रक्तबीज की मौत पर रुदालों के बेशर्म आँसू!
रक्तबीज की मौत पर रुदालों के बेशर्म आँसू!
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कश्मीर में धारा 370 की अर्थी उठने पर काँग्रेस का विलाप देख ऐसा लगा रहा मानो ‘पार्टी का बाप मर गया’ हैं। इसलिए औलादों के तन-मन पर इतना मातम हैं और सबके जीवन में मनहूस सन्नाटा पसर गया है। कल राज्यसभा में गुलाम नबी आज़ाद खूब छाती-माथे कूट-कूटकर रोये थे। आज लोकसभा में मनीष तिवारी ने रो-रोकर अपना गला फाड़ लिया। कल आज़ाद ने कश्मीर की कलंक धारा की समाप्ति को काला दिन करार दिया था, आज तिवारी इसे लोकतंत्र की त्रासदी कह गए। राहुल गाँधी का दिमाग़ी दिवालियापन देखिए कि पहली बार बोले तो सरकार के फैसले को ‘राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा’ कहने में भी नहीं हिचके।
निर्लज्ज रवैए से हर देशवासी आश्चर्यचकित
इस समय जब पूरा देश एक दिल और एक आवाज़ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के निर्णय में साथ खड़ा है, संसद में मुठ्ठी भर सदस्यों वाली काँग्रेस के इतने निर्लज्ज रवैए से हर देशवासी आश्चर्यचकित है। तब जब पूरी दुनिया मोदी की मर्दानगी और शाह का हौंसले देख हक्की-बक्की है, ख़ुद को जिम्मेदार विपक्ष कहने वाली काँग्रेस सरेआम अपने ही देश की सरकार को कोस रही है। गोया कि उसके मंसूबे और जुबान से अलगाववादियों के ही भाव और भाषा की बदबू आ रही है।
जवाहलाल नेहरू का फैलाया हुआ है कश्मीर का रायता
इतिहास गवाह है कश्मीर का रायता एकमात्र जवाहलाल नेहरू का फैलाया हुआ है। माना कि नेहरू बहुत महान थे पर महान आदमी गलती नहीं करता, ऐसा कोई विधान नहीं है। नेहरू ने कश्मीर को लेकर एक के बाद एक कई गलतियाँ की। जिनका खामियाजा 70 बरस तक देश ने भुगता है। दुर्भाग्य से देश के कुसी भी दमदार दल या किसी भी ‘मर्द मुखिया’ ने इस गलती को ठीक करने का गुर्दा नहीं दिखाया। सब धारा 370 को कभी सिगड़ी तो कभी चिता की तरह इस्तेमाल करते हुए अपनी सियासी रोटियाँ सेंकते रहे। कश्मीर जला, मरा, खपा पर किसी को फ़र्क़ न पड़ा।
बचकाने आरोप लगाने वालों ने खोटी नीयत की ज़ाहिर
कश्मीर की ‘कलंक-मुक्ति’ पर सरकार की ख़िलाफ़त में मुखर हर पार्टी, हर नेता इस समय सच्चे देशभक्तों को देशद्रोही ही नज़र आ रहा है। सरकार की कार्रवाई पर ‘कश्मीर को जेल बना देने, राज्य की विधानसभा को विश्वास में न लेने और संविधान का उल्लंघन कर लोकतंत्र की धज्जियाँ उड़ाने’ जैसे बचकाने आरोप लगाने वाले ऐसा करके अपनी खोटी नीयत ही ज़ाहिर कर रहे हैं। इसलिए कि कुर्सी की खींचतान में एक-दूसरे पर कीचड़ उछाल खेल तक भी देश की जनता मन-बेमन से गले उतार लेती है लेकिन सरासर राष्ट्र की अखंडता के मुद्दे पर सरकार के विरोध में अनापशनाप बक रहे सांसदों को देख बीच बाज़ार जूते मारने का मन हो रहा है।
