बहुत अधिक संघर्ष और बड़े योगदान के बाद पाया थोड़ा यश ऐसे थे डॉ. आचार्य

साहित्य-मनीषी डाॅ.मणिशंकर आचार्य को याद करते हुए
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साहित्य और जीवन में मेरे अग्रज डाॅ.मणिशंकर आचार्य
को इस धरती से बिदा हुए चार बरस देखते ही देखते बीत
गये । डाॅ.मणिशंकर आचार्य उस जमात के थे , जो बहुत
अधिक संघर्ष और बड़े योगदान के बाद थोड़ा बहुत यश
ले कर बाकी सब यहीं छोड़ कर चले जाते हैं ।

डाॅ.मणिशंकर आचार्य रतलाम जिले के बहुत ही छोटे से
गाँव रेन मऊ की उपज थे।शुरु से ही अध्ययनशील और
रुचिसम्पन्न । आजीविका के लिये स्कूली अध्यापक से
शुरुआत की । रतलाम के जाने -माने दरबार हाई स्कूल,
जहाँ कभी कवि प्रदीप और प्रभाकर माचवे ने विद्यार्थी
जीवन बिताया था ,उस स्कूल में आद्यंत विद्यार्जन किया,
और बाद में वहीं अध्यापक भी नियुक्त हुए । डाॅ.आचार्य
के इतने सारे शिष्य यहाँ से वहाँ तक बिखरे पड़े हैं , पता
लगाना मुश्किल ।

अपनी लगन से उन्होंने पी.एच.डी .की उपाधि प्राप्त की ,
और 1974 में वे महाविद्यालयीन सेवा में आ गये । इस
दौरान वे बड़नगर , अम्बिकापुर , जावरा और रतलाम के
महाविद्यालयों में रहे , और सुयोग्य शिष्य तैयार किए ।

आचार्य जी डाॅ.राममूर्ति त्रिपाठी के सर्वाधिक प्रिय शिष्य
थे । इसके पीछे खास कारण था- आचार्य जी का विनम्र
स्वभाव और जिज्ञासा की प्रवृत्ति।वे गोस्वामी तुलसीदास
जी के अनन्य भक्त थे ,मानस की चौपाइयों और दोहों में रमे हुए थे । स्वर्गीय स्वयंप्रकाश उपाध्याय के गहन संपर्क
में रहते हुए श्री अरविन्द के साहित्य और दर्शन का उन्होंने
गम्भीर अध्यय किया था । 1973 में पाण्डिचेरी जा कर
लौटने के बाद उनके विचारों में भारी परिवर्तन आया , जो
उनके रचे विपुल साहित्य में दिखाई देता है ।”मृत्यु के द्वार
पर दिव्यजीवन की दस्तक” , “चैत्यपुरुष”,”अहं ब्रह्मास्मि”,
“आँसू”, “रूपक और तुलसी” ,” स्वतंत्रता , शिक्षा और
संस्कृति” जैसी कृतियों में डाॅ.मणिशंकर आचार्य जी की
साहित्य साधना के दर्शन होते हैं । उनकी लिखी पुस्तकों
में ” परम्परा और परिवेश ” तथा ” बिखरे मोती ” को जो
सम्मान प्राप्त है , वह साधारण नहीं ।

आचार्य जी के प्रशंसकों में डाॅ.जयकुमार जलज , देवव्रत
जोशी , सुखदेवप्रसाद ठाकुर , आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी ,
पुरुषोत्तम चौऋषि सहित वे कई लोग हैं ,जो जीवनमूल्यों
में विश्वास करते हैं , और यह विश्वास करते हैं कि मनुष्य
अपनी जड़ों की ओर लौटेगा किसी न किसी दिन ।

आज एक जुलाई । डाॅ.मणिशंकर आचार्य जी की पुण्य-
तिथि के अवसर पर श्रद्धासुमन अर्पित करता हूँ ।

✍ डॉ. मुरलीधर चांदनीवाला

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तीस बरस पुराना दुर्लभ छायाचित्र ऋतम् के सौजन्य से :

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दाँये से मैं , स्व. डाॅ.मणिशंकर आचार्य, स्व.सुखदेवप्रसाद ठाकुर, स्व.स्वयंप्रकाश उपाध्याय, प्रकाश दुबे, अशोक
अग्रवाल । नीचे बैठे हुए रमेशचंद्र पाठक, ज्ञानदत्त पांडे,
महेश कुमार व्यास, सतीश पंड्या और अन्य।

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