंत्री के आने के पहले शहर कांग्रेस अध्यक्ष को गिरफ्तार कर लिया पुलिस ने

उनको संतुष्ट करना भी आपका दायित्व

भले ही आम जनता से झूठे झूठे वादे करके चले जाएं। उस पर अमल नहीं कर पाए और ना ही उनका प्रशासन योजनाओं पर अमलीजामा पहना पाए। मगर मतभेद के साथ मनभेद तो नहीं बढ़ाना चाहिए। यह तो कुर्सी है आज आपकी है। कल दूसरे की रहेगी जरूरी नहीं कि हर बार आपको ही कुर्सी मिलती रहे। इसलिए विपक्ष को भी समय दें। उनको संतुष्ट करते रहे। आखिर वह मुख्यमंत्री को ज्ञापन ही दे रहे थे। बादाम दे रहे थे। सेंव दे रहे थे इसमें गलत क्या कर रहे थे?

काले कपड़े पहन कर विरोध दर्ज कराते हुए

तो हिचक कैसी

जब सरकार को काले कारनामे करने में हिचक नहीं होती तो फिर काले गुब्बारे, काले झंडे, वाले कपड़े देखने में दिक्कत क्यों होती है? उनसे ज्ञापन लेने में क्यों परेशानी होती है? कुशल शासन और कुशल प्रबंधन सत्तारूढ़ दल को सीखना चाहिए। पुलिस बुलाना और गिरफ्तार करवाना ही शासन और प्रशासन का कुशल प्रबंधन तो नहीं माना जा सकता।

उद्दंड विद्यार्थी भी डॉक्टर जलज के कुशल नेतृत्व एवं सद व्यवहार से हो गए शालीन

प्रसिद्ध साहित्यकार और भाषा विद डॉ. जयकुमार जलज से तो सभी परिचित होंगे ही। वे जब रतलाम के शासकीय कला एवं विज्ञान महाविद्यालय में जब प्राचार्य थे। उस समय भी महाविद्यालय में भांति-भांति की प्रवृत्ति के विद्यार्थी आते-जाते रहते थे। कोई अपनी दबंगई तो कोई अपनी हठधर्मिता दिखाता। महाविद्यालय के दरवाजे पर बैठकर फब्तियां कसना। पढ़ाई में व्यवधान उत्पन्न करना, उनकी आदत में शुमार रहता था। डॉक्टर जलज जब राउंड पर जाते, तब यह दृश्य देखते। फिर अपने कार्यालय में आकर बैठते। प्यून को भेजकर उन्हें बुलाते। जब सड़क पर चलकर ऑफिस तक आते, तब उनके हाव-भाव, तौर-तरीके बिल्कुल दादागिरी जैसे हो लगते थे। जैसे ही वह सब प्राचार्य कक्ष में प्रवेश करते उन्हें सोफे पर बिठाया जाता। पंखे की गति तेज की जाती। इतनी देर में उन सभी के शर्ट के बटन ऊपर के जो खुले थे, वह लग जाते। प्राचार्य घंटी बजाते, प्यून आता। उसे पानी लाने के लिए कहते। सभी को पानी पिलाते। फिर उनसे पूछते बाकी सब बढ़िया है। पढ़ाई वढ़ाई ठीक चल रही है। आप वहां दरवाजे पर बैठे थे, मुझे अच्छा नहीं लगा। आपको काफी परेशानी होती होगी ऐसे बैठने में। जब भी आपको ऐसी कोई दिक्कत हो तो आप यहां कर बैठिए। कुछ देर आराम कीजिए। चाय काफी पीजिए, फिर क्लास में चले जाइए। प्राचार्य का ऐसा व्यवहार देखें वे शर्मिंदा हो जाते। इस तरह वे अपनी आदतों को छोड़कर अच्छे विद्यार्थी बन गए। इतना ही नहीं दूसरों को सबक भी सिखाने लगे। इस तरह डॉक्टर जलज महाविद्यालय में उद्दंड प्रवृत्ति के विद्यार्थियों को भी कुशल नेतृत्व के बल पर श्रेष्ठ बनाते थे। तीखे तेवर वाले हो या फिर लड़ाई झगड़े को उतारू, वह सभी डॉक्टर जलज के सामने जाकर मृदुभाषी और शालीन बन जाते। इस तरह पूरा महाविद्यालय परिसर कुशल प्रबंधन का परिचायक बन गया। प्राध्यापकों को मान सम्मान मिलने लगा। डॉक्टर जलज चाहते तो वे भी पुलिस बुला सकते थे, उनको भी पावर था, ऐसे विद्यार्थियों को पुलिस थाने बिठा सकते थे, मगर उनको ऐसे तौर-तरीके पसंद नहीं।

