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धर्म संस्कृति : मोह का त्याग किए बिना आत्म शांति और समाधि की प्राप्ति संभव नहीं

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आचार्यश्री विजयराजजी मसा ने कहा

हरमुद्दा
रतलाम,11 जून। संसार में दो तरह के मानव पाए जाते है, एक मोह में जीने वाले और दूसरे मोह को जीतने वाले। पहले मानव संसारी होते है, दूसरे साधक मानव होते है। संसारी मानवों को मोह अच्छा लगता है, वे मोह की पुष्टि और पूर्ति को ही अपने जीवन की सार्थकता मानते है, जबकि साधक मानव मोह के त्याग को सर्वश्रेष्ठ मानते है। मोह का त्याग किए बिना आत्म शांति और समाधि की प्राप्ति नहीं हो सकती है।

ये बात परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने नामली से विहार कर रतलाम के कटारिया काटेज में पदार्पण पश्चात उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि मोह के तीन दुष्परिणाम है। पहला ये दुखी करता है, दोषों से भरता है, तीसरा ये दुर्गती में ले जाता है। सारा संसार मोह की धुरी पर घूम रहा है। मानव को सुख चाहिए, मगर वह मोह से दुखी हो रहा है। मोह का नशा सबसे बढा नशा है। इस नशे से मुक्त हुए बिना सुख का अनुभव नहीं हो सकता। मोह पाप है और मानव को ताप तथा संताप देता है। मोह को जीते बिना न संत बना जाता है, ना अरिहंत बना जा सकता है। जितने भी संत और अरिहंत बने है, वे मोह को जीतकर ही बने है।

आचार्यश्री ने पाप के चार फल बताए। उनके अनुसार देह में रोग, व्यापार में कर्ज, घर में कर्कशा नारी और आउट आफ स्टेशन में गमना गमन, ये चार पाप के फल संसारियों के साथ लगे ही रहते है। पाप की वृद्धि मोह के कारण ही होती है। इसलिए यदि पाप के कटु परिणामों से बचना है, तो मोह त्याग की कठिन तपस्या में लग जाना चाहिए। इस अवसर पर कटारिया परिवार, पिरोदिया परिवार, मेहता परिवार और मूणत परिवार सहित रतलाम के संभ्रात परिवार के भाई-बहन उपस्थित रहें।

स्थिरता रहेगी 26 जून तक मोहन बाग में

श्री हुक्मगच्छीय साधुमार्गी शान्त-क्रांति जैन श्रावक संघ के आचार्यश्री नामली से विहार कर रतलाम में पधारे। सोमवार सुबह वे सैलाना रोड स्थित मोहन बाग पधारेंगे। यहां 26 जून तक स्थिरता रहेगी। ये जानकारी संघ मंत्री दिलीप मूणत ने दी।

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