पुस्तक समीक्षा : वक्त की जटिलताओं का सामना करतीं अनुराधा ओस की कविताएं
⚫ नरेंद्र गौड़
आज के भीषण बाज़ार वाले समय में जहां आदमी, आदमी से दूर होता जा रहा है और संवेदना रहित वितान चारों तरफ पसरा है, ऐसे निर्मम समय में अनुराधा ओस छोटी लेकिन महत्वपूर्ण कविताओं के जरिए अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं। समकालीन काव्यभाषा में, जो निश्चतरूप से कोई मानक भाषा नहीं हो सकती, क्योंकि अंततोगत्वा हर बेहतर कविता अपने ढ़ंग से और अपनी अर्जित की हुई भाषा में व्यक्त हुआ करती है। अनुराधा ओस इस मायने में अपनी ही भाषा का एक विनम्र अध्याय अपनी कविताओं में जोड़ती हैं।
पुरूष रचनाकारों की बनिस्बत महिला लेखिकाओं के समक्ष चुनौतियां अधिक हैं। यदि वह कामकाजी हुई तो उसे नौकरी के साथ ही घर की जिम्मेदारियों का भी निर्वाह करना पड़ता है, लेकिन यह सुखद है कि अनुराधाजी लगातार इसके बावजूद और बेहतर लिख रही हैं। यह बात उनके चर्चित हो चुके पहले के बाद दूसरे कविता संकलन से साबित होती है।
’वर्जित इच्छाओं की सड़क’ संकलन की अस्सी कविताओं में एक भी ऐसी नहींे है जो दुरूह हो और जिसे समझना कठिन हो, लेकिन आसान दिखने वाली इन कविताओं का रास्ता भी जीवन की तरह अनेक घुमावदार सीढ़ियों, खाई खंदकों से कम भरा हुआ नहीं है। अपने वक्त़ की जटिलताओं का सामना करती ऐसी कविताएं जितनी बार भी पढ़ी जाती हैं, उतनी ही बार उनके नए अर्थ खुलते जाते हैं। अलग-अलग मनःस्थितियों में ऐसी कविताएं पढ़ने के अपने अलग अनुभव हैं। आसान कविताएं लिखने वाले रचनाकार का जीवन उसकी कविता की तरह आसान नहीं होकर बहुत जटिल और दुरूह होता है। कविताएं छोटी अवश्य हैं, लेकिन अपने परिवेश का सत्य उजागर करने के मामले में बचाव और पलायन का कोई रास्ता नहीं चुनती हैं। प्रगतिशील चेतना इनकी प्रत्येक कविता में गुंथी हुई है। समसामयिक प्रसंग पता देते हैं कि कविता किस और कैसे सामाजिक तापमान के दिनों में लिखी गई है। चिड़िया की आवाज़ के कारण टूटने वाला सन्नाटा देखा जाए तो मामूली-सी घटना है, लेकिन अनुराधाजी के यहां वह एक बेहतरीन कविता बन जाती है और भी ऐसी कि जो सान लगी तलवार की तरह शिराओं को भेद जाए।
रात के अंधेरे में
किसी चिड़िया की आवाज़
सन्नाटा तोड़ती है
और कौंधती है
कोई कविता
सान लगी तलवार-सी
हमारी शिराओं को भेद जाती है
राजनीतिक, सामाजिक, पारिवारिक तापमान और उनकी जटिलताओं से प्रभावित यह कविताएं अनेक आयामी दुनिया की दुविधाओं में जीने वाली महिला की कविताएं हैं। अपने से बातचीत करती यह कविताएं कब और कहां मुखर होकर पाठक से संवाद शुरू कर देंगी, कोई नहीं जानता। अनुराधाजी का कविमन फूल, पत्ती, नदी, पहाड़ के साथ ही इस धरती पर रहने वाले तमाम लोगों, आकाश और यहां तक कि एक चींटी तक का अहसानमंद है, क्योंकि इनके जरिए ही उनकी कविता संभव हो सकी है। प्रकृति ने जितना दिया है, उसे सूद समेत लौटाने की भावना से इनके यहां कविता उपजती है।
चलना निरंतर
उस चींटी की तरह
जिसकी जिजीविषा ने
न जाने कितनी बार
जीना सिखाया है
प्रकृति का दिया
उसे सूद समेत लौटाते हैं
जीवन से कुछ क्षण बतियाते हैं
अनुराधाजी की कविताएं गुस्से, खीज, गहरी करूणा, स्मृतियों और हमारे समय की बेचैनियों से बनी कविताएं हैं। इनमें कहीं गहरी निराशा हताशा का स्वर है तो कहीं उसी के बीच से कौंधती उम्मीद की रौशनी भी मौजूद है। इन कविताओं में बारबार प्रेम आत्मबल देता हुआ निराश कवि को थाम लेता है।
क्या तुम नहीं जानते
जनवरी की ठिठुरती सर्दी में
ट्रेन की बर्थ पर बैठकर
तुम से मिलने की
आतुरता में भूल गई
निकट के दृश्य
पुल के नीचे से बहुत पानी बह चुका है और कविता पर चस्पां अनेकानेक ’आग्रह’ और घोषणा पत्र या तो गल चुके हैं या बहाव में बह चुके हैं। बची रह गई इस सदी की कविता। एक अच्छी कविता काल से सारे दबावों को व्यक्त करती हुई कहीं न कहीं बच रहती है। का़ग़ज पर मुमकिन नहीं होता तो यह कविता जेहन में बची रहती है, जहां हथियार पराजित हो जाया करते हैं। साहित्य में वामपंथी जनवादी विचारधारा का बोलबाला भले ही हो, लेकिन अनुराधाजी की कविता भले ही किसी वाद या विचारधारा के पक्ष में नारे नहीं लगाती हो, लेकिन जहां मनुष्य के हित की और उसके भले की बात आती है, यह कविताएं बिना घोषणा किए मानवता की पक्षधर हैं।
दीवारों पर टंकी ईंटों पर
इमारत का सौंदर्य है
आंच पर पकी हुई
मिट्टी का संघर्ष है
जाने कौन हैं वो लोग
जो देते हैं
मिट्टी आग पानी की
नई परिभाषा!
