शख्सियत : देश के वीर जवानों के सदैव ऋणी रहेंगे हम
⚫ कवयित्री चंद्रप्रभा का मानना
⚫ बहुत सी कविताएं मां भारती की समृध्दि के साथ-साथ वीर सैनिकों के लिए ईश्वर से आत्मिक प्रार्थनाएं हैं। अथाह प्रेम की अनुभूति के सागर का बेहद मार्मिक किंतु अंतर्मुखी मनोभावों का बहिर्मुखी चित्रण करने का भरसक प्रयत्न रहा है।⚫
⚫ नरेंद्र गौड़
’कोई कविता न तो खराब होती है, न ही निष्प्राण, हां वह भविष्य की किसी जीवंत कालजयी रचना का आरंभिक असफल प्रयत्न अवश्य हो सकती है। रचनाकार को अपने अभिभावकों, मित्रों, प्रकृति के साथ ही देश पर अपनी जान न्योछावर करने वाले वीर जवानों के प्रति भी ऋणी होना चाहिए। जहां तक मेरा सवाल है, मेरी कविता की प्रत्येक पंक्ति ही नहीं हर एक अक्षर वीर सैनिकों को समर्पित है।’
यह बात उभरती हुई कवयित्री चंद्रप्रभा ने चर्चा में कही। इनका मानना है कि ’हम सभी का जीवन विषमताओं और विविधताओं को स्वयं में समाहित किए हुए रंग बिरंगे सोपानों से परिपूर्ण घड़े सदृश्य है। जीवन रूपी वांछायें पूर्ण नहीं होती …जो प्राप्त है, वह असंतोष का वाहक है। इस जगत के प्राण स्वरूप सचेतन जीवों की यही विडम्बना है।’
सैनिकों के प्रति समर्पण भाव
चंद्रप्रभा का कहना है कि इनकी बहुत सी कविताएं मां भारती की समृध्दि के साथ-साथ वीर सैनिकों के लिए ईश्वर से आत्मिक प्रार्थनाएं हैं। अथाह प्रेम की अनुभूति के सागर का बेहद मार्मिक किंतु अंतर्मुखी मनोभावों का बहिर्मुखी चित्रण करने का भरसक प्रयत्न रहा है। मन के कुछ आवेग संवेग जो चाहकर भी बहिर्मुखी नहीं हो सके, उनकी हम आप केवल अनुभूति ही कर सकते हैं।’
आत्म वक्तव्य
इनका अपनी कविताओं के बारे में कहना है कि घर की चारदीवारी और दहलीज की सरहदों को लांघकर सीमाओं पर प्रहरी, शूरवीरों की छांव में ठांव ढूंढ़ती ख्वाबों की यायावरी में खोये-खोये से ये संचित राग अपने इस कविता संकलन में इन्होंने प्रस्तुत किए हैं। उनके इस काव्य संकलन को केंद्रीय सुधाधार में प्रवाहित करने हेतु स्वयं से सर्वोत्तम यत्न किए हैं, लेकिन वास्तविक निर्णायक पाठक होते हैं। इनका कहना है कि जीवन के प्रत्येक पक्ष को मजबूत बनाकर चलना और प्रत्येक क्षेत्र में अपना प्रभुत्व बनाए रखना, समय की पाबंदी, अनुशासन आदि गुण इन्होंने अपने माता-पिता से सीखे। माया, इंडिया टुडे, गृहशोभा, निरोगधाम जैसी पत्रिकाएं पढ़ते हुए बचपन बीता। साथ ही इनसे बहुत कुछ सीखा भी, खासकर वाक्य विन्यास को लेकर इनसे समझ विकसित हुई और अभिव्यक्ति का जरिया मिला। इसके अलावा अपने गांव की गलियां, शिवालय, पीपल का बूढ़ा दरख्त, मंदिर का चबूतरा जहां घंटों बिताया समय, वृक्षों की झूमती डालियां देखते हुए लगातार सोचना इन सभी ने मेरे भीतर एक कवि को जन्म दिया। सरहदों पर तैनात सैनिक और उनके कठोर जीवन ने भी मेरी अवचेतन मन पर जबर्दस्त प्रभाव डाला है। शायद ही कभी इस प्रभाव से मुक्त हो सकूं और मुक्त होना भी नहीं चाहती।’
