वेब पोर्टल हरमुद्दा डॉट कॉम में समाचार भेजने के लिए हमें harmudda@gmail.com पर ईमेल करे सामाजिक सरोकार : "जब मैं प्राचार्य बना" का पुस्तक का विमोचन आज -

सामाजिक सरोकार : “जब मैं प्राचार्य बना” का पुस्तक का विमोचन आज

1 min read

12 वर्षों तक प्राचार्य बने रहे डॉक्टर जलज पर केंद्रित है पुस्तक

⚫ विमोचन समारोह के मुख्य अतिथि रहेंगे विधायक चैतन्य काश्यप

हरमुद्दा
रतलाम, 12 मई। भाषाविद एवं साहित्यकार डॉ. जयकुमार जलज के प्राचार्य काल के संस्मरणों से सजी पुस्तक “जब मैं प्राचार्य बना” का विमोचन 12 मई शुक्रवार शाम 4 बजे शासकीय कला एवं विज्ञान महाविद्यालय में विधायक चैतन्य काश्यप करेंगे। डॉक्टर जलज का सम्मान भी किया जाएगा।

शासकीय कला एवं विज्ञान महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. वाय के मिश्रा ने बताया कि शुक्रवार शाम 4:00 बजे महाविद्यालय के नवीन भवन में होने वाले कार्यक्रम के मुख्य अतिथि विधायक चैतन्य काश्यप रहेंगे। अध्यक्षता जनभागीदारी समिति के अध्यक्ष विनोद करमचंदानी करेंगे।

अनुभव का संग्रह है पुस्तक

डॉक्टर जलज के विद्यार्थी रहे नरेंद्र सिंह पवार ने हरमुद्दा को बताया कि यह पुस्तक जलज साहब के 12 वर्षों के अमूल्य अनुभवों का संग्रह है। रतलाम जैसे बड़े महाविद्यालय में लगातार 12 वर्षों (यह भी रिकॉर्ड है) तक प्राचार्य बने रहने कोई मामूली बात नहीं थी, लेकिन डॉक्टर जलज ने अपनी सूझबूझ, दृढ़ इच्छा शक्ति और निष्पक्ष निर्णायक क्षमता के बलबूते पर इस कठिन कार्य को भी पूरी सफलता के साथ बेदाग निर्वहन किया।

लोगों की थी धारणा 2 दिन में दे देंगे इस्तीफा

डॉक्टर जलज बताते हैं कि हिन्दी विषय का प्राध्यापक होने के कारण लोगों के मन में यह आम धारणा थी कि- ये क्या प्राचार्य पद संभाल पाएंगे ? दो दिन में इस्तीफा दे देंगे। क्योंकि हिन्दी वालों के प्रति आम धारणा यह होती है कि वे प्रशासनिक दृष्टि से कमजोर होते हैं लेकिन डॉक्टर जलज ने उन सभी आशंकाओं को धराशाई करते हुए कई कठोर और महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए कला एवं विज्ञान महाविद्यालय रतलाम (यह नामकरण भी सर ने ही किया था) को विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन का अग्रणी महाविद्यालय बना दिया।

होगी अलग ही अनुभूति

अनेक संस्मरणों से सुसज्जित इस पुस्तक के अमूल्य संस्मरण न केवल शिक्षक प्राचार्य के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि हम सभी के लिए भी खास है। कठिन समय में हमें किस प्रकार से उचित निर्णय लेना चाहिए ? इस बात के लिए हमें प्रशिक्षित भी करती है। यद्यपि डॉक्टर जलज के ये संस्मरण साप्ताहिक उपग्रह में प्रकाशित हुए थे लेकिन पुस्तक के रूप में पढ़ना उसकी एक अलग ही अनुभूति होगी। पुस्तक एक पूरी फिल्म की तरह होती है जिसे आप चाहें तो एक ही बार में समाप्त कर सकते हैं, अगले के लिए इंतजार नहीं करना पड़ता है। ऐसी ही कुछ यह पुस्तक भी है, जो हममें आगे पढ़ने के लिए जिज्ञासा जगाती हैं। इन संस्मरणों की शैली भी डॉक्टर जलज की चिर-परिचित शैली में ही है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *