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मेरे शहर के सारस्वत पिता : डाॅ.जयकुमार जलज

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मेरे शहर के सारस्वत पिता : डाॅ.जयकुमार जलज
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मेरा शहर रतलाम तीन चीजों के लिए जाना जाता है –
सोना, साड़ी और सेंव। किन्तु मैं जब अपनी इच्छा से
यहाँ रहने आया, तब इनमें से एक का भी आकर्षण मेरे
मन में नहीं था। मुझे यहाँ खींच कर लाने वाले थे। श्रद्धेय
स्वयंप्रकाश उपाध्याय, जो श्री अरविन्द दर्शन के महान्
अध्येता थे और दूसरे हैं डाॅ. जयकुमार जलज, जिनकी
ख्याति मैंने सीहोर में रहते हुए सुन ली थी, जहाँ पर वे मुझसे पहले रह आए थे। जब मैं रतलाम आया, तब स्वयंप्रकाश उपाध्याय जी ने जलज से मिलने का परामर्श दिया, तब पावरहाऊस रोड पर एक ही मकान में ऊपर-नीचे जलज जी और चन्द्रकान्त देवताले जी रहते थे। एक बार में दो मनीषियों से मिलने का सुख इतना अपार होता, कि कई – कई दिनों के लिए ऊर्जा मिल जाती थी।

और सामने वाले की बातों में घुल
जाना पसंद करते
जलज जी हाथ आगे बढ़ाने की जल्दी में नहीं रहते। वे मिलने पर तत्काल कोई प्रतिक्रिया भी नहीं देते। बहुत धीरे -धीरे खुलते हैं और फिर गुलाब की पंखुड़ियों की तरह वे खुलते ही चले जाते हैं। यह खूबी बहुत ही कम लोगों में होती है। बातचीत के बीच वे स्वयं को विषय से बाहर कर देते हैं और सामने वाले की बातों में घुल जाना पसंद करते हैं।

जलज जी हृदय से कवि
डाॅ. जयकुमार जलज भाषाशास्त्र के मूर्धन्य विद्वानों में से एक हैं। भाषाशास्त्र पर लिखी हुई उनकी महत्वपूर्ण पुस्तक “ध्वनि और ध्वनिग्रामशास्त्र” तथा “ऐतिहासिक
भाषा विज्ञान” उन विद्यार्थियों के आग्रह पर लिखी गईं, जो बाद में भाषाशास्त्र के ही सुयोग्य विद्वान् हुए। यह और बात है कि जलज जी हृदय से कवि हैं और कवि होकर वे स्वयं को धन्य मानते हैं।उनका पहला काव्य- संग्रह 1958 में आया था “सूरज सी आस्था” और अब तक का अंतिम है “किनारे से धार तक” जो 2013 में आया और दो साल के भीतर दूसरा संस्करण भी छप गया।

निराला जी के पास बैठ कर उन्हें अपनी कविता सुनाने का सुख
जलज जी मूलत: ललितपुर के हैं। प्रयागराज के समृद्ध साहित्यिक परिवेश में रहते हुए उन्होंने विश्वविद्यालयीन परीक्षाएं तो उत्तीर्ण की, किन्तु इससे भी ज्यादा उन्हें जो मिला, वह था निराला जी के पास बैठ कर उन्हें अपनी
कविता सुनाने का सुख। महादेवी वर्मा की उपस्थिति में अपनी बात रखने का सौभाग्य। डाॅ.रामकुमार वर्मा के अत्यंत प्रिय शिष्य होने का गौरव और विश्वविद्यालय में भाषाशास्त्र पढ़ाने के वे दिन, वे सत्र, जब डाॅ. बाबूराम सक्सेना जैसे जमे हुए भाषाशास्त्रियों का वहाँ वर्चस्व था।

छोटी परंतु असाधारण पुस्तक
जलज जी ने जैन धर्म की प्राकृत, संस्कृत और अपभ्रंश रचनाओं के अत्यंत प्रामाणिक अनुवाद किए हैं, जिनमें कुन्दकुन्द, पूज्यपाद , जोइन्दु , समयसार, अट्ठपाहुड़,
रयणसार , प्रवचनसार , पंचास्तिकाय , ध्यानशतक ,
समाधितंत्र , इष्टोपदेश , परमप्पपयासु ,योगसार प्रमुख
हैं, किन्तु जलजजी को ख्याति दिलाने वाली रचनाओं
में शीर्ष पर खड़ी है। वह बहुत ही छोटी परंतु असाधारण पुस्तक, जिसका नाम है – भगवान् महावीर का बुनियादी चिंतन। यह पुस्तक कितनी मूल्यवान् है , इसका प्रमाण है कि वर्ष 2002 से लेकर अब तक हिन्दी में पचपन संस्करण आ चुके हैं। अंग्रेजी में पन्द्रह ,गुजराती में चार और उर्दू में दो। जलज जी आज भी सक्रिय है। अभी-अभी उन्होंने पू .उमा स्वामी के जैन ग्रंथ ” तत्वार्थसूत्र ”
की सरल और सुंदर टीका लिखी है, जो छप कर आ रही है। इसमें महावीर के दर्शन को सूत्रबद्ध किया गया है।

