शख्सियत : रचना वह जो युगों-युगों तक रहे अमर

साहित्यकार प्रतिभा त्रिपाठी का मानना

नरेंद्र गौड़

’मीरा के एक पद का छंद है-’अंसुवन जल सींच सींच, प्रेम बेलि बोई, अब तो बेलि फैल गई, होवे सो होई।’ मुझे किसी क्षण सहसा स्मरण हो आया। बारबार स्मृति में उभरता रहा। यह कविता है। एक आत्यंतिक अनुभूति की समूर्त अभिव्यक्ति। एक जीवंत बिम्ब और निर्भय वक्तव्य-होवे सो होई। क्या यह सिर्फ भक्ति भाव है? क्या यह सिर्फ भजन है? नहीं, यह सामंती पतनशीलता और जकड़न का तीव्र प्रतिकार है। असुवन जल सींच- सींच, में वेदना का आर्तराग है। मीरा के अनेक भजनों में हम अपने समय का न केवल चित्रण, वरन सशक्त प्रतिकार भी खोज सकते हैैं। शताब्दियां गुजर गईं, इतिहास का गर्द गुबार बार-बार उठा और बैठ गया, लेकिन मीरा की प्रेम बेलि अभी तक हरी-भरी है, सदाबहार है।’


यह बात आधुनिक कविता की सशक्त हस्ताक्षर प्रतिभा त्रिपाठी ने कहीं। इनका मानना है कि मीरा की अनेक रचनाएं शाश्वत हैं। प्रत्येक रचनाकार जीवन भर ऐसी ही शाश्वत रचना लिखने की कोशिश करता है कि वह अजर-अमर हो कर युगों- युगों तक लोगों के जेहन में याद रहे। कबीर, मीरा, तुलसी, गालिब, मीर तकीं मीर से लेकर ऐसे कवि, शायरों गायकों, चित्रकारों, मूर्तिकारों की लम्बी श्रंृखला है जिन्होंने एक नहीं बीसियों शाश्वत रचनाओं का सृजन किया, लेकिन आधुनिक काल की बात करें तो ऐसा एक भी रचनाकार नजर नहीं आता जिसने कोई अजर-अमर रचना  रचकर अपने रचनाधर्म का पालन किया हो। हालांकि मैं स्वयं भी ऐसी रचना की तलाश में हूं।

रचाव की दुनिया में अजर-अमर

प्रतिभा जी का कहना है कि न सिर्फ कवि, शायरों वरन अनेक गायक कलाकारों और मूर्तिकारों ने भी रचाव की दुनिया में ऐसा बहुत- सा छोड़ा है जिसकी बदौलत आज भी उन्हें याद किया जाता है। भीमबेटका की गुफाओं को देखिए, जहां आदिमानव ने अनेक भित्ती चित्र बनाए हैं, सैंकड़ों साल गुजरने के बाद भी वह आज जस के तस हैं। किसने बनाया होगा, इन्हें उन कलाकारों के क्या नाम रहे होंगे। इसी प्रकार मोनालिसा की पैंटिंग बनाने वाले कलाकार लिओनार्दो दा विंची का नाम तब तक आदर के साथ लिया जाता रहेगा, जब तक धरती पर मानव सभ्यता अस्तित्व में रहेगी। प्रतिभा जी ने कहा कि इनमें अनेक कलाकार ऐसे हैं जो अपनी अमर कृति छोड़ तो गए, लेकिन कहीं भी अपना नाम तक नहीं लिखा। जबकि आज के रचनाकार का नाम किसी रचना के साथ छपने से रह जाए तो हाय तौबा मचाना शुरू कर देते हैं। अजंता ऐलारा की गुफाओं में भित्ती चित्र, खजुराहो के मूर्तिशिल्प अनाम अनजान कलाकारों की शाश्वत रचनाएं हैं। निश्चय ही हम सभी को अपने जीवनकाल में कम से कम एक ऐसी शाश्वत कृति का सृजन करना चाहिए जिसकी बदौलत आने वाला समय हमें याद रखे।

विज्ञान की छात्रा, साहित्य में रूचि

झांसी में जन्मी प्रतिभा त्रिपाठी विज्ञान की छात्रा रही हैं, लेकिन अपनी संवेदनाओं तथा संस्कारों के कारण साहित्य की दुनिया में आ गईं। इन्होंने जीव विज्ञान में एमएससी किया है लेकिन कविता लिखने के लिए आवश्यक वातावरण का निर्माण बचपन के दिनों में ही इनके पिता डॉ. जेपी त्रिपाठी तथा मां श्रीमती मिथलेश कर चुके थे। प्रतिभाजी की शैक्षणिक योग्यता असाधारण हैं। आप ’इन क्लिनिकल पैथोलॉजी’ में डिप्लोमा तथा बीएडटीईटी की परीक्षा भी उत्तीर्ण कर चुकी हैं। विवाह के बाद आप मेरठ में रह रही हैं, जहां इनके पति बिजली विभाग में एसडीओ हैं।

