सन्यास
सन्यास
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जब मौन अपनी जीवन्तता पाएगा
सन्यास आएगा
जब सुबह एक नूतन ओढ़नी ओढ़े आएगी
सन्यास मस्त होकर थिरकेगा
जब नदी बहती बहती अचानक
ठिठक जाएगी संन्यास आएगा
जब सबसे प्रिय खुद में विलीन हो जाएगा
सन्यास अंतर्भूत होकर आएगा
जब समस्त सम्मानित मूर्खताएं टूट जाएगी
सन्यास मुस्कुराता हुआ घट जाएगा
जब मन की सुवन्या गाती लबादा फेंक देगी
सन्यांस अनंग होकर उठेगा
जब चेतना मुक्त सूक्तियां बांचेगी
सन्यास कबीर कबीर गाएगा
जब गुरु गुरुता से लिपट जाएगा
सन्यास तत्क्षण गंगा पिएगा।
✍ त्रिभुवनेश भारद्वाज
सृजनकार