आन-बान और स्वाभिमान का प्रतीक कश्मीर
सबसे बड़ी हौरानी तो ‘संविधान’ को पत्थर की लकीर मानने वालों पर है। पूछने को दिल करता है कि संविधान नाम की एक नियम-कानून की किताब बनाने वाले कोई भगवान थे क्या? जो आज से 70 साल पहले उनका तय किया नियम बासी और बेमानी हो जाने का बाद भी देश के मस्तक पर नासूर की तरह ढोया जाए! धर्म-संविधानों गीता, कुरान, बाइबल तक की अनेक व्याख्याएँ हैं, जिनके सूत्र देशकाल और परिस्थिति के अनुरूप लोकहित में प्रयुक्त और ग्राह्य होते हैं, तब ‘संविधान’ का रोना किस बात का। वह भी कश्मीर के लिए, जो सीधे भारत के आन-बान और स्वाभिमान का प्रतीक है।
केंद्र की सत्ता से दोबारी नकारी गई काँग्रेस और धारा 370 की मुख़ालफ़त करने वाली लालची और मौकापरस्त पार्टियों को यह शायद ही कभी समझ में आए कि देश का मिजाज़ क्या है। देश की जनता उसे उल्लू बनाकर उलझाने वालों से ऊब चुकी है। मोदी से डरकर सिर्फ़ विरोध के लिए विरोध करने वाले अपनी ताज़ा करतूतों से जनता जनार्दन के सामने और नंगे ही हो रहे हैं।
आज गृहमंत्री ने सदनों में बहस के दौरान काँग्रेस की दो दिन की बक़वास और मगरमच्छी आँसुओं पर पार्टी से ‘कश्मीर पर अपना रूख़ साफ़ करने’ को कहा है। शायद शाह भी जानते हैं कि काँग्रेस का कोई रूख़ नहीं है। यदि होता तो नेहरू ने अपने जीते जी समय रहते कश्मीर को मिले ‘अस्थायी विशेषाधिकार’ ख़त्म कर दिए होते और आज राहुल गाँधी सरकार के फ़ैसले को एकतरफा, संविधान विरोधी और राष्ट्र के लिए खतरनाक कहने से पहले बोल को भीतर तौल कर बाहर निकाल रहे होते।
मूर्खों को यह कड़वी दवा नहीं पच रही
ये तो तय है कि कश्मीर से धारा 370 के रक्तबीज का संहार हो गया। जैसे भी हुआ बहुत ही जबरदस्त हुआ। साफ़ हैं पाकिस्तान, पीडीपी, नेशनल कॉन्फ्रेंस, आतंकी और देश के कुछ मूर्खों को यह कड़वी दवा पच नहीं रही, इसलिए आदतन वे सियासी नाली पर उकड़ू बैठ कर उल्टी कर रहे हैं।
अफ़सोस यही कि देश की सबसे जिम्मेदार मानी जाने वाली काँग्रेस भी नाली की पाली पर बैठ वमन करने वालों की कतार में बैठी हैं। क़ाश इस समय राहुल गाँधी अपने पिता के नाना के बजाय दुनिया की आँखों में धूल झोंककर नया बांग्लादेश बना देने वाली अपनी दादी को याद करके सरकार के साथ खड़े होते।
तब वे राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के बावज़ूद जनता के आदर के पात्र होते। लगातार हारकर और अध्यक्ष पद छोड़कर उपहास के पात्र तो वे पहले ही बन चुके हैं, अब इस ऐतिहासिक घड़ी में मोदी-शाह को आड़े हाथों लेकर अनादर के पात्र बन जाएंगे।
भारतमाता के लिए काम पर
शुक्र हैं मोदी और शाह कश्मीर में रक्तबीज की मौत पर इन रुदालों से बेख़बर संकल्पबद्ध होकर लाम पर हैं, भारतमाता के लिए काम पर हैं!
✍ डॉ. विवेक चौरसिया, सृजनकार