धर्म संस्कृति : हंसते-हंसते पाप किया, तो उसका फल रोते-रोते भोगना पड़ेगा
⚫ आचार्य प्रवर श्री विजयराजजी मसा ने कहा
⚫ आलस्य और प्रमाद, सजगता और सतर्कता के दुश्मन
⚫ छोटू भाई की बगीची में चातुर्मासिक प्रवचन
हरमुद्दा
रतलाम,17 जुलाई। आलस्य का दूसरा नाम गफलता है। इसलिए जीवन में कभी गाफिल नहीं बनना चाहिए। सैनिक गफलत में जाता है, तो देश की सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है। डाक्टर गफलत में जाए, तो मरीज की जान पर बन आती है। चालक गफलत में पडे, तो सवारियां सांसत में पड़ जाएगी। ग्रहणी गफलत में रही, तो परिवार बिगड़ सकता है और साधु-संत गफलत में रहे, तो उनका साधुत्व चला जाएगा।
यह बात परम पूज्य प्रज्ञा निधि युगपुरुष आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने कही। छोटू भाई की बगीची में प्रवचन के दौरान दुर्मति के चैथे दोष आलस्य से बचने आव्हान करते हुए उन्होंने कहा कि गफलता गलती की और ले जाती है, जिससे सदैव सजग और सतर्क रहने की आवश्यकता है। खुद में बदलाव सजगता से आता है तथा दुनिया के बदलाव से सतर्कता पूर्वक बचा जा सकता है। सतर्कता में रहने के लिए खुद में बदलाव लाना पडेगा। बदलाव पांच स्टेपों-आशा, आस्था, आत्म विश्वास, आत्म साहस और आत्म पुरूषार्थ करने से आता है।
आलस्य और प्रमाद सजगता और सतर्कता के दुश्मन
आचार्यश्री ने कहा कि आलस्य और प्रमाद सजगता और सतर्कता के दुश्मन है। प्रमाद से तात्पर्य आत्म स्वरूप से विस्मृति है। व्यक्ति जब आलस्य और प्रमाद में जीता है, तो उसे अपने आत्म स्वरूप की स्मृति नहीं रहती। कुत्ता भौंककर चला जाएगा, गधा लात मारकर चला जाएगा और सांप काटकर चला जाएगा, लेकिन आलस्य इनसे भी ज्यादा खतरनाक है। उससे पूरी जिदंगी बर्बाद हो जाती है। हर व्यक्ति को आलस्य से बचना चाहिए।
आलस्य का समाधान सत्संग
उन्होंने कहा कि धर्म के कार्य में कभी आलस्य मत करो और करना ही हो, तो अधर्म के कार्य में करो। आजकल लोग धर्म करते-करते रोते है और पाप करते-करते हंसते है, जबकि धर्म हंसकर और पाप रोकर करना चाहिए। यदि हंसते-हंसते पाप किया, तो उसका फल रोते-रोते भोगना पडेगा। लेकिन हंसते-हंसते धर्म करोगे, तो कभी रोना नहीं पडेगा। आचार्यश्री ने कहा कि संसार में साधु की समता का, पिता की क्षमता का और माता की ममता का अंदाजा कभी नहीं लग सकता है। सत्संग, आलस्य का समाधान है। सत्संग करने पर आलस्य और अकर्मण्यता सब समाप्त हो जाते है।
हिंसा की अनुमोदना से बचने का आह्वान
आरंभ में उपाध्याय, प्रज्ञारत्न श्री जितेशमुनिजी मसा ने आचारण सूत्र का वाचन करते हुए हिंसा की अनुमोदना से बचने का आह्वान किया। विद्वान सेवारत्न श्री रत्नेश मुनिजी मसा एवं विद्वान श्री धर्यमुनिजी मसा ने भी संबोधित किया। आदर्श संयमरत्न श्री विशालप्रिय मुनिजी मसा ने श्रावक-श्राविकाओं से प्रवचनों पर आधारित रोचक प्रश्न किए। कई श्रावक-श्राविकाओं ने तपस्या के प्रत्याख्यान लिए। संचालन हर्षित कांठेड द्वारा किया गया।