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खरी-खरी : सीट ना छीनवा दे नादान, तभी तो पूर्व मुख्यमंत्री चौहान को सौपी अब कमान

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हेमंत भट्ट

काम नहीं करने का रेला कहीं चुनाव में बिगाड़ा न दे जमा जमाया खेला। पद न छीन ले चुनावी मैदान, इसलिए हलक में आ गई है जान। रतलाम झाबुआ संसदीय सीट से पूर्व मंत्री को हराने के लिए तीन-तीन कैबिनेट मंत्री दिन रात एक किए हुए हैं। रतलाम जिले में एकाधिक कैबिनेट मंत्री का आगमन हो चुका है। मुख्यमंत्री भी जिले के दौरे पर दो-दो बार आ गए हैं मगर आला कमान को डर सता रहा है कि सीट ना छीनवा दे यह नादान। इसीलिए आखिरी में अब पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को जिले की सौंप दी है कमान। हो सकता है मामाजी का रख ले मान।।

यह तो सर्व विदित है कि झक्क सफेद कलप वाले कपड़े पहनने से, गले में दुपट्टा डालने से नेता नहीं बन जाते। नेता बनने के लिए जन-जन में पहुंच रखना जरूरी होती है। आमजन की कसौटी पर खरा उतरना पड़ता है। उनके काम को करना पड़ता है।  जन सुविधाओं को विस्तार देना पड़ता है। मुख्यमंत्री के साथ घूम लिए, उड़ लिए तो उसका प्रभाव कुछ और भी हो सकता है। मगर सीधा-सीधा भाव आमजन पर क्या-क्या प्रभाव डालेगा,  यह कोई नहीं बता सकता।

लीड खिसकने का डर

रतलाम झाबुआ संसदीय सीट के तीन-तीन कैबिनेट मंत्री अपना मंत्री पद बचाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं।  उन्हें बस यही डर सता रहा है कि काश हमने ईमानदारी आमजन की मूलभूत सुविधा के काम की मिसाल कायम कर ली होती तो इतनी परेशानी नहीं होती, जितनी अभी नजर आ रही है। लीड खिसकने का डर अलग ही सता रहा है। क्योंकि इन कैबिनेट मंत्रियों के लिए पहली चुनौती मतदान प्रतिशत बढ़ाने की है।  इसके बारे में देश के गृहमंत्री अमित शाह पहले ही मध्य प्रदेश के मंत्रियों और विधायकों को सबक में चेतावनी दे चुके हैं। वहीं, इन मंत्रियों को अपने-अपने क्षेत्र में विधानसभा चुनाव में मिली लीड को बरकरार रखने की कठिन चुनौती भी है। रतलाम  झाबुआ लोकसभा सीट का नतीजा ही इन कैबिनेट  मंत्रियों का आगे का भविष्य तय करेगा।

चर्चा तो है यह भी

चर्चा तो यह भी है कि कैबिनेट मंत्री को स्वयं पर ही इतना विश्वास नहीं है कि वह अपनी लीड को बरकरार रख पाएंगे या नहीं। इसीलिए लोकसभा चुनाव में खास को बुलाया जा रहा है।  खास बात यह भी है कि भाजपा के पदों पर आसीन भी इतने दमदार नहीं है कि उनकी बात कोई मान ले और काम हो जाए क्योंकि किसी को भी अपनी काबिलियत पर भरोसा नहीं रहा है। इसलिए अपनी जमावट बचाने के लिए कैबिनेट मंत्री, मुख्यमंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री को बुलाया जा रहा है। वरना बोल सकते थे की चिंता की कोई बात नहीं,  हम हैं यहां पर, सब संभाल लेंगे मगर यह बोलने की हिम्मत नहीं है।

दो कर चुके दौरे, तीसरे में होगा रोड शो

शहरी हो या ग्रामीण काम नहीं करने के गड्ढे तो बहुत बड़े हैं। मतदाताओं का रुख अपनी ओर मोड़ने के लिए जतन तो किए  जा रहे हैं। आमसभा ली जा रही है। रोड शो किए जा रहे हैं। इतना ही नहीं प्रदेश के मुखिया भी लगातार दो दिन तक अपनी काबिलियत जताने के लिए दौरे कर चुके हैं। इतना ही नहीं अंतिम दिन एक बार फिर प्रदेश के मुखिया रतलाम की सड़कों पर शो करेंगे।

एक और कैबिनेट मंत्री की दस्तक

कहते हैं घर का जोगी जोगड़ा और आन गांव का संत। कुछ यही सोच कर कैबिनेट मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को भी रतलाम लाया गया या फिर भेजा गया। उनके द्वारा भी कार्यकर्ताओं में जोश भरने का जतन किया। मंत्री विजय शाह का भी आगमन हो चुका। अब वह चुनावी हवन में जोश कितना सार्थक होगा, अगले माह ही पता चलेगा कि विधानसभा चुनाव की लीड कितनी बढ़ी या घटी है।

सताने लगा आला कमान को डर

लगता है आला कमान को अब डर सताने लगा है कि जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों द्वारा मैदानी स्तर पर काम नहीं करने का खामियाजा ना भुगतना पड़े। जिम्मेदार नादान का असर नजर नहीं आने के चलते ही अब रतलाम जिले की कमान पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को सौंप दी है, वह लगातार दो दिन तक जिले में डटे रहेंगे। वह एक जिले में रहकर तीन संसदीय सीट की स्थिति सुधारने के लिए जतन करेंगे।

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