…दिल से : वे हमारा विश्वास थे, हम भी उनका विश्वास कायम रखें
⚫ डॉ. प्रकाश उपाध्याय ने कहा
⚫ ‘हम लोग’ के आयोजन में शहरवासियों ने जलज जी को याद किया
हरमुद्दा
रतलाम, 25 फरवरी। जलज जी अपने जीवन में साहित्य के प्रति पूरी तरह समर्पित रहे। विद्यार्थियों को संस्कार देने में अग्रणी रहे । अपनी ज़मीन को उन्होंने अपने श्रम से मज़बूत किया। रतलाम में आने के बाद यहीं बस गए और रतलाम जलज जी के नाम से जाना जाने लगा । अपने सहयोगियों के प्रति वह बहुत उदार रहे । वे हम सभी का विश्वास थे । उनके विश्वास को कायम रखना हमारी ज़िम्मेदारी है।
यह विचार विद्वान वक्ता डॉ. प्रकाश उपाध्याय ने ‘हम लोग’ द्वारा आयोजित कार्यक्रम ‘मैं जलज बोल रहा हूं’ में व्यक्त किए । कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. जयकुमार ‘जलज’ के आत्मीय प्रसंगों को शहरवासियों ने सुनाते हुए उनके साथ बिताए पलों को साझा किया।
पूर्व प्राचार्य डॉ. कमला शर्मा ने कहा कि मैंने विद्यार्थी जीवन में ही जलज जी को पढ़ लिया था और उसके बाद सेवाकाल के दौरान उनका सानिध्य और मार्गदर्शन मिला । उनका सरल स्वभाव और सभी को सुनने और समझने की प्रवृत्ति सदैव प्रेरित करती रही।
कैलाश व्यास ने कहा कि वे उजियारे के रचनाकार थे । उनका गीत ” रोशनी उगने का एक जतन और, अभी एक जतन और ” पूरे देश में प्रेरक गीत के रूप में गाया जाता रहा । वे अपने गीतों के माध्यम से पूरे देश में पहचाने जाते रहे । डॉ. मनोहर जैन ने कहा कि महाविद्यालय काल से उन्होंने हम जैसी कई पीढ़ियों को आगे बढ़ाया। श्रेष्ठ गीतों की रचना की, जो मृत्यु पर्यंत जारी रही।
‘हम लोग’ अध्यक्ष सुभाष जैन ने कहा कि साहित्य के प्रति उनका लगाव इतना अधिक था कि वे अंतिम समय में भी पुस्तकों को पढ़ने और कुछ नया लिखने के लिए बेचैन रहते थे । उन्होंने कई श्रेष्ठ गीतों की रचना की। उनके काव्य संग्रह देश में चर्चित रहे । कई शोधार्थियों ने उनके काव्य पर शोध कार्य किया। वे हिंदी , संस्कृत के साथ ही अपभ्रंश और पाली का भी अनुवाद कर साहित्य जगत को महत्वपूर्ण कृतियां प्रदान करते रहे ।
विष्णु बैरागी ने उनसे जुड़े संस्मरण सुनाते हुए कहा कि जलज जी का साहित्य में अवदान अनंत है। जलज जी का न होना हम सभी के लिए बहुत बड़ी क्षति है । छायाकार लगन शर्मा ने कहा कि कई पीढियों को साहित्य की सीढ़ियों पर सहारा देकर चढ़ाने वाले , श्रम और कर्म की साधना में विश्वास रखने वाले जलज जी ने अपनी साहित्य साधना से देश में जो स्थान पाया था वह रिक्त हो गया लेकिन उनकी स्मृतियों के ज़रिए वह स्थान सदैव बना रहेगा।
रचनाएं और संस्मरण किए साझा
अपने संस्मरणों से जलज जी को साहित्यकार प्रकाश हेमावत,इन्दु सिन्हा, रश्मि पंडित ,डॉ. पूर्णिमा शर्मा,आई. एम.जैन, डॉ. मुनींद्र दुबे, डॉ. शिव चौहान, प्रदीप नवीन (इंदौर), विनोद जैन (सुखेड़ा), लोकेश शर्मा (गुना), ललित चौरडिया ने याद किया। संचालन करते हुए आशीष दशोत्तर ने जलज जी के संस्मरण एवं रचनाएं साझा की।
कविता एवं चित्रों की प्रदर्शनी लगी
इस अवसर पर जलज जी की कविताओं एवं उनके जीवन चरित्र को प्रदर्शित करते विभिन्न आयु वर्ग के छायाचित्रों का प्रदर्शन भी किया गया । उनकी पुस्तकों को भी प्रदर्शित किया गया । उपस्थितजनों ने इस प्रदर्शनी को सराहा।
इनकी उपस्थिति रही
आयोजन में जलज जी की पुत्रियां श्रद्धा घाटे एवं स्मिता जैन ,दामाद डॉ पदम घाटे सहित साहित्यकार डॉ. मुरलीधर चांदनीवाला , हम लोग सचिव ओम प्रकाश ओझा, डॉ. अभय पाठक, ओम प्रकाश मिश्रा, नरेंद्र सिंह पंवार , अनोखीलाल कटारिया, डॉ गीता दुबे, सुरेंद्र छाजेड़,विभा राठौर, राजीव पंडित,रणजीत सिंहराठौर,आई.एल.पुरोहित सहित शहर के साहित्य प्रेमी एवं विद्यार्थी मौजूद थे।