एक दीप उस नमक के नाम
एक दीप उस नमक के नाम
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एक दीप उस नदी के नाम ,
जिसने दिखाया कि
पत्थर के सीने में भी दिल होता है ,
और वह वहीं से फूट कर निकल आई
हमारे जीवन में ।
एक दीप उस भविष्य के नाम ,
जिसमें छोटे-छोटे बच्चे
खेल रहे पकड़म-बाटी ,
उनकी विनती सुन ली जायेगी
और आदमी जिन्दा रहेगा ।
एक दीप उस रोटी के नाम ,
जिसने मेहनत करना सिखाया
औरतों को – आदमियों को ,
वरना भूखे मरते ये
या नोंच -नोंच कर खाते जानवरों को
और जानवर ही बने रहते ।
एक दीप उस आदमी के नाम ,
जो सूरज की किरणों को पकड़ कर
ऊपर तक उठा ,
और ठंडी भाप बन कर
बरस पड़ा जमीन के रिश्तेदारों पर ।
एक दीप उस हवा के नाम ,
जिसने मिट्टी को उड़ना सिखाया
और यह भी सिखाया
कि आकाश में छेद हो सकता है
और वहां खूबसूरत झील में
कमल भी खिल सकते हैं ।
एक दीप उस आत्मा के नाम ,
जो उन सीधे-सादे लोगों में बसती है
जो स्कूल नहीं गये कभी ,
मंदिर भी नहीं गये
फिर भी वे चलते-फिरते स्कूल
और मंदिर की तरह
मिल जाते हैं घर के आस-पास ।
एक दीप उस नमक के नाम ,
जो अदा करना है एक -एक को
अपनी साँसें चुका कर ,
चलते चले जाओ -चलते चले जाओ ,
नाके पर खड़ा हुआ है कोई ,
नमक अदा किये बिना
आगे रास्ता ही नहीं ।
✍ डॉ. मुरलीधर चांदनीवाला
साहित्यकार