साहित्य सरोकार : “धरती माँ का दर्द”
⚫ जब विमान आसमान की ऊँचाइयों
का सम्मान करना बंद हो जाएँ,
और चीखों और आहों के बीच;
घोंसलों में हमला करने लग जाएँ; ⚫
⚫ डॉ. सलोनी चावला
जब विमान आसमान की ऊँचाइयों
का सम्मान करना बंद हो जाएँ,
और चीखों और आहों के बीच;
घोंसलों में हमला करने लग जाएँ;
जब दृष्टि के दर्पण
उल्टे हो जाएँ,
और शांति के खलनायक
ताज पर शासन करने लग जाएँ;
जब शोहरत और पैसे का
जान से ज़्यादा वज़न हो जाए,
और रुपयों और चाकुओं से
नियमों मे बदलाव किए जाएँ;
जब स्वतंत्रता का अर्थ
आचरण का उल्लंघन हो जाए,
और भ्रष्ट हवाओं के बीच
गगनचुंबी लक्ष्य बन जाएँ;
जब बैल और हाथी की लड़ाई में,
निर्दोष चींटियाँ कुचली जाएँ,
और शांति के दूतों की
शक्ति व्यर्थ होती जाएँ;
जब हर समाचार बुलेटिन मे
आंसु और खून बहते हों,
और बारिश की बूँदें भी
नफरत की बूंदों से कम हों;
जब खून, खून का प्यासा हो,
धर्म के विभिन्न परिधानों में लिपटा,
और धरती माँ को पीड़ा हो, क्योंकि,
इसकी कोई न सौतेली, बेटी या बेटा;
मैं एक तरफ जाकर
कुछ देर विचार करूँ,
क्या यही वह बीज था जो
हमारे पूर्वजों ने बोया था?
निःस्वार्थ भाव से रात-दिन:
उन्होंने जो योजनाएँ बनाईं,
कहां, कब और कैसे
हैं वह सारी भटक गईं !
⚫ डॉ. सलोनी चावला