गीत : हलाहल पी लिया है
⚫ हमें यूं ही नहीं अमृत मिला है,
किसी ने फिर हलाहल पी लिया है।
न जाने कौन सी तृष्णा ने आख़िर,
समूचा ही ये जंगल पी लिया है।
तुम्हारी चाहतों के आसमां ने,
हमारा कुछ धरातल पी लिया है।
नदी की दास्तां वो क्या सुनेगा,
यहां जिसने मरूस्थल पी लिया है।⚫
🟥 आशीष दशोत्तर
हमें यूं ही नहीं अमृत मिला है,
किसी ने फिर हलाहल पी लिया है।
मिटा है कोई तो संवरा कोई है,
निरंतर यूं नहीं निखरा कोई है।
चुरा कर ताज़गी भीगे अधर से,
नमी ही छीन ली जीवित लहर से।
न जाने कौन सी तृष्णा ने आख़िर, समूचा ही ये जंगल पी लिया है।
चलो कुछ तृप्त तो तुम हो गए हो,
नई दुनिया में आख़िर खो गए हो।
ख़बर तुमको न होगी कुछ हमारी,
बिगाड़ी थी वो सूरत कब संवारी।
तुम्हारी चाहतों के आसमां ने, हमारा कुछ धरातल पी लिया है।
बहुत से दर्द पहले ही क्या कम थे,
भरे झोली में केवल ग़म ही ग़म थे।
सहन करना पड़े फिर दंश कितने,
मिटाते ही रहोगे वंश कितने ?
नदी की दास्तां वो क्या सुनेगा, यहां जिसने मरूस्थल पी लिया है।
🟥 आशीष दशोत्तर
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