अपने कवि होने की घोषणा करने से बचते
कवि के रूप में जयकुमार जलज अपने आप में अलग मिट्टी के हैं। कवि होने का कोई प्रदर्शन नहीं। उनकी कविताएं पाठ्यक्रमों में हैं और महाविद्यालय के छात्रों के बीच समवेत स्वर में गायी जाती रही हैं। फिर भी वे अपने कवि होने की घोषणा करने से बचते हैं। वे प्रेम- कविताएं लिखते हैं, किन्तु झूठी उत्तेजना से बचने में सफल हो जाते हैं। उनके जीवन में कठिन संघर्ष है, किन्तु उसके प्रचार के लिए कविता का इस्तेमाल नहीं करते। लिखना और लिखने के लिए मौका ढूँढ लेना जलज जी की दिनचर्या का जरूरी हिस्सा है। वे कभी लिखने के लिए अनूकूल परिस्थिति की प्रतीक्षा नहीं करते। उनका तो यह मानना है कि रचनाकार को तो अनुकूल परिस्थितियां मिलनी ही नहीं चाहिए।जयकुमार जलज की लोकप्रिय कविताओं में बहुधा जिनका उल्लेख होता है, वे हैं – ऐसा नियम न बांधों एक जतन और गाओ मन, निराला के प्रति, तुम्हारे
पत्र, दयाभाव , प्यार लो विद्यर्थियों, किसे पता है,
कोई गीत नहीं गाएगा। जलज जी के अन्य महत्वपूर्ण ग्रंथों में “संस्कृत और हिन्दी नाटक:रचना एवं रंगकर्म” और “संस्कृत नाट्यशास्त्र: एक पुनर्विचार” को नाट्य – संस्थानों और विश्वविद्यालयों में बहुत सम्मान के साथ पढ़ा जाता है।

उदात्त भाव वाला व्यक्तित्व सबसे बड़ी पहचान
इन सबसे ऊपर जलज जी की बड़ी पहचान है। उनका
उदात्त भाव वाला व्यक्तित्व और उत्कृष्ट शिक्षक होना। उन्होंने सतना, रीवा, बरेली, सीहोर और रतलाम में रहते हुए कई योग्य विद्यार्थी तैयार किए। लम्बी पारी
खेली है उन्होंने। मध्यप्रदेश के जटिल माने जाने वाले
रतलाम के स्नातकोत्तर महाविद्यालय में 11 वर्षों तक
प्राचार्य रहते हुए एक भी दिन ऐसा नहीं बीता था, जब जलज जी पढ़ाने के लिए कक्षा में न गए हों।आज भी वे आदर्श शिक्षक के रूप में जाने जाते हैं ।

सम्मान को मिला गौरव
जलज जी के खाते में कई सम्मान दर्ज हैं, जिनमें मध्य-
प्रदेश का कामताप्रसाद गुरु पुरस्कार, अ.भा. विश्वनाथ पुरस्कार, हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग का साहित्य
सारस्वत सम्मान, दिनकर सोनवलकर स्मृति सम्मान,
मध्यप्रदेश लेखक संघ का आदित्य अक्षर सम्मान, अ.भा. हिन्दी सेवी संस्थान इलाहाबाद का राष्ट्रभाषा गौरव, श्रुतसेवा निधि न्यास फिरोजाबाद का आचार्य महावीर
कीर्ति अलंकरण, बुंदेलखंड साहित्य एवं संस्कृति परिषद् भोपाल का राष्ट्रीय छत्रसाल पुरस्कार और आचार्य
हस्ती करुणा लेखक सम्मान। सम्मान भी जलज जी के हाथों का स्पर्श पाकर गौरवान्वित हो गए।

हमारा करते रहें मार्ग प्रशस्त
जलज जी वर्ष 1972 से अनवरत रतलाम में हैं। आने वाले अक्टोबर 2019 में वे पिच्यासी साल के होने जा रहे हैं । रोज कुछ नया पढ़ते हैं। कुछ नया लिखते हैं। घर पर नये -पुराने विद्यार्थियों का आना-जाना लगा ही रहता है। जलज जी के चाहने वालों को यह समाचार सुख देगा कि जलज जी पूर्ण स्वस्थ हैं और वे श्रीमती प्रीति जलज के साथ शहर के साहित्यिक आयोजनों में उपस्थित हो कर नए रचनाकारों का मार्गदर्शन करते हैं और उत्साह-संवर्धन भी। जलज जी मेरे शहर के सारस्वत पिता हैं। उनके चरणों में प्रणाम निवेदित। वे शतायु हो कर हमारा मार्ग प्रशस्त करते रहें।

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✍ डॉ. मुरलीधर चांदनीवाला
साहित्यकार

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