करना चाहिए ऐसा ही कुछ

सरकार के मुखिया को भी कुछ ऐसा ही प्रबंधन अपनाना चाहिए ताकि विपक्ष भी आपकी कार्यप्रणाली की तारीफ करें। विपक्ष को इतना अच्छा रखे कि उसके बिना सरकार चलाने में आपको मजा नहीं आए। जैसा कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी विपक्ष में अटल जी को नहीं पाती तो उन्हें अच्छा नहीं लगता। विपक्ष भी दमदार होना चाहिए, तभी सरकार चलाने में मजा आता है। वरना सत्ता का नशा और अहंकार सर चढ़कर बोलने लगता है और अहंकार तो रावण का भी नहीं टिक पाया।

प्रबुद्ध वर्ग की सूची में नाम आने से हो गए वे गौरवान्वित लेकिन…

मुख्यमंत्री के रतलाम दौरे के तहत प्रबुद्ध वर्ग से संवाद का आयोजन भी हुआ मगर संवाद तो नहीं हो पाया, समय अभाव के चलते एक तरफा ही भाषण बाजी चली और प्रबुद्ववर्ग से संवाद की रस्म अदायगी हो गई। प्रबुद्ध वर्ग के संवाद की खास बात यह रही कि इस आयोजन में एक ऐसे वर्ग के प्रबुद्ध जन भी शामिल थे, जिनको प्रबुद्ध वर्ग देखकर अचरज में आ गए। याने कि राजा और रंक सब एक समान थे। इस बुद्धिजीवी वर्ग के खास आयोजन की मटिया पलित करने के पीछे अन्य कारण भी रहे। जहां पार्टी स्तर पर सूची बनाई गई तो वही स्थानीय प्रशासन ने भी सूची बनाई और आमंत्रण दिया। स्थानीय प्रशासन की सूची में ऐसे लोगों के नाम पर आमंत्रण पत्र पहुंचे जो प्रबुद्ध वर्ग की नजर में उसके योग्य नहीं थे, मगर आमंत्रित करने वालों को पता नहीं था, क्योंकि उनको तो यही पता है कि वे उनके यहां आते-जाते रहते हैं तो वही प्रबुद्ध हैं। पहली बात तो यह कि प्रबुद्ध वर्ग को पहचानने की बुद्धि भी होनी चाहिए। मगर उनको तो एक सूची बनानी थी, प्रबुद्ध वर्ग की, सो बना ली और आमंत्रण दे दिया। जब प्रबुद्ध वर्ग के सामने ऐसे लोग आए, तब आंख खुली की आखिर गड़बड़झाला कहां हुआ? इसलिए प्रबुद्ध वर्ग में सभी फूल कर कुप्पा हो गए, जो प्रबुद्ध वर्ग के थे वे और जो प्रबुद्ध वर्ग के नहीं थे वे।

… तो फिर उनको आखिर वहां से उठना ही पड़ा, तब देखने लायक था उन सब का चेहरा

शनिवार को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान रतलाम आए। स्थानीय नेहरू स्टेडियम में महिला महासम्मेलन था। भाजपा की महिला कार्यकर्ता और पदाधिकारी आयोजन स्थल पर आई। मुख्यमंत्री के मंच के ठीक सामने वीआईपी ट्रीटमेंट की चाह में वह सभी पत्रकारों और मीडिया कर्मियों के लिए बनाए गए सेक्टर में सोफे पर जमा हो गई। 12 बजे से पत्रकार बंधु उन्हें कह रहे थे कि आप यहां ना बैठे। दिक्कत हो जाएगी। हमारे पत्रकार साथी सभी आ रहे हैं। यह सिर्फ पत्रकारों के लिए आरक्षित है, लेकिन वह टस से मस नहीं हुई। यहां तक कि महिलाओं के सामने रोब झाड़ने के लिए भाजपा के छूट भैया नेता भी दमखम के साथ उनको बिठाने में जुटे रहे। उनको समझाने की बजाय और अव्यवस्था पैदा करने में जुटे रहे।

फिर बैठ पाए पत्रकार साथी

आखिरकार वही हुआ जो नहीं होना था। मुख्यमंत्री के आने के ठीक 10 मिनट पहले सभी पत्रकार साथी आ गए और स्थान नहीं मिलने पर आक्रोशित हो गए। मंच पर मौजूद कई सारे स्थानीय नेता खड़े हो गए और उन्होंने भी कहा सही बात है मीडिया वाले कहां जाएंगे। पुलिस वाले आए और उनको हटाया गया फिर भी हटने को तैयार नहीं थे। भाजपा के छुट भैया नेता और पार्षद अपना पावर दिखाने लगे, मगर पत्रकार जब किसी को अपना हक दिलाना जानते हैं, उनकी समस्या को हल करवाना जानते हैं तो अपना हक लेना भी जानते हैं। आखिरकार महिलाओं को वहां से निकलना पड़ा, तब उनका चेहरा देखने लायक था। खिसियानी बिल्ली खंबा नोचे ऐसी कहावत चरितार्थ हो रही थी। तब जाकर पत्रकार साथियों को जगह मिली और उन्होंने मुख्यमंत्री के आयोजन को कवर किया।

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