धर्म संस्कृति : लालच और आकांक्षा, अनैतिकता की जन्मदात्री

आचार्य प्रवर श्री विजयराजी मसा ने कहा

हरमुद्दा
रतलाम, 19 जुलाई। संसार, एक सराय है। इसमें कुछ दिन रहना है और फिर सबकों जाना है। सब खाली हाथ आए थे, और खाली हाथ ही जाएंगे। इसलिए अनैतिकता से बचो। सत्य और संयम को अपनाओं। अनैतिकता, दुर्मति का पांचवा दोष है। लालच और आकांक्षा, अनैतिकता की जन्मदात्री है।

यह बात परम पूज्य प्रज्ञा निधि युगपुरुष आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने कही। छोटू भाई की बगीची में प्रवचन देते हुए उन्होने कहा कि विचारकों के अनुसार व्यक्ति जब करवट बदलता है, तो दिशा बदल जाती है और वक्त बदलता है, तो दशा बदल जाती है। नैतिकता और अनैतिकता हमारी भावदशा है। इनके मान से प्रत्येक व्यक्ति को मंथन करना चाहिए कि वे नैतिक है, अथवा अनैतिक है। नैतिकता नहीं होगी, तो कितना ही जप-तप कर लो, वह सार्थक नहीं रहेगा।

नैतिकता के साथ रहते हैं नीति धर्म और इमान

आचार्यश्री ने कहा कि अनैतिकता के दो प्रमुख कारण लालच और आकांक्षा है। वर्तमान में कोई लालच अथवा आकांक्षा से अछूता नहीं है। हम इनकी परिधि में जीते है और ये हमारे केन्द्र बने हुए है। ज्ञानी कहते है, जब तक जीवन में लालच और आकांक्षा रहते है, तब तक नैतिकता को अपनाया नहीं जा सकता। व्यक्ति में जब संयम और संतोष आते है, तभी वह नैतिक बन सकता है। नीति, धर्म और इमान सभी नैतिकता के साथ रहते है।

तब कोई साथ नहीं देता जब पाप का होता है उदय

आचार्यश्री ने आतुरता से बचने का आव्हान करते हुए कहा कि आतुरता ही व्यक्ति को अनैतिक बनाती है। यदि मन में संसार से खाली हाथ जाने का भाव रहेगा, तो अनैतिकता खत्म हो जाएगी। आचार्यश्री ने बताया कि जीवन समस्याओं से भरा है। समस्याओ का सामना करना साहसिकता है। समस्याओं को सहन करना गंभीरता है। समस्याओं का समाधान निकालना समझदारी है और समस्याओं से पलायन करना कायरता है। अनैतिक लोग कायर होते है। नैतिक लोग साहसी, गंभीर, समझदार होेते है। यदि नैतिक बनना है, तो लालच और आकांक्षा से दूर रहकर दुर्मति के पांचवे दोष अनैतिकता से बचना पडेगा।
आरंभ में उपाध्याय, प्रज्ञारत्न श्री जितेशमुनिजी मसा ने कर्मो के बंधन और कर्मो के उदय पर प्रकाश डाला। उन्होने कहा कि पाप की प्रशंसा के समय कई लोग आते है, लेकिन पाप का उदय होता है, तो कोई साथ नहीं देता। इसलिए सबकों पाप से बचना चाहिए।

निरंतर चल रहा है तब आराधना का क्रम

इस मौके पर आदर्श संयमरत्न श्री विशालप्रिय मुनिजी मसा ने श्रावक-श्राविकाओं से प्रवचनों पर केंद्रित रोचक प्रश्न किए। आचार्यश्री की निश्रा में तप-आराधना का क्रम निरंतर चल रहा है। बुधवार को तरूण तपस्वी श्री युगप्रभजी मसा ने 27 उपवास, सेवानिष्ठ, एकान्तर तप के तपस्वी श्री जयमंगल मुनिजी मसा ने 21 और विद्यावाग्नी महासती श्री गुप्तिजी मसा ने 18 उपवास के प्रत्याख्यान लिए। इसी प्रकार सुश्रावक पुनीत पिरोदिया ने 18 उपवास की तप आराधना पूर्ण की। बेले और तेले की लडी में भी कई श्रावक-श्राविकाएं लगातार तप कर रहे है।

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