मोदी है तो मुमकिन है : तीन तलाक, धारा 370 के बाद अब हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने की बारी
हरमुद्दा
रतलाम, 15 सितंबर। देश में तीन तलाक, धारा 370 को हटाने की सफलता के बाद अब हिंदी को देश की राष्ट्रभाषा घोषित करने का कार्य भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ही होगा। मोदी जी मोदी है तो मुमकिन है। वर्तमान में जो देश में हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित करने की वकालत करने की बजाय जो खिलाफत कर रहे हैं, वे अंग्रेजों की अवैध संतान है। हिंदी तो विश्व स्तर की सर्वमान्य भाषा है।
यह “मुद्दा” निकल कर आया है “हिंदी दिवस” पर आयोजित दो व्यक्तियों द्वारा की जा रही बातों में। रोटरी क्लब के बैनर तले रोटरी हॉल में आयोजित पहले अनूठे आयोजन में साहित्यकार डॉ. मुरलीधर चांदनीवाला और चिन्तक विष्णु बैरागी बतिया रहे थे।
यह मौजूद थे बातें सुनने वाले
डॉ. चांदनीवाला व श्री बैरागी की बातें सुनने में रंगकर्मी ओम प्रकाश मिश्रा, अंतरराष्ट्रीय चित्रकार महावीर वर्मा, कथाकार आशीष दशोत्तर, समाचार संपादक नीरज शुक्ला, सुशील छाजेड़, समाजसेवी रूमी कांट्रेक्टर, मुकेश जैन, व्यापारी रंगलाल चौरडिया, शरद फाटक, अजीत छाबड़ा, चंदू शिवानी, रवि बोथरा, सुभाष जैन, प्राध्यापक डॉ. हरिकृष्ण बडोदिया, डॉ. अभय पाठक, डॉ. श्वेता पाठक, डाइट प्राचार्य नरेंद्र गुप्ता, शिक्षिका श्रीमती गुप्ता, विभा आचार्य, कविता सूर्यवंशी, साहित्यकार डॉ. शोभना तिवारी, सहित सुधि विद्वजन व रोटेरियन मशगूल थे।
चर्चा के साक्षी का पुरजोर समर्थन
चर्चा के साक्षी बने मौजूदजनों ने पुरजोर समर्थन किया की हिंदी ही राष्ट्रभाषा घोषित होगी और यह कार्य भी मोदी जी हैं तो ही मुमकिन है। इसके लिए जन आंदोलन की जरूरत है।
विडंबना नहीं तो और क्या है?
बातों ही बातों में “मुद्दे” की चर्चा निकली की हम हिंदी की सेवा में आगे नहीं आते हैं। हिंदी की लिए कुर्बानियों की जरूरत है लेकिन सब मौन है। बस यही कारण रहा है कि आज हिंदी अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत है। यह बात सही है कि साहित्य सृजन तो हो रहा है, लेकिन किताबें प्रकाशक से घर की अलमारियों में कैद हो गई है या यूं कहें कि नाम और पुरस्कार के लिए किताबों का प्रकाशन हो रहा है। किताबें पढ़ने में लोगों की रुचि नहीं रही। हिंदी को बढ़ाने में रुचि नहीं रही। चर्चा के दौरान खुलकर सभी ने माना कि आज भी 90 फीसद बच्चे अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में अध्ययन कर रहे हैं। आजकल जब हिंदी की परीक्षा होती है तो बच्चे कहते हैं, बहुत टेंशन है। कल हिंदी की परीक्षा देना है। यह विडंबना नहीं तो और क्या है? हिंदी के लिए हिंदी भाषी राज्यों को ही आगे आना होगा
हिंदी को स्थापित करने की बजाय विस्थापित करने में लगे हुए समाचार पत्र
पीड़ा व्यक्त करते हुए चिंतक श्री बैरागी ने कहा कि एक समय था जब समाचार पत्र के माध्यम से हिंदी सीखते थे। समझते थे, लेकिन अब समाचार पत्रों में ही हिंदी की हिंदी हो रही है। अंग्रेजी के शब्द प्रचुर मात्रा में उपयोग किए जा रहे हैं, जबकि उसी समाचार में हिंदी का शब्द भी उपयोग में किया है। तो उसी शब्द के लिए अंग्रेजी के शब्द का उपयोग? आखिरी ऐसा क्यों होता है। हिंदी भाषी समाचार पत्र की हिंदी को स्थापित करने की बजाए विस्थापित करने में लगे हुए हैं। यह अच्छे संकेत नहीं हैं। भाषा का भी एक अनुशासन होता है जिसको समाचार पत्रों में तोड़ा जा रहा है। समाचार पत्रों से अच्छे आचरण की अपेक्षा समाज करता है। समाचार पत्र तो व्याकरण को ही खा गए हैं। न जाने क्यों अंग्रेजी को स्थापित करने में लगे हुए हैं। नतीजतन आमजन का स्वभाव, प्रकृति, प्रवृत्ति प्रभावित हुई है।
राष्ट्रभाषा बनकर शिखर पर अपना परचम जरूर लहराएगी हिंदी
डॉ. चांदनीवाला ने कहा कि हिंदी को बढ़ने से रोकने वाले अंग्रेज नहीं थे, हिंदी की लगाम खींचने वाले भारतवासी ही हैं अंग्रेज तो हिंदी सीखते थे। पढ़ते थे। समझते थे उन्होंने हिंदी सीखी थी। गर्व की बात है कि विदेशी लोग हिंदी सीखने में दिलचस्पी ले रहे हैं और हमारे लोग भाषाओं के झमेले में उलझे हुए हैं। हिंदी को बढ़ाने के लिए मनोबल की जरूरत है। फिर भी विश्वास है कि एक न एक दिन हिंदी राष्ट्रभाषा बनकर शिखर पर अपना परचम जरूर लहराएगी।
नहीं आया बातों में रस
“मुद्दे” की बात तो यह है कि आयोजन स्थल पर आवाज गूंज रही थी। यह समस्या सालों से है, लेकिन जिम्मेदार इस ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं। इसका असर आयोजन की सफलता पर भी होता है, खैर!
कुल मिलाकर श्रोताओं को बातें समझने में दिक्कत हुई। अपने कई प्रयासों से वे सुनने और समझने की कोशिश करते रहे। बातें सुनने वालों को बातों में रस नहीं आ रहा था। जबकि बात की पहली शर्त ही रस होता है। बातों में रोचकता, जिज्ञासा का नितांत अभाव रहा। सुधार की बहुत गुंजाइश है आयोजन की शुरुआत सराहनीय कदम है।
बतियाने वाले को दिए स्मृतिचिह्न
बातों के चर्चा के कार्यक्रम की शुरुआत प्रार्थना से हुई। प्रारंभ में क्लब अध्यक्ष रमेश पीपाड़ा व सचिव मीतू गादिया अतिथियों का स्वागत किया तथा अंत में स्मृति चिह्न भेंट किए। संचालन गुस्ताद अंकलेसरिया ने किया। आभार श्रीमती गादिया ने माना।