धर्म संस्कृति : मैं कौन हूं, मैं कहां से आया, मुझे कहां जाना है, इन्हें बूझो और खुद को पहचानोे
⚫ आचार्य प्रवर श्री विजयराजजी ने कहा
⚫ छोटू भाई की बगीची में चातुर्मासिक प्रवचन
हरमुद्दा
रतलाम, 25 सितंबर। मनुष्य जीवन में ही हम अपनी पहचान कर सकते है। पशुओं को कहे तो वे अपनी क्या पहचान करेंगे। संसार में रहने वालों के लिए मैं कौन हूं| मैं कहां से आया। मुझे कहां जाना है। ये गाइड है। इससे अपनी पहचान करो। भगवान किसी गुफा में नहीं है। मंदिर में भी नहीं है। वे तो अपने भीतर ही है। व्यक्ति जिस दिन खुद को पहचान लेता है। उस दिन उसे भगवान मिल जाते है।
यह बात परम पूज्य प्रज्ञा निधि युगपुरूष आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने कही। छोटू भाई की बगीची में आयोजित चातुर्मासिक प्रवचन में उन्होंने कहा कि मनुष्य आवरणों के कारण खुद को पहचान नहीं पाता है। उस पर पहला आवरण अज्ञानता का रहता है तो दूसरा मोह का है। इसमें सबकुछ मेरा.मेरा का भाव रहता है। लेकिन जैसे ही ये आवरण हटते है हमे पता लगता है कि मैं अविनाशी हूं और आत्म स्वरूप दिखने लगता है। अज्ञान और मोह के आवरण में अपनी पहचान नहीं हो सकती| इसलिए इनसे मुक्त होना आवश्यक है।
जिसको है अपनी पहचान उसी को मिलते हैं भगवान
आचार्यश्री ने कहा कि आज मनुष्य दुनिया का ज्ञान रखता है लेकिन उसे खुद का ज्ञान नहीं होता। जबकि खुद का ज्ञान जब तक नहीं होता, तब तक भगवान को नहीं जान सकते। हर व्यक्ति को चाहिए कि वह खुद को जानने की कोशिश करे क्योंकि कोशिश करने वाले की कभी हार नहीं होती। संसार में कितने ही देवस्थानों में घूम लो लेकिन जिसको है अपनी पहचान, उसी को मिलते है भगवान । यही शाश्वत सत्य है।
आत्म कल्याण के मार्ग पर चलने का आह्वान
आरंभ में उपाध्याय प्रवर श्री जितेशमुनिजी मसा ने आचारंग सूत्र का वाचन किया। उन्होंने आत्म कल्याण के मार्ग पर चलने का आह्वान किया। आचार्यश्री से वयोवृद्ध महासती श्री पारसकंवरजी मसा ने 9 उपवास एवं महासती श्री इन्दुप्रभाजी मसा ने 7 उपवास के प्रत्याखान लिए। अशोक जारोली ने स्तवन प्रस्तुत किया। इस दौरान बडी संख्या में श्रावक.श्राविकागण उपस्थित रहे।