साहित्य सरोकार : रचनात्मकता के साथ भावपूर्ण अभिव्यक्ति की हो रही पहचान
⚫ ‘सुनें सुनाएं’ का चौदहवां सोपान में पढ़ी गई रचनाएं
हरमुद्दा
रतलाम, 5 नवंबर। किसी भी मनुष्य की पहचान उसकी रचनात्मकता से होती है। यह प्रसन्नता की बात है कि रतलाम में रचनात्मक रुझान के व्यक्ति अपने भीतर के रचनाकार को बाहर ला रहे हैं और अपनी प्रिय रचनाओं को प्रस्तुत कर शहर में सृजनशील वातावरण बनाने का प्रयास कर रहे हैं। इससे रचनात्मक रुझान वाले साथियों की भावपूर्ण अभिव्यक्ति की पहचान भी हो रही है।
उक्त विचार ‘सुनें सुनाएं’ के 14 वें सोपान में उभर कर सामने आए। शहर में रचनात्मक गतिविधियों को बढ़ाने के लिए निरंतर चलाए जा रहे रचनात्मक आयोजन का 14वां सोपान जी.डी. अंकलेसरिया रोटरी हॉल पर आयोजित किया गया।
इस आयोजन में विभिन्न आयु वर्ग के दस साथियों ने अपनी प्रिय रचना का पाठ कर सुखद अहसास कराया। बेबी दिशिता वशिष्ठ द्वारा कैलाश वशिष्ठ की रचना ‘ गली-गली में शोर सुनाया’ का पाठ, इरफ़ान शेख़ द्वारा शबीना अदीब की रचना ‘दीवानगी’ का पाठ, युसूफ़ जावेदी द्वारा शमशेर बहादुर सिंह की रचना ‘ जो धर्म के अखाड़े हैं’ का पाठ, दिनेश चंद्र उपाध्याय द्वारा बालक राम शाद की रचना ‘बताओ, माजरा क्या है’ का पाठ, श्रीमती रजनी व्यास द्वारा माखनलाल चतुर्वेदी की रचना ‘मुझको कहते हैं माता’ का पाठ, आई.एल.पुरोहित द्वारा डॉ विष्णु सक्सेना की रचना ‘ रेत पर नाम तुमने मेरा लिख दिया ‘ का पाठ,श्रीमती इन्दु सिन्हा द्वारा अताउल्ला खां की रचना ‘मिला न देना तमन्ना ये ख़ाक में मेरी’ का पाठ, दुष्यन्त कुमार व्यास द्वारा बालकवि बैरागी की मालवी रचना ‘पनिहारी’ का पाठ,मयूर व्यास द्वारा अज्ञात रचनाकार की रचना ‘ज़रा सा फर्क होता है रहने और नहीं रहने में’ का पाठ, भावेश ताटके द्वारा श्याम सुंदर रावत की रचना ‘हे भारत के राम जगो’ का प्रभावी पाठ किया गया। इस दौरान शहर के सुधिजन मौजूद थे।