यह है विडंबना : महाकवि तुलसीदास जी ने घर-घर में बनाया स्थान, मगर जन्म स्थल सोरों पर नहीं है राज्य सरकार का ध्यान
⚫ रसखान के समाधि स्थल की तरह बनना चाहिए स्मारक
⚫ सोरों की अपेक्षा यहां के बाशिंदों को चुभती है शूल की तरह
⚫ बाबा तुलसीदास के जन्म के अकाट्य प्रमाणों को नजरअंदाज कर रही हैं सरकार
⚫ हेमंत भट्ट
देश दुनिया अपनी विशिष्ट पहचान बनाने वाले महाकवि तुलसीदास जी की जन्मस्थली सोरों शुरू से ही अपेक्षा का शिकार रही है। इसे विडंबना ही कहा जाएगा की योगी सरकार ने अब तक इस ओर ध्यान नहीं दिया है। विद्वानों ने भले ही जन्मस्थली को उलझा दिया है मगर सरकार को तो ध्यान देना चाहिए। कृष्ण भक्त रसखान के समाधि स्थल की तरह यहां पर भी स्मारक बनाना ही चाहिए। सोरों की उपेक्षा से सभी व्यथित है। दुखी है। आहत है।
महाकवि गोस्वामी तुलसीदास ने मानस की रचना करके घर-घर में भले ही अपना स्थान बनाया, लेकिन उनका जन्म स्थान सोरों शूकर क्षेत्र होने के बावजूद योगी सरकार हस्तक्षेप नहीं कर रही है। मुद्दे की बात तो यह भी है कि केंद्र-राज्य सरकार तीर्थ नगरी सोरों को लेकर उपेक्षा यहां के बाशिंदों को शूल की तरह चुभती है। वहीं तुलसी बाबा की नगरी के लोग इस बात से भी आहत हैं कि तुलसी के जन्म के अकाट्य प्रमाण को सरकार नजर अंदाज कर रही हैं। विद्वानों का यही कहना है कि अभी नहीं दिया ध्यान तो फिर कभी नहीं दिया जा सकता है। अभी योगी सरकार में बहुत कुछ संभव है।
स्मृतियों को ताजा बनाए रखने के लिए होते रहते हैं आयोजन
महाकवि बाबा तुलसीदास ने सोरों शूकर क्षेत्र में श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को जन्म लिया था। तुलसी का जन्म स्थल तीर्थ नगरी के मोहल्ला योग मार्ग पर स्थित है। तुलसी ने जहां अपने गुरु नरहरि दास से शिक्षा ग्रहण की। यह पाठशाला भी मोहल्ला चौधरी में स्थिति है। यह पाठशाला ही नहीं गुरु नरहरि दास के वंशज भी तीर्थ नगरी में मौजूद हैं। संत तुलसीदास की शादी सोरों के ही मोहल्ला बदरिया से हुई थी। उनकी पत्नी रत्नावली का मकान भी बदरिया में मौजूद है। स्वयं तुलसीदास भी रामचरित मानस की रचना करते हुए इसका जिक्र किया “मैं पुनि निज गुरू सन सुनी कथा सो सूकरखेत, समुझी नहिं तसि बालपन तब अति रहेउ अचेत”। अर्थात मैंने अपने गुरु से पुन: सूकरक्षेत्र में राम कथा सुनी लेकिन तब अत्यधिक अचेता अवस्था के कारण मैं इसे भलीभांति समझ न सका। इन अकाट्य प्रमाणों के बाद भी राजापुर में तुलसी जयंती पर रामायण मेला शासन के धन से आयोजित होता है, जबकि सोरों शूकर क्षेत्र को न तो धन आवंटित होता है और न ही तुलसी की स्मृतियों को ताजा बनाने के लिए कार्यक्रम होते हैं। अपने तई प्रयासों से कुछ स्थानीय आयोजन कर लेते हैं।
सच्चाई का सामना करने की इच्छा शक्ति नहीं
जिंदगी के 83 बसंत देखने वाले आचार्य महीधर शास्त्री का कहना है राज्य सरकार में सच्चाई का सामना करने की इच्छाशक्ति नहीं है। जबकि तुलसी का जन्म सोरों में हुआ है। इसको लेकर एक नहीं अनेक प्रमाण मौजूद हैं। संत तुलसीदास ने अपने ग्रंथों में ब्रज एवं अवधी भाषा का प्रयोग किया है। यह भी इस बात का प्रमाण तुलसी का जन्म स्थल सोरों ही है। राजापुर को तुलसी का जन्म स्थान बनाने वाले तर्क केवल और केवल झूठ से भरे हैं, साहित्य व इतिहास के प्रमाणों से सोरों ही तुलसी की जन्म स्थली सिद्ध होती है।
उपेक्षा से व्यथित हैं, आहत हैं, दुखी हैं
देश-विदेश में सनातन संस्कृति का प्रचार-प्रसार करने वाले सोरों में ही जन्मे आचार्य सत्यव्रत शास्त्री का कहना है कि भले ही सरकारें तीर्थ नगरी की उपेक्षा करें, लेकिन नगर के बाशिंदे सोरों को तुलसी की जन्म भूमि मानते हैं और इसके विकास में एवं तुलसी की स्मृतियों को ताजा रखने की पुरजोर कोशिश करते रहते हैं, जब भी कोई वहां तीर्थ यात्री आते हैं तो उन्हें वह इस मोहल्ले में ले जाते हैं और बताते हैं कि यह बाबा तुलसीदास जी की जन्मस्थली है। पिछले माह ही रतलाम से हरमुद्दा डॉट कॉम के संपादक हेमन्त भट्ट, प्रबंध संपादक मनोज शर्मा, प्रबंधन समिति के शांतू गवली एवं सतीश राठौड़ बाबा तुलसीदास के जन्म स्थल गए और उपेक्षा से रूबरू हुए। इन सभी का यही प्रश्न था कि आखिर ऐसा क्यों होता है ? नेताओं के तो बड़े-बड़े स्मारक बन जाते हैं। मगर सत्य की राह दिखाने वाले अपेक्षित रहते हैं। श्री शास्त्री का कहना है कि हम ही नहीं पूरे नगर के रहवासी इसकी उपेक्षा से व्यथित हैं। आहत हैं। दुखी हैं। सोरों के सभी प्रभावी व्यक्तित्व, नेता, जनप्रतिनिधि प्रयत्नशील है। बाबा तुलसीदास जी की जन्मस्थली की ओर ध्यान दिया जाए। इसका उद्धार किया जाए।
रसखान समाधि स्मारक का 1 साल में हो गया निर्माण से लोकार्पण
जबकि सोरों से कुछ किलोमीटर दूर ही “रमणरेती” में कृष्ण भक्त रसखान का भव्य समाधि स्मारक बनाया गया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हाथों से 14 फरवरी 2021 में स्मारक निर्माण के लिए शिलान्यास हुआ, करीब ढाई करोड़ की लागत से बना और जनवरी 22 में लोकार्पण भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कर दिया। जब योगी आदित्यनाथ कृष्ण भक्त और साहित्यकारों के प्रति इतने गंभीर है तो फिर बाबा तुलसीदास जी की जन्मस्थली के विकास के लिए कटिबंध क्यों नहीं हो पा रहे हैं।