खरी खरी : परिणाम के पहले सत्ता परिवर्तन का दौर शुरू, भोले भंडारी शिव ने तो सौंप दी सत्ता, अब सत्ता भोगी क्या करेंगे 3 तारीख को, फिर से संभालेंगे या… उम्मीद पर कौन उतरेगा खरा

⚫ हेमंत भट्ट

चार राज्यों में विधानसभा निर्वाचन के तहत मतदाताओं ने अपनी आवाज एवीएम में बंद कर दी है मगर तेलंगाना में मतदान होना शेष है। चुनाव में सभी की नजर फिलहाल मध्य प्रदेश पर टिकी हुई है कि यहां पर क्या होगा? हालांकि परिणाम के पहले ही सत्ता परिवर्तन का दौर शुरू हो चुका है। धर्म नीति पर चलने वाले भोले भंडारी शिव ने 5 महीने सत्ता संभालने के पश्चात पुनः सत्ता की बागडोर भगवान पद्मनाभम (कमल) जी को सौंप दी। मगर अब सत्ता भोगी क्या करेंगे? उनसे सीट छीन ली जाएगी या उन्हीं को काबीज करेंगे। उम्मीद में तो सभी हैं।

वैसे देखा जाए तो मध्य प्रदेश में 2003 में भाजपा का शासन चल रहा है। भाजपा की उमा भारती ने दिग्विजय के चुनावी मैनेजमेंट को चित कर दिया। कांग्रेस 38 सीटों पर सिमट गई। तब से भाजपा सत्ता में है। इस दौरान भाजपा में उमा भारती, बाबूलाल गौर और शिवराज सिंह सीएम रहे। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान डेढ़ दशक से अधिक समय से मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने हुए हैं। पिछले चुनाव में मुख्यमंत्री के बोल थे कि कोई मायका लाल नहीं हरा सकता। इस बात से खफा मतदाताओं ने मुख्यमंत्री चौहान को सबक सिखाया था और कांग्रेस की सरकार बनी, मगर पद के लालचियों ने अपना जमीर बेच दिया। इतने साल सरकार में रहने के बाद भी उनका मोह खत्म नहीं हुआ और खरीद फरोख्त कर फिर से काबीज हो गए सत्ता की सीट पर।

फिलहाल तो हो रही है धड़कनें तेज

चातुर्मास में एक महीना अधिक मास सहित पांच माह की तक सत्ता भगवान शिव ने संभालने के पश्चात कार्तिक शुक्ल पक्ष चतुर्दशी को भगवान विष्णु को सौंप दी ताकि वे राजपाट संभाले। हालांकि चातुर्मास चतुर बनाने का मास कहलाता है। उम्मीदवार और मतदाता इन पांच महीना में चतुर बन गए हैं। अब चतुराई में क्या करते हैं। कौन उम्मीदवार मतदाताओं की उम्मीद पर फिर से खरे उतरेंगे, यह तो वक्त ही बताएगा। मगर फिलहाल तो उनकी धड़कनें तेज हो रही है। और यह भी सच है कि उम्मीद केवल 230 की ही पूरी होगी। बाकी एक बार फिर अगले चुनाव के प्रयास में जुटेंगे।

बोल बच्चन पर छूट रही हंसी

जो चुनाव के रण में ताल ठोकर खड़े हैं और दबंग आवाज में कहा कि हम तो इतने से जीतेंगे, ऐतिहासिक जीत दर्ज करेंगे। मगर उनके बोल बच्चन पर मतदाताओं में हंसी छूट रही है। मतदाताओं को पता है कि पहले भी इसी उम्मीद में जिताया था कि वह आम जनता की तकलीफों को दूर करेंगे, मगर आम जनता की तकलीफ है और बढ़ती जा रही है। अपने खास लोगों को सुविधाओं का ताज पहनाए जा रहे हैं। इसलिए मतदाताओं में अंदर ही अंदर एक आक्रोश देखा तो है। आक्रोश परिवर्तन में तब्दील होता है या नहीं। यदि ऐसा होता है तो एक बार फिर दिग्गज को घर बिठाने का ताज उनके सिर पर आएगा।

भगवान ने छोड़ दिया मगर भक्तों का नहीं छूट रहा

भगवान शिव को सत्ता की मोह माया तो बिल्कुल नहीं है लेकिन उनके भक्त है कि उनसे सिंहासन छूट नहीं रहा है। कुर्सी की लालसा, पद का पावर छोड़ने का मन नहीं कर रहा है। आज तक ऐसा नहीं रहा कि आगे रहकर बोल दिया हो अब हमें चुनाव नहीं लड़ना है, अन्य को मौका दो इतनी दरियादिली किसी ने नहीं दिखाई। जब जनता ने सिंहासन से उतारा, तभी वह घर बैठे हैं।

नहीं है यह नीति ठीक

जब भी आमजन की सुविधाओं के लिए कुछ कदम उठाए जाते हैं तो दबंग एकजुट होकर यही कहते हैं कि हम तो सालों से यही है और यही रहेंगे। यह नीति ठीक नहीं है। इसमें सुधार की जरूरत है। पूरे शहर में यही आलम है, जो जहां पर खड़ा है, वहीं खड़ा रहेगा। उसको हटाने का माद्दा जिम्मेदारों में नहीं बचा है। बाजार हो या बाजार के बाहर सभी दूर यही आलम है। जन सुविधाओं के रास्ते केवल और केवल रह गए हैं, दुकानदारों के वास्ते। नियमों के मुताबिक नहीं चलना तो यहां की परंपरा बन गई है खासकर ऑटो रिक्शा, मैजिक, सहित अन्य वाहन। ठेला गाड़ी वालों का तो भगवान ही मालिक है कहते कि हम घूम-घूम कर बेचते हैं लेकिन उनके सामान की टोकरिया सड़क पर उनकी गाड़ी के आसपास पड़ी रहती है। यातायात सुधार वाले जिम्मेदार आंख बंद करते हुए निकालते रहते हैं।

…और अंत में

तापमान काफी अधिक होने के चलते गर्मी में यातायात सिग्नल राहत के लिए बंद कर दिए गए थे, ताकि लोग धूप में परेशान न हो , मगर बारिश निकल गई, ठंड शुरू हो गई। मावठा भी गिर गया, इसके बावजूद शहर के तीन यातायात सिग्नल शुरू नहीं कर पाए जबकि इनका मेंटेनेंस भरा जा रहा है खजाना खाली हुआ जा रहा है।

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