धर्म संस्कृति : जब धर्म के साथ चलते हैं तो होता है मंगल ही मंगल
⚫ आचार्य श्री विजय कुलबोधि सुरीश्वरजी म.सा. ने कहा
⚫ सैलाना वालों की हवेली, मोहन टॉकीज में प्रवचन
हरमुद्दा
रतलाम, 27 जून। श्री देवसूर तपागच्छ चारथुई जैन श्रीसंघ गुजराती उपाश्रय, श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी जैन श्वेताम्बर तीर्थ पेढ़ी रतलाम के तत्वावधान में आयोजित चातुर्मास प्रवचन के दौरान आचार्य श्री विजय कुलबोधि सूरीश्वरजी म.सा ने मंगलवार को सैलाना वालों की हवेली, मोहन टॉकीज में धर्म को परिभाषित किया। उन्होने कहा कि धर्म ही सर्वश्रेष्ठ है। जहां धर्म है, वहां सफलता है। अधर्म के बजाए जहां अधर्म होता है, वहां असफलता होगी। मंगल भी कई तरह के होते हैं, लेकिन यह तब ही मंगल है, जब धर्म के साथ होते है।
धर्म को सिद्ध करने के हैं तीन उपाय
आचार्य श्री ने धर्म को सिद्ध करने के 3 उपाय बताते हुए कहा कि कर्म, करण और अंतःकरण इन तीनों के बिना धर्म सिद्ध नहीं होगा। धर्म का सर्वश्रेष्ठ साधन शरीर है। दुर्गति की ओर जो ले जाए वह अधिकरण है और जो सदगति की ओर ले जाए वह उपकरण है।
भगवान की पूजा करें भाव से
आचार्य श्री ने कहा कि भगवान को भाव से नहीं पूजना ही सारी समस्याओं की जड़ है। एक बार आप भाव से भगवान की पूजा करें, फिर देखिए क्या होता है। आचार्य श्री ने मोक्ष के बारे में बताया कि मोह को त्यागना ही मोक्ष है। जहां मोह का क्षय होता है, वहां मोक्ष होता है। मंदिर में यदि खाली हाथ जाओगे तो खाली हाथ आओगे। यदि मंदिर जाओ तो कुछ दान करके जरूर आओ। आचार्य श्री के प्रवचन प्रतिदिन सुबह 9.15 से 10.15 के बीच सैलाना वालों की हवेली मोहन टाॅकीज में हो रहे है।