मुद्दे की बात : समलैंगिक विवाह को मान्यता देना भारत की संस्कृति, सभ्यता, प्रकृति के विपरीत
⚫ जैन आचार्य लोकेशजी ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को समलैंगिकता मुद्दे पर लिखा पत्र
समलैंगिक विवाह को मान्यता देना भारत की संस्कृति, सभ्यता, प्रकृति के विपरीत है। जैन आचार्य लोकेशजी ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को समलैंगिकता के इस मुद्दे को लेकर लिखा पत्र है। पत्र के माध्यम से पुरजोर विरोध करते हुए कहा कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देना भारत की सभ्यता, संस्कृति के खिलाफ है।
प्रख्यात जैन मुनि आचार्य लोकेशजी ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को समलैंगिकता के विरोध में अपने विचार व्यक्त करते हुए एक पत्र लिखा है जिसमें उन्होने समलैंगिकता के मुद्दे पर पुरजोर विरोध करते हुए समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं देने की गुहार लगाई है।
संस्कृति पर कुठाराघात
समलैंगिक विवाह के संबंध में आचार्य लोकेशजी ने स्पष्ट करते हुए कहा कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देना हमारी प्राचीन मूल्य आधारित संस्कृति पर कुठाराघात होगा। सैकड़ों हजारों वर्षों से चली आ रही भारतीय विवाह परंपरा पर प्रहार होगा और समाज की नैतिक मर्यादाओं का उल्लंघन होगा। उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से अपील करते हुए कहा कि समलैंगिक विवाह को कानूनी स्तर पर मान्यता देना उचित नहीं है, इस पर अविलंब रोक लगाना समाज व संस्कृति के हित में होगा।
सामाजिक कर्तव्य भी है नागरिकों का
अहिंसा विश्व भारती के संस्थापक आचार्य लोकेशजी का कहना है कि भारत का संविधान प्रत्येक नागरिक को स्वतंत्रता का अधिकार देता है। जैन धर्म भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता में पूर्ण विश्वास रखता है एवं पालन करता है किंतु व्यक्तिगत स्वतंत्रता के साथ साथ ही प्रत्येक नागरिक का अपने समाज और देश के सामाजिक कर्तव्य एवं सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति भी दायित्व है। इन सामाजिक कर्तव्यों एवं सांस्कृतिक मूल्यों का पालन अबाधित रूप से भारतवासी सनातन समय से करते आ रहे हैं। भारतीय संस्कृति एवं विशेषकर जैन संस्कृति में विवाह, वंश परंपरा को आगे बढ़ाने का आधार है। समलैंगिकता का पुरजोर विरोध करते हुए समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं देने की गुहार लगाई है।