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हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे की मिसाल क़ायम करने का नायाब मौक़ा

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नईम क़ुरैशी
शनिवार, 9 नवंबर। शनिवार को प्रातः 10:30 बजे देश के इतिहास के सबसे चर्चित अयोध्या भूमि विवाद का फ़ैसला देने का वक़्त सर्वोच्य न्यायालय ने मुकर्रर किया है। देश और प्रदेश के शासन-प्रशासन का अमला लोगों को बड़े ही विन्रम, अनुशासित तरीक़े से ये समझाने और बताने में दिन-रात एक किए हुए है कि सर्वोच्च अदालत का आदेश सबको मानना है। विभिन्न समाज के धर्म गुरुओं, जनप्रतिनिधियों, सामाजिक, राजनीतिक कार्यकर्ताओ, प्रबुद्धजनों और युवाओं को प्रेरित किया गया है कि वे समाज मे एकता, अखंडता के संदेश को पहुंचाकर साम्प्रदायिक सौहार्द की मिसाल क़ायम करें।इसके साथ प्रशासन ने सर्वोच्य निर्णय की ख़िलाफ़त कर उत्पात मचाने वालों के लिए सरकारी डंडे के साथ राशन की व्यवस्था भी कर ली है। सुप्रीम अदालत से आये हुक़्म को मानना, उसका सम्मान करना वतन परस्त होने की सबसे बड़ी दलील है। वैसे भी जो देश के क़ानून और संविधान को न मानें वह राष्ट्रवादी कैसे हो सकते हैं?

अदालत की आंखों पर किसी ज़ात-धर्म और पंथ का चश्मा नहीं

सबसे पहले तो हल्की सी अफ़वाह में तिनके की मानिंद उड़ने वाले ये जान लें कि ये फ़ैसला किसी सरकार या सियासी रहनुमाओं का नहीं, बल्कि देश की सर्वोच्य अदालत के जजों का होगा। जिनकी आंखों पर किसी ज़ात-धर्म और पंथ का चश्मा नहीं बल्कि भारत के महान संविधान की पट्टी बंधी हुई है, जिससे महज़ तथ्य, सुबूत और इंसाफ़ की लकीर के अलावा कुछ दिखाई नहीं देता। संविधान की ओंट में लिखा गया फ़ैसला न्याय की बेहतरीन नज़ीर होता है और ये भी वही होगा।

सियासी रोटी सेंकने वाले तवे को भी ठंडा करने का सुनहरा अवसर

आज इस नामालूम फ़ैसले के आने के बाद राजनीति के शहंशाह और वज़ीर नादान प्यादों से कैसे खेलते हैं, कहा नहीं जा सकता? मगर आज आने वाले फ़ैसले को दिल से स्वीकार कर देश की हिन्दू-मुस्लिम क़ौम को एकता और अखंडता की बेनज़ीर मिसाल हमेशा-हमेशा के लिए क़ायम करने का नायाब मौक़ा ज़रूर मिला है। बेशक़ क़ौमों में राम-रहीम के नाम पर सदियों से हो रही तक़रार को ख़त्म कर सियासी रोटी सेंकने वाले तवे को भी ठंडा करने का सुनहरा अवसर देश के पास है।

हरेक हिंदुस्तानी की ज़िम्मेदारी

अब जबकि देश ही नहीं दुनिया के लिए कौतूहल का सबब अयोध्या मामले का निर्णय आने ही वाला है, ऐसे में हरेक हिंदुस्तानी की ज़िम्मेदारी भी बढ़ जाती है। क्यूं न तय किया जाए कि चंद घंटों बाद फ़ैसला आने तक और आने के बाद भी हम हिन्दू-मुसलमान नही हिंदुस्तानी हैं। हमारा धर्म-ईमान इंसानियत है, इंसानियत का तक़ाज़ा तो सनातन धर्म और मज़हब ए इस्लाम ने हज़ारों-लाखों वर्ष पहले ही तय कर दिया है, जिसके मुताबिक़ इंसान ही नहीं पशु-पक्षियों तक को भी कष्ट नहीं पहुंचना ईश्वर-अल्लाह की इबादत के बराबर है। अब हर किसी को उम्मीद और यक़ीन है कि मंदिर-मस्जिद के झगड़े में कई बार बेचैन हुए देशवासी इस महात्वपूर्ण निर्णय के बाद चेन की सांस और सुकून की नींद सो सकेंगे। वहीं ज़मीन की लड़ाई में धर्म-मज़हब के नाम पर अपनी जान गंवाने वालों की आत्मा व रूह को भी सुकून ही मिलेगा।

आईना दारए तहम्मुल हैं हमारी फ़ितरतें,
बाहमीं रिश्तों पर फ़ना हो जाएंगे।

ए सियासत तूने आख़िर सोच भी कैसे लिया,
मंदिरों मस्जिद के लिए हम जुदा हो जाएंगे।

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