साहित्य की अनेक विधाओं में रूचि

अभिरूचियों के बारे में पूछे जाने पर प्रतिभा जी ने बताया कि लेखन के अलावा पठन पाठन, गायन, नृत्य, बागवानी, पाक कला, वेस्ट मैनेजमेंट, काथा वर्क, साहित्यिक सांस्कृतिक आयोजनों का संचालन और सामाजिक गतिविधियों में शिरकत करती आ रही हैं। इसके साथ ही कविता, मुक्तक, आधुनिक अतुकांत कविताएं, दोहे, गीत, भजन, पुस्तक समीक्षा तथा संस्मरण लेखन में भी गहरी रूचि रखती हैं।

राष्ट्रीय मंचों पर रचना पाठ

अनेक राष्ट्रीय मंचों पर रचनापाठ कर चुकी प्रतिभा त्रिपाठी, आकाशवाणी के नजीबाबाद केंद्र से भी कविताएं पढ़ती रही हैं। आप कई संस्थाओं की अध्यक्ष, सचिव सहित अन्य दायित्वों का भी निर्वाह कर रही हैं। आप अंतरराष्ट्रीय हिंदी साहित्य सभा की विशेष आमंत्रित सदस्य भी हैं।

पुरस्कारों से सम्मानित

प्रतिभा जी को वर्ष 2019 में राजगोपाल सिंह स्मृति गजल सम्मान सहारनपुर कमिश्नर मंडल व्दारा, 2020 में यथार्थ के सारथी संस्था ने साहित्य के क्षेत्र में सराहनीय कार्य करने की वजह से पुरस्कार प्रदान किया था। इनसे लिए गए साक्षात्कार का प्रसारण मुजफ्फरपुर के लोकप्रिय स्थानीय चैनल ’समाचार टुडे’ व्दारा किया जा चुका है। इनकी रचनाएं अमर उजाला, किस्सा कोताह पत्रिका सहित अनेक पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। वर्ष 2024 में इनका कविता संकलन ’मौन से मुखर’ छपा जो साहित्य प्र्रेमियों में बहुत सराहा गया। इनकी कविताओं की खासियत यह कि भाषा की दृष्टि से अत्यंत सरल, स्पष्ट तथा वैचारिक मामले में पारदर्शी होती है। भावी योजना को लेकर इनका कहना था कि पाठकों की मांग पर इनका गजल संकलन भी शीघ्र प्रकाशित होने जा रहा है।


प्रतिभा त्रिपाठी की कविताएं


मौन

हां मौन हूं मैं
निरूत्तर नहीं
निःशब्द संवेदना को
एक अल्पकालिक
अवकाश चाहिए
एक चिंतक, एक
साधक की तरह
इन उव्देलित करते प्रश्नों का
उत्तर खोजने जाना होगा
आत्मा के तल में
तपस्या के समान होता है
मन में छलांग लगाना
और ढूंढ़ लाना वहां से
पाषाण में दबे हुए पुरातत्व!
विश्लेषण कर
निकाल पाना कोई
सार्थक निष्कर्ष
जो समाज का सारथी बनें
इसी सामर्थ से जब
मुंह खोलूं तो अपने
मौन से मुखर होकर
संपादित कर सकूं।

⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫

चिरयौवन की प्यास

जूझने लगती हूं
अक्सर अनवरत बातों से
आईने से ही झगड़
पड़ती हूं
झुर्रियां और दाग धब्बे
चेहरे के भाव
बदलने पर भी नहीं जाते
भौंहें टेड़ी-मेड़ी
ऊपर नीचे कर भी
नहीं छुपा पाती
समय से शिकायत है
या बदलाव से
ये भी नहीं कह पाती
बस, समझ आ गया है
कि बीत गए हैं
अब आधे जीवन के ऋतुमास

बचपन निस्तेज मुख
भी देखा है इन आंखों ने
देखा है यौवन का सुर्ख
कमल सा मधुमास
किंतु अब देखने होंगे
चेहरे परन जाने कितने
ग्रहण से ग्रास
अधेड़ हो चली हूं
चिढ़ाने लगी है
चिरयौवन की प्यास

⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫

स्त्री

स्त्री प्रेम की परिधि में
रहना सहजता से
स्वीकार करती है
विद्रोह तो बेड़ियों से पनपता है
अपेक्षायें कब
घेरकर उसे बंदी बना लेती हैं
पता नहीं चलता
तब उस परिधि के
दायरे को तोड़कर
अपना आसमान चुनना
उसका स्वसंतुष्टि के लिए
नितांत आवश्यक हो जाता है

तुम्हें समझना होगा
उसका अस्तित्व भी
पोषण चाहता है।

⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫⚫

प्रोत्साहन के दो शब्द

मैं आश्चर्य से
भरी रह जाती हूं
जब-जब कोई मुझमें
अनदेखा प्रस्फुटन
देखने लगता है
सोचती हूं कि
इतना कुछ विदलित
हो चुका है मन में
कि अब कोई नई व्यंजना
खोज पाना संभव नहीं
संभवतयः इस औघड़ सपाट
व्यक्तित्व में सरलता
खोज लेने वाले
लोग ही विरले हैं
प्रोत्साहन से भरे दो शब्द
आविष्कार के जनक
बन जाते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *