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साहित्य सरोकार : मौसम ही में नहीं जीवन में ही रहे बसंत

⚫ परिधान बदला
रिवाज बदला
और बदला हमारा रंग ढंग
नहीं बदला तो बस
बसंत का बसंत

मयूर व्यास “स्पर्श”

वसंत कहूँ
बसंत कहूँ
या कहूँ
सरस्वती की वासंती
पंचम की पंचमी कहूँ


धरती का पीला परिधान कहूँ
या कहूँ
उत्सव कोमल कोंपलों का
बचपन से खुशबू बसी है
घर मे चहुंओर
मां के हाथ के
केसरिया भात की
वो स्कूल में पूजन
के आंच की

कपूर की सुगंध से
दीये की लौ की
आज ऐसा कुछ होता है
पर बहुत कम होता है
परिधान बदला
रिवाज बदला
और बदला हमारा रंग ढंग
नहीं बदला तो बस
बसंत का बसंत


आज भी हरियाली भी वही
फूल भी वही
रंगत भी वही
मौसम का उत्साह भी वही
यदि कुछ बदला है
तो मानने और
मनाने का अंदाज़


आओ करें इस बार कुछ ऐसा
मौसम ही में नहीं
जीवन में ही रहे
हर तरफ बसंत
बसंत और सिर्फ बसंत

मयूर व्यास “स्पर्श

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