सनातन-संस्कृति और परंपरा : तर्पण और श्राद्ध से पितरों को खुश कर आशीर्वाद लेने के श्राध्द पक्ष की शुरुआत 29 सितंबर से

30 अक्टूबर को प्रतिपदा तथा द्वितीया का श्राद्ध

8 और 9 अक्टूबर को दशमी का श्राद्ध

14 अक्टूबर को सर्वपितृ अमावस्या का श्राद्ध

हरमुद्दा
सनातन संस्कृति और परंपरा में हिंदू पितृ पक्ष को विशेष महत्व है। पितरों और पूर्वजों की शांति और तृप्ति के लिए पितृपक्ष मनाया जाता है। इस दिन विषय रूप से श्राद्ध और पिंडदान करने की मान्यता है। पितृ पक्ष की शुरुआत इस साल भाद्र पद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा 29 सितंबर से हो रही है। 14 अक्टूबर  को सर्वप्रथम अमावस्या का श्राद्ध रहेगा।

ज्योतिर्विद आचार्य दुर्गाशंकर ओझा

ज्योतिर्विद आचार्य दुर्गाशंकर ओझा ने हरमुद्दा से चर्चा में  बताया कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हर साल भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से पितृपक्ष की शुरुआत होती है। यह आश्विन महीने के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक रहती है। शुक्रवार 29 सितंबर को पितृ पक्ष की शुरुआत होगी। वहीं कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि 14 अक्टूबर को इसकी समाप्ति होगी।

एक नजर किस तारीख को किस तिथि का श्राद्ध

⚫ 29 सितंबर को पूर्णिमा का श्राद्ध।

⚫ 30 सितंबर को प्रतिपदा और द्वितीया का श्राद्ध।

⚫ 1 अक्टूबर को तृतीया का श्राद्ध।

⚫ 2 अक्टूबर को चतुर्थी का श्राद्ध। 

⚫ 3 अक्टूबर को पंचमी का श्राद्ध।

⚫ 4 अक्टूबर को षष्ठी का श्राद्ध।

⚫ 5 अक्टूबर को सप्तमी का श्राद्ध।

⚫ 6 अक्टूबर को अष्टमी का श्राद्ध।

⚫ 7 अक्टूबर को नवमी का श्राद्ध।

⚫ 8 और 9 अक्टूबर को दशमी का श्राद्ध।

⚫ 10 अक्टूबर को एकादशी श्राध्द।

⚫ 11 अक्टूबर को द्वादशी श्राद्ध।

⚫ 12 अक्टूबर को त्रयोदशी का श्राद्ध।

⚫ 13 अक्टूबर को चतुर्दशी का श्राध्द।

⚫ 14 अक्टूबर को सर्व पितृ अमावस्या श्राद्ध होगा।

पितृ पक्ष का महत्व

आचार्य ओझा ने बताया कि पितृ पक्ष में पूर्वजों और पितरों के लिए तर्पण और श्राद्ध करने का विशेष महत्व है। माना जाता है कि इस पक्ष में मृत्यु लोक से पितृ धरती लोक पर आते हैं। इसलिए पितृपक्ष के दौरान तर्पण और श्राद्ध करने से पितरों को खुश किया जा सकता है और आशीर्वाद पाया जा सकता है। वहीं पितृ पक्ष में तिथियों के अनुसार पितरों का श्राद्ध करना शुभ माना जाता है। पितृ दोष से मुक्ति और पितरों की शांति के लिए पितृपक्ष पर दान और ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए।

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