स्त्री के आत्मबोध की कविताएं
’मनमेघ’ चंद्रप्रभा का पहला कविता संकलन है जिसमें इनकी छोटी-बड़ी 49 कविताएं संकलित हैं। रूद्रादित्य प्रकाशन प्रयागराज से प्रकाशित इस संकलन में कुछ कविताएं देश की सीमाओं के रक्षक वीर जवानों को समर्पित हैं तो कुछ रचनाएं प्रकृति को लेकर भी हैं। यह कविताएं मन अपनी मन-वाणी को कलम से अपने गहरे अनुभवों से हमें जीवन बोध का अनुभव ही नहीं कराती बल्कि अपनी तूलिका से अपनी ईमानदारी के साथ व्यक्ति, समाज की सभी कड़वी सच्चाई को भी उजागर करती हैं। यह एक स्त्री के आत्मबोध की कविताएं हैं। इनमें जीवन के अनेक रंग हैं। स्त्री का दहलीज बदलना कोई मामूली घटना नहीं है। यह कविताएं एक निराश महिला की कविताएं नहीं होकर उसके पुरूषार्थ की कविताएं हैं। भारत-चीन और फिर पाकिस्तान के साथ हुए युध्द के दिनों रेडियो पर देश प्रेम के गाने खूब बजा करते थे, लेकिन युध्द समाप्त होने के बाद उनका महत्व भी जाता रहा। देश में बहुत कम कवि होंगे जो वीर सैनिकों के लिए चार छह कविताएं लिख पाए होंगे। वहीं चंद्रप्रभा जी सैनिकों की कठोर जीवन स्थिति के प्रति अपने वक्तव्य में न केवल चिंतित होती हैं, वरन कविताएं भी लिखती हैं-’वे सैनिक हैं, वे योगी हैं, मेहनती, माटी को चूमते, ’धन’ तपस्वी हैं, बराबर उत्तम गुणवत्ता के वज्र मणि हैं, जो अनमोल अकाट्य हैं।’
’बीते दिनों की नमी’ और अन्य कविताएं
कविता आत्मा का मौलिक और विशिष्ट संगीत है। जब मानव हृदय में विचार कौधते हैैं तो सृजनक सतत् प्रक्रिया स्वतः आरंभ हो जाती है। चंद्रप्रभा जी बहुत अच्छा लिखती हैं। इनकी कविताओं में जीवन अमूर्त विचार समय की लय कें साथ धीरे धीरे रागात्मक शब्दों में ढ़लने लगते हैं, इसी के साथ कवि और उसके शब्द दोनों निखरते चले जाते हैं। संकलन ’मनमेघ’ में अनेक बेहतरीन कविताएं हैं जिन्हें बार-बार पढ़ने का मन करता है। ऐसी कविताओं में तुम गए प्रहरी, चंचल मन, फौजी हैं, वीर तुम्हारी अभिलाषा में, समय है बलवान, सीमाओं पर शोर, छलकते पोखर, निश्छल मन, अर्धरात्रि की बुनावट, हंस रहे थे कबीर, शांति के सायरन, बहाने और भी थे, पथ के गीत, भाव जो पढ़े नहीं जाते, ’विपिन रावत को दो सलामी’ को शामिल किया जा सकता है। ऐसा नहीं कि अन्य कविताएं कम श्रेष्ठ हैं, बुनावट और वैचारिक दृष्टि से देखा जाए तो संकलन में बहुत सी बेहतरीन कविताएं हैं। ’बीते दिनों की नमी’ कविता की जितनी भी तारीफ की जाए बम है। यह बहुत गहराई तक दिल को छूने वाली कविता है जिसमें कवयित्री ने अपनी संवेदनात्मक क्षमता के जरिए जान डाल दी है। यह कविता जितनी भी बार पढ़ी जाएगी नए-नए अर्थ खुलते जाएंगे। इसी तरह की एक और भी कविता है ’बहानें और भी थे’ जो कि प्रेम कविता है लेकिन इसमें दुर्लभ अर्थविस्तार है। संकलन की सभी कविताएं बोधगम्य हैं और भाषा सरल तथा संप्रेषणीय है। निश्चय ही ’मनमेघ’ एक महत्वपूर्ण कविता संकलन है जो यह उम्मीद बंधाता है कि चंद्रप्रभा के आगामी संकलन और भी महत्वपूर्ण होंगे।
