शख्सियत : मनुष्य के भीतर भी लड़ा जा रहा अलग तरह का युध्द : वीना करमचंदाणी
⚫ ऐसा नहीं कि युध्द सिर्फ सीमाओं पर ही लड़ा जाता है, वरन् मनुष्य के भीतर भी एक अलग तरह का युध्द लड़ा जा रहा है जो रोजमर्रा जीवन की तकलीफों के मोर्चे पर है जिसमें गोलियां चलने की आवाज नहीं होती न बम बरसते हैं, बस आए दिन किसी न किसी अखबार के पन्ने पर इस युध्द में हार गए आदमी-औरतों और कई बार तो बच्चों तक के द्वारा आत्महत्या कर लिए जाने की बस खबरें छपकर रह जाती हैं। ⚫
⚫ नरेंद्र गौड़
“जब तक मनुष्य के आंतरिक दुख और तकलीफें लावे की तरह पिघलकर आत्मीय चेतना और मानवीय रिश्तों में तब्दील नहीं हो जाती तब तक, कहानी लेखन की चिंता और चेतना कहानीकार को आंतरिक संवेदनों में बदलने को विवश नहीं करती है, न कहानी का रूप ग्रहण करती है। ऐसा नहीं कि युध्द सिर्फ सीमाओं पर ही लड़ा जाता है, वरन् मनुष्य के भीतर भी एक अलग तरह का युध्द लड़ा जा रहा है जो रोजमर्रा जीवन की तकलीफों के मोर्चे पर है जिसमें गोलियां चलने की आवाज नहीं होती न बम बरसते हैं, बस आए दिन किसी न किसी अखबार के पन्ने पर इस युध्द में हार गए आदमी-औरतों और कई बार तो बच्चों तक के द्वारा आत्महत्या कर लिए जाने की बस खबरें छपकर रह जाती हैं।”
यह बात मूल रूप से सिंधी भाषी लेकिन हिंदी में कहानियां लिखने वाली जानी मानी लेखिका वीना करमचंदाणी ने कही। इनका हाल ही में कहानी संकलन ‘ज़िंदगी के दरवाज़े’ प्रतिष्ठित प्रकाशन संस्थान ‘बोधि प्रकाशन जयपुर’ से छपा और चर्चित हो रहा है। इस संकलन में एक से बढ़कर एक पंद्रह कहानियां हैं और अधिकांश कहानियां घर परिवार तथा सामाजिक जीवन की विसंगतियों को उजागर करती जिंदगी के दरवाजों को खोलती, खटखटाती ही नहीं, आवाज़ लगाती- सी लगती हैं। कई बार ये दरवाजे बाहर तो कभी भीतर की तरफ खुलते हैं। इन घरों में सभी तरह के लोग रहते हैं। देश के बटवारे के बाद आए सिंधी भी हैं तो पीढ़ियों से यहीं रहने वाले लोग भी हैं। वीनाजी की लगभग सभी कहानियों के पात्रों के मन में बुजुर्गों के प्रति बहुत आत्मीयता है और परिवार संयुक्त हैं। कभी यह आपस में तो कभी खुद से ही लड़ रहे होते हैं और आश्चर्य इस बात पर है कि व्यवस्था से कोई नहीं लड़ रहा होता है, लेकिन बताने की जरूरत नहीं है कि हम सभी ईश्वर की नहीं, वरन् व्यवस्था के हाथों की कठपुतली हैं।
इनका कहना है कि ’’सिंधी समाज मूलरूप से व्यापारी रहा है, लेकिन सत्तर के दशक में इस समाज की युवापीढ़ी ने आधुनिकता के चलते शिक्षा के महत्व को जाना जिसका परिणाम यह रहा कि आज सिंधी समाज के हजारों युवक-युवतियां शिक्षा प्राप्तकर उच्च पदों पर आसीन हैं।’ वीनाजी की कहानियों के बारे में आम राय यह बनती है कि कहानियों की स्त्रियां बगावत नहीं करती, वरन् वे सामंजस्य के साथ चलकर अपना परिवार बिखरने नहीं देती।
अनेक उपलब्धियों से भरा जीवन
वीनाजी कथाकार के साथ ही कवि एवं नाटककार भी हैं। राजस्थान के अलवर जिले के कस्बे खैरथल में जन्मी वीना जी के सिंधी भाषा में दो कविता संकलन प्रकाशित हैं। ’’खोले खम्ब उडाम’’ तथा हिंदी से सिंधी में अनुदित कविताओं का संकलन ’’इहा दुनिया’’। ’’जिंदगी के दरवाजे’’ इनका हिंदी में लिखा कहानी संकलन है। इसके अलावा केंद्रीय साहित्य अकादमी व्दारा प्रकाशित ’’सिंधी कविता एन्थोलॉजी’’ में भी इनकी कविताएं शामिल हैं।
प्रकाशन, पुरस्कार एवं सम्मान
