शख्सियत : संक्रमण के इस दौर में आसान नहीं कविता लिखना : माला शर्मा

मनुष्य का सर्वाेपरि गुण है कि वह कभी हारता नहीं है। कठिन से कठिन समय में भी मनुष्य की मेघा उसे रास्ता दिखाती है। मनुष्य की चेतना का अब तक का विकास द्वंद्वों के कारण हुआ है। वाल्मीकि के अंतर में उठे ज्वार-भाटे ने रामायण को जन्म दिया। वहीं महाभारत के सबसे कठिन मोड़ पर जब ’’क्या करें, क्या न करें’’ का सवाल उठ खड़ा हुआ तभी ऐसे क्षणों में गीता का दर्शन जन्मा। यह चेतना की अनुगामी गति है जिसका चक्र कभी पीछे नहीं घूमता।

नरेंद्र गौड़

’’भारतीय समाज इस समय संक्रमण के दौर से गुजर रहा है। यह संवेदनशील लोगों के लिए कठिनतम दौर है और ऐसे निर्मम समय में कविता लिखना आसान नहीं है। लेकिन यह उन रचनाकारों की अग्निपरीक्षा की घड़ी है जो निरंतर समाज से अपने गहरे सम्बंधों की घोषणा करते नहीं थकते। यह विश्व स्तर पर ऐसा क्रूर समय है, जब सिध्दांत और विचार लगभग साथ छोड़ते प्रतीत हो रहे हैं’’।

यह कहना है चर्चित कवयित्री माला शर्मा का। इनका मानना है कि ऐसे में हो यह रहा कि एक बार फिर शून्यवाद की ओर बौध्दिक वर्ग उमड़ता नजर आ रहा है। वहीं युवावर्ग का एक बड़ा हिस्सा आत्महंता बन गया है, लेकिन यह मनुष्य का सर्वाेपरि गुण है कि वह कभी हारता नहीं है। कठिन से कठिन समय में भी मनुष्य की मेघा उसे रास्ता दिखाती है। मनुष्य की चेतना का अब तक का विकास द्वंद्वों के कारण हुआ है। वाल्मीकि के अंतर में उठे ज्वार-भाटे ने रामायण को जन्म दिया। वहीं महाभारत के सबसे कठिन मोड़ पर जब ’’क्या करें, क्या न करें’’ का सवाल उठ खड़ा हुआ तभी ऐसे क्षणों में गीता का दर्शन जन्मा। यह चेतना की अनुगामी गति है जिसका चक्र कभी पीछे नहीं घूमता।

मालाजी की काव्यगत विशेषताएं

विगत एक दशक से मालाजी हिंदी की नई कविता में एक चर्चित नाम है। अत्यधिक महत्वाकांक्षा से परहेज करने वाली इस कवयित्री की कविताओं की खासियत उनका संप्रेषणीय होना है। कठिन शब्दों के उपयोग से परहेज करने वाली इनकी कविताएं आत्म और वस्तुजगत के यथार्थ के जरिए आकार ग्रहण करती हैं। कविताओं में प्रकृति की बारबार उपस्थिति उन्हें दृश्यमान बनाती है।

रचनाओं का प्रकाशन

झारखंड के चाईबासा की मूल निवासी मालाजी इन दिनों संपतचक (गोपालपुर) पटना बिहार में रहने लगी हैं। आप माला हरि के नाम से भी साहित्य सृजन करती हैं। मगध विश्वविद्यालय से स्नातक माला जी के अभी तक चार कविता संग्रह ’’ई बुक अमेजान काइंडली’’ से प्रकाशित हो चुके हैं। जिनमें ’पंखुरी’ ’पंच’, ’सुगंध’, ’दर्द के पैरोकार’ तथा अंग्रेजी कविताओं की एक किताब ’’ब्लैंक वर्सेज’’शामिल हैं। इसके अलावा पलामू से प्रकाशित ’शब्द गंगा’ में भी इनकी रचनाएं छपती रही हैं। आप ‘फेसबुक’ की भी अत्यंत लोकप्रिय लेखिका हैं।

माला शर्मा की चुनिंदा कविताएं

अनुराग

अनुराग के लिए फूल का
और चिड़ियों का
चहकना शेष रह जाता
चट्टानों से ठुमकते
झरते झरनों के गीत
सन सन बहती
ज्ंागल से हवाओं की
छुन छुन सरगम
नदियों की कलकल
शेष रह जाती
शेष रह जाती
गहरे समुंदर की
आकाश यात्रा
जरूरी था हिमालय के
हृदय पटल पर
सख्त जीमीं
हिमखंड का पिघलना।

प्रेम

जिस किसीने दावा किया
वो झूठे थे
जिसका कोई प्रमाण नहीं
उसका दावा कैसा?
बात रंग की होगी
बात गुलाब की होगी
वही होगा, वही होगा
और होगा कोई नहीं
सांसों में घुली सुगंध को
फिर कौन पेश करेगा
दर्प दास्तां कहेगा
अनहद सुनेगा
तो क्या होगा?
फिर चांद पानी में उतरेगा।

चाहत

शाख पर कोंपलें
अनछुईं
नए ही निकलेंगीं
रंग बिरंगे
ताजगी भरे
पुष्प खिलेंगे
लाजमी है खुमारी
मधुवन की
चाहत है पतझड़ की
गीत तो मीठा ही
गाएगा वसंत
रूत क्या है वह तो
आती जाती रहेगी
सलामत रहे पीपल पलाश।

इतना बता

आग, पानी, हवा सब छेड़ दे
तू देख धड़कनें
मिलती कहां हैं
नादान है परिंदे की
परवाज चाहता है
सहमा है इस कदर
खुद को कमरे की
कैंद में रखता है
मिसाल है इश्क की
सीना ठोककर कहा है
अब कोई तो बोलो
फिर सिर सबका
सिजदे में क्यों झुका है?
रहम न सही थोड़ी-सी
शर्म तो रख
जमीर को इतना सा तो
जिंदा रख
हकीकतें देखूं तो फिर
क्या देखूं?
सूर्य अपनी जगह पर है
बस इतना बता
किस भरम में अपना
और शहर का हाल किया है।

चल कहीं

चल कहीं निकल चलें
यूं हीं थोड़ी दूर
जमीं पर चलें
यह रहमतों सी शाम
खामोशी कोई खलिश सुलगे
कहीं चिराग जलें
कहीं रोशनी के दिए
झिलमिल झिलमिल
नदी संग चले
हो कोई गुफ्तगू
हवाओं संग कोई पत्थर
पांव से बिदके
कहीं नर्म घास पर
किसी ग़जल के तरन्नुम मचले
हो मुगालतों में रहगुजर
कहीं कोई वाक्या तो गुजरे
चल कहीं निकल चलें
यूं ही थोड़ी दूर
कहीं जमीं सौंधी महके।

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