संक्षिप्त परिचय
छतरपुर (मप्र) के ग्राम बंगराखेरा में जगन्नाथ प्रसाद तिवारी और मुन्नी देवी के घर जन्मी चंद्रप्रभा की प्रारंथिक शिक्षा गांव ही में हुई। इसके बाद इन्होंने सागर से उच्च शिक्षा प्राप्त की। आप एमए, बीएड, एमएड, यूजीसी नेट सेट की परीक्षाओं के साथ ही पीएचडी भी कर चुकी हैं। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में आपकी कविताएं प्रकाशित होती रही हैं। अनेक बार आप आकाशवाणी और प्रसार भारती के काव्य आयोजनों में भी शिरकत कर चुकी हैं।
चुनिंदा कविताएं
बीते दिनों की नमी
वे तमाम दिन गुजर गए
जिनके सहारे
तुमसे मिलने हद से पार गए
ठहर गए अब वो मीलों के रास्ते
अकेले तय किए थे सिर्फ
तुम्हारे वास्ते
अब तो आंधियां ही
खींचकर ले जाएंगी
या गुमनामी का दामन
साथ निभाएगी
बहके की ठहर कर
शहर हो गई जमीं सारी
बिखर गई अरमानों की
हस्ती न्यारी
न तारे, न चंदा
तोड़ने की ललक रही
फिर क्यों अब पल-पल
पलकों पर उतारू
तस्वीर तुम्हारी
मिलना रूबरू
होंगे अनजान महफिलों में
जैसे मिलते हैं दो अजनबी
उफनते जलजलों में
अब शम्मा जलाना
जुबां चुप रहेगी
नजरों की जुबां हजार
बातें करेगी
उफ़़़़! मालूम ना था
इश्क का दरिया
इस कदर डुबोएगा
साहिल में दफन अरमां हमारे
वक्त बे वक्त तुम्हें बुलाएगा।
⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫
छलकते पोखर
पोखर भी बाढ़ लाने की
धमकी दे रहे
मछलियां सुनकर
घबरा रही कि बादल
नहीं फटेगा?
बगुले मुस्करा रहे!
आज ज्यादा भक्त
नहीं बनना पड़ेगा
सागर सपाट थल से ऊबता
लहराते हुए देख रहा
रक्त पिपासुओं को
खारे आंसू ही नहीं होते
खारा स्वेद और
मूत्र भर नहीं होता
बिन रोए! डरे! खारेपन से
विशाल भूभाग भरा हुआ है
वीरता का सागर जो
पोखरों को गीला
होने के लिए बूंद बूंद को
तरसा देगा।
⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫
फौजी हैं
वे सैनिक हैं
वे योगी हैं मेहनती
माटी को चूमते
’धन’ तपस्वी हैं
बराबर उत्तम गुणवत्ता के
वज्र मणि हैं
जो अनमोल अकाट्य हैं
उन्हें देखना होता है
आत्मा की आंखों से
उन्हें प्रेम करना है
दार्शनिक की तरह!
आनंद पाने के लिए
आत्मानुभूति का अनुभव कर
आनंदित होते रहना होता है!
सभी का योग
जोड़ मिलाएं तो वे
उत्तरफल में तपे हीरे हैं।
⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫
देशभक्ति पर ऊंघते ग्रहण
जरूरी नहीं कि
सब के सब
मां मातृभूमि दूध का
फर्ज समझें
कर्ज का मूल्य और
उपकार मानने वाले हों
जरूरी नहीं कि
सब देश के प्रति
ईमान रखने वाले हों
इस माटी के जन्म
कर्म से उऋण हों
इन पवनों की पावन
धाराओं में बहती
सौंधी महक पर
मुग्ध मोहित हों
कुछ आपके ही वेश में
आपके ही देश में
छिपे आस्तीन के सांप होंगे
कुछ देश के गद्दार
छुपे रूस्तम
गद्दारों के बाप होंगे!