बीएससी, एमए तथा एमजेएमसी कर चुकी वीनाजी राजस्थान सरकार के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग में पूर्व सहायक निदेशक के पद पर कार्य करने के बाद स्वतंत्र लेखन कार्य में व्यस्त हैं। इन्होंने दूरदर्शन दिल्ली में पंद्रह वर्षों तक समाचार वाचन सहित अन्य कार्यक्रमों का संचालन किया है। इसके अलावा आकाशवाणी दिल्ली से गणतंत्र दिवस सर्वभाषा कविसम्मेलन में सिंधी भाषा के कवि रूप में प्रतिनिधित्व किया है। इसके अलावा वीनाजी सोलह वर्षों तक लगातार राज्य स्तरीय गणतंत्र दिवस एवं स्वतंत्रता दिवस समारोह का संचालन भी कर चुकी हैं। इनके सिंधी काव्य संकलन ’’खोले खम्भ उडाम’’ को राज्यस्तरीय पुरस्कार सहित अनेक सम्मान विभिन्न अवसरों पर प्राप्त हो चुके हैं। केंद्रीय साहित्य अकादमी व्दारा मुम्बई में आयोजित ’’ अस्मिता’’ कार्यक्रम में कविता पाठ एवं पाठकों से संवाद आयोजन में भी शिरकत कर चुकी हैं।
युवा संसार में प्रवेश कराती कहानियां
जानी मानी कथाकार ममता कालिया का कहना है कि ’’वीना करमचंदाणी की कहानियां पढ़ने पर हम एक युवा संसार में प्रवेश करते हैं। उनका लिखने का अंदाज एकदम अलग और मौलिक है। ’’ सपनों का बोझ’’ कहानी कोटा कोचिंग केंद्रों की सख्ती और अमानवीय व्यवहार को रेखांकित करती है तो ’’जिंदगी़ के दरवाजे़’’ जीवन के पॉजेटिव पक्ष को सामने लाती है। वीना के पास सशक्त कलम और युवा दृष्टि है। युवता और नव्यता ने मन मोह लिया।’
सिंधी मातृभाषा के बावजूद हिंदी में कहानियां
सिंधी कहानी लेखिकाओं में वीना करमचंदानी जाना पहचाना नाम है। सामाजिक तथा पारिवारिक जीवन की विसंगतियों को बहुत सरल और रोचक ढ़ंग से यह कहानियों में उजागर करती हैं। सिंधी मातृ भाषा होने के बावजूद इन्होंने हिंदी में अनेक कहानियां लिखी हैं जो पाठकों में चर्चित हैं। इनकी कहानी ‘एक सिलसिले का अंत’ में बुजुर्ग पति-पत्नी अपने एकाकी क्षणों को किस तरह बिता रहे होते हैं, इसी पर केंद्रित है। वे जब भी समय मिलता है अपने अतीत में खो जाते हैं। उस हर एक पल को अनेक बार जीते हैं जिसे उन्होंने करीब से छुआ। यह बुजुर्ग बटवारे के बाद पाकिस्तान में अपना सभी कुछ छोड़ आने को मजबूर हुए हैं। जाहिर है, वहां की गलियां, लोग और यहां तक कि वहां का जर्रा-जर्रा इनके दिमाग की पर्तों को दस्तक देता है। वीनाजी ने उनकी जिंदगी को बहुत मार्मिकता के साथ उजागर किया है।
जीवन के विभिन्न किसम के दरवाज़े
इसी तरह सपनों का बोझ, फैसला, विकल्प, जाल, यू टर्न, एक सिलसिले का अंत, गुमशुदा, हम्म, नसीहत, दोहरी जिम्मेदारी, गंगा मौसी, कैक्टस के लाल फूल, टारगेट और फुरसत कहानियों में जीवन के विभिन्न किसम के दरवाज़े हैं। लेकिन इन घरों के बाशिंदे वे ही हैं, जिन्हें हम देखते हैं। कई बार तो लगता है कि यह हमारी ही कहानियां हैं। हम ही इनके पात्र हैं और भाषागत चमत्कार में इतना खो जाते हैं कि लगता है पात्रों की पीड़ा हमारी है। कहानियों की भाषा सरल और सच्ची है। कहन का खरापन कभी-कभी खुरदरा भी हो उठता है।
सभी पात्र हार थक कर फिर कर लेते हैं सुलह
यह कहानियां आपकी आंखों की कोर नम कर सकती हैं, लेकिन हिचकियां लेने को मजबूर नहीं करती हैं। पाठक को उत्तेजित कर देने वाले पात्रों का विद्रोह नहीं है। सभी पात्र हार थक कर फिर सुलह कर लेते हैं। हर कहानी उपन्यास में ढ़लने की क्षमता रखती है और प्रत्येक कहानी पर समीक्षात्मक किताब तक लिखी जा सकती हैं। यहां गौरतलब है कि इनके पति हरीश करमचंदाणी भी रचनाकार हैं। वीनाजी की कथायात्रा जारी रहेगी, ऐसी उम्मीद है।