साहित्य सरोकार : पालन हारे राम है

धरती के कण कण में फैले, वो उजियारे राम हैं।
जगत पिता सब जन के स्वामी, पालनहारे राम हैं।।

दिव्या भट्ट

कौशल्या के पुत्र निराले, राज महल के लाल हैं।
लक्ष्मण, भरत, शत्रु के भाई, मन के बड़े विशाल हैं।
दशरथ नंदन अवध पुरी के, राज दुलारे राम हैं।
जगत पिता सब जन के स्वामी, पालनहारे राम हैं।।

राजकुमार अवध नगरी के, सबके फिर भी हैं सखा।
स्नेह भरा मन बाँट रहे हैं, हृदय निकट सबको रखा।
केवट, सुग्रीव, निषाद के वो, साथी प्यारे राम हैं।
जगत पिता सब जन के स्वामी, पालनहारे राम हैं।।

भेंट हुई सिय से उपवन में, मधुर नयन मन भा रहे।
इक मुस्कान बिखेरे सिय के, सहर्ष हृदय समा रहे।
प्रेम प्रीत में जैसे गहरे, सागर सारे राम हैं।
जगत पिता सब जन के स्वामी, पालनहारे राम हैं।।

झूठे बेर चखे शबरी के, केवट बाँहों में लिया।
एक शिला को लगे चरण तब, पत्थर को नारी किया। 
दीन दुखी के संगी साथी, सभी सहारे राम हैं।
जगत पिता सब जन के स्वामी, पालनहारे राम हैं।।

शीश नवाऊँ, चरण पखारूँ, नैनों से वर्षा करूँ।
राम नाम की नैय्या बैठूँ, भवसागर को मैं तरूँ।
बिन बोले ही सबकी सुनते, सबमें न्यारे राम हैं।
जगत पिता सब जन के स्वामी, पालनहारे राम हैं।।

⚫ दिव्या भट्ट

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