प्रसंगवश : एक बार फिर आजा नानका

“एक बार फिर आजा नानका
जग में फिर उजियारा भर जा
तू था सच्चा शाहो का शाह
तुझसे ही तो था उस युग का मान”

डॉ. नीलम कौर

एक बार फिर आजा नानका
जग में फिर उजियारा भर जा
तू था सच्चा शाहो का शाह
तुझसे ही तो था उस युग का मान

सच ईश्वर जग झूठा है
वेद, पुरान, कुरान सभी में
एक रब का ही है वास
कह पाखण्ड का कर
विरोध धर्म का सत् पथ
तूने ही तो दिखाया है

भूल गये सत् राह जन
मानव-सेवा बन गई
तिजारत है
स्वार्थ सर चढ़ नाच
रहा है
आदमी आदम बनता
जा रहा है
दीन-दुखी की न कोई
सुनता
पददलन कर अपमानित
उनको करता
एक बार फिर आजा नानका
इंसानियत का सबक
सीखा जा नानका।

संत,फकीर का बाना
बन रहा झूठा
धर्म-कर्म लूट के धंधे
बन रहे
सत्ता की ख्वाहिश में
पाखण्डी
धर्म-मजहब का खेल
खेल रहे
मंदिर-मस्जिद को
लड़ाई के अखाड़े बना रहे
एक बार फिर आजा नानका
धर्म का सच्चा सरुप सजा जा।

बहन-बेटियों का क्रंदन
गूँज रहा फिजाओ में,
अपनों के ही हाथों चीर-हरण
हो रहा जमाने में
रिश्ते वहशी बन गये हैं
जिस्म की आग में
सुलग रहे हैं
एक बार फिर आजा नानका
रिश्तों की क्या मर्यादा है
दुनिया को समझा जा।

भटक रहा जग फिर अंधियारों में
गुरु का मा गिर रहा जग में
प्रेम-प्यार-प्रीत मिट रही,घृणा
द्वेष का हो रहा है बोलबाला
एक बार फिर आजा नानका
अँधेरे मनों में उजियारा कर जा
भूले-भटको को राह दिखा जा
घृणा द्वेष हर मन से मिटा जा
एक बार फिर आजा नानका
जग को फिर से सुंदर बना जा।

डॉ. नीलम कौर

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