अनुराधाजी की कविताएं सिर्फ सशक्त ही नहीं बेहद सशक्त हैं। समीक्षा करते समय समझना जरा कठिन है कि कौन-सी कविता का ज़िक्र किया जाए और किसे छोड़ा जाए। अपने पहले कविता संग्रह ’ओ रंगरेज’ से प्रारंभ कर अपने दूसरे कविता संग्रह ’वर्जित इच्छाओं की सड़क’ तक आते-आते अनुराधाजी उसी कविता को संभव बनाती दीख पड़ती हैं जो कहीं न कहीं मानस में रह जाया करती हैं- दूसरे शब्दों में अनुराधाजी की कविता से गुजरता पाठक अनुभव करता है कि यह आज के भारत के अंतिम नागरिक की विडम्बनापूर्ण स्थिति का ’रोजनामचा’ है। संकलन में बहुत जीवंत और प्रेम को बहुत निकट से जीने वाली प्रेम कविताएं हैं जो अपने कालखंड को लांघकर बहुत आगे भी शाश्वती का दस्तावेज साबित होंगी। अनेकानेक कविताओं की उम्र कवि की उम्र को लांध कर आगे तक जाएंगी।
संकलन में ऐसी कई कविताएं हैं जिन्हें अनेक बार पढ़ने का मन करता है। ऐसी कविताओं की फेहरिस्त हालांकि अधिक लम्बी है, लेकिन फिर भी- आज फिर, वेश्या का कुआं, रूई की गांठ, अघोषित वनवास, कविता जन्म नहीं लेती, जब लिखती हूं, शहर का प्रवेश व्दार, हल की धार को याद कर लेती हूं, दिल्ली में खिले पलाश, ताप में तपते हुए, तुलसी की पत्तियों पर, मैं झरनों का संगीत होना चाहती हूं, खुरदरी आवाज़ वाली लड़कियां, करघे की सूत पर, जैसी और भी कविताएं हैं।
गांव लहास ,मीरजापुर उत्तरप्रदेश में जन्मी अनुराधाजी हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर हैं। इन्होंने ’मुस्लिम कृष्ण भक्त कवियों की प्रेम सौंदर्य दृष्टि’ विषय लेकर पीएचडी किया है। इनकी रचनाएं वागर्थ, आजकल, अहा! जिंदगी, वीणा, उत्तरप्रदेश पत्रिका, विपाशा, अभिनव प्रयास, कथाबिम्ब, दैनिक जागरण आदि में प्रकाशित होती रही हैं। इसके अलावा ’बिजूका’ एवं ’मेरा रंग’ और परिवर्तन मंच ब्लॉग पर भी इनकी कविताएं पढ़ी जा सकती हैं। आकाशवाणी के वाराणसी केंद्र तथा लखनऊ दूरदर्शन से भी रचनाएं प्रसारित हो चुकी हैं। जल्द ही आंचलिक विवाह गीतों का संकलन भी प्रकाशित होने जा रहा है। अनुराधाजी ने ’शब्दों के पथिक’ और ’मशाल’ नामक साझा संकलनों का संपादन भी किया है। आपने परिवर्तन साहित्यिक मंच के कार्यक्रम ’आगाज-ए-सुखन का अत्यंत कुशलता के साथ संचालन करते हुए खासा दर्शक समूह भी तैयार कर रखा है। इन दिनों आप अपने आगामी संकलन की तैयारियों में व्यस्त हैं।
⚫ कविता संकलन : वर्जित इच्छाओं की सड़क
⚫ कवयित्री : अनुराधा ओस
⚫ प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, सी- 46, सुदर्शनपुरा, इंडस्ट्रियल एरिया,
एक्सटेंशन, नाला रोड, 22 गोदाम, जयपुर-302006