विचार सरोकार : मनुष्य के विचलित रहने का यही कारण है कि उसके पास सही विचार, दिशा और दशा नहीं

सरोज शर्मा

श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति

जिनका विश्वास गहरा है और जिन्होंने अपने मन और इंद्रियों को नियंत्रित करने का अभ्यास किया है, वे दिव्य ज्ञान प्राप्त करते हैं। इस तरह के पारलौकिक ज्ञान के माध्यम से, वे जल्दी से परम शांति प्राप्त करते हैं।

कहने का तात्पर्य यह हैं कि आध्यात्मिक अंतःकरण सम्पन्न मनुष्य की समस्त सांसारिक कामनाएं, प्रवृत्तियाँ शान्त, अंतर्मुखी और स्थिर हो जाती हैं।

शान्ति का मूल आधार केवल आध्यात्मिक विचार ही है।

संसार के त्रिविध तापों और क्लेशों में उलझा मनुष्य अशान्त, व्यग्र, असहज, असंतुलित और अत्यन्त विचलित रहता है। इसका एक ही कारण है कि उसके पास सही विचार, दिशा और दशा नहीं है।

जय भगवत गीता जय सनातन धर्म

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