सुप्रीम कोर्ट ने दिया ऐतिहासिक फैसला “वहीं बनेगा मंदिर”
हरमुद्दा
शनिवार, 9 नवंबर। राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर शनिवार को सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला आ चुका है। मंदिर वहीं बनेगा। अयोध्या में यह विवाद दशकों से चला आ रहा था। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई में पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने फैसला सुनाते हुए विवादित जमीन रामलला को सौंप दी है। जबकि मुस्लिम पक्ष को अलग स्थान पर जगह देने के लिए कहा गया है। यानी सुन्नी वफ्फ बोर्ड को कोर्ट ने अयोध्या में ही अलग जगह 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ ही सरकार को एक नया ट्रस्ट बनाने का भी आदेश दिया है जिसे वह जमीन मंदिर निर्माण के लिए दी जाएगी।
जानिए रामलला के बारे में
सुप्रीम कोर्ट ने रामलला को ही उस विवादित जमीन का मालिक माना है। आपको बता दें कि ये रामलला ना तो कोई संस्था है और ना ही कोई ट्रस्ट, यहां बात स्वयं भगवान राम के बाल स्वरुप की हो रही है। यानी सुप्रीम कोर्ट ने रामलला को लीगल इन्टिटी मानते हुए जमीन का मालिकाना हक उनको दिया है।
गौरतलब है कि 22/23 दिसंबर 1949 की रात मस्जिद के भीतरी हिस्से में रामलला की मूर्तियां रखी गईं थी। 23 दिसंबर 1949 की सुबह बाबरी मस्जिद के मुख्य गुंबद के ठीक नीचे वाले कमरे में वही मूर्तियां प्रकट हुई थीं, जो कई दशकों या सदियों से राम चबूतरे पर विराजमान थीं और जिनके लिए वहीं की सीता रसोई या कौशल्या रसोई में भोग बनता था। राम चबूतरा और सीता रसोई निर्मोही अखाड़ा के नियंत्रण में थे और उसी अखाड़े के साधु-संन्यासी वहां पूजा-पाठ आदि विधान करते थे। 23 दिसंबर को पुलिस ने मस्जिद में मूर्तियां रखने का मुकदमा दर्ज किया था, जिसके आधार पर 29 दिसंबर 1949 को मस्जिद कुर्क कर उस पर ताला लगा दिया गया था। कोर्ट ने तत्कालीन नगरपालिका अध्यक्ष प्रिय दत्त राम को इमारत का रिसीवर नियुक्त किया था और उन्हें ही मूर्तियों की पूजा आदि की जिम्मेदारी दे दी थी।
उस किताब में है पूरी घटना का जिक्र
पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने अपनी किताब ‘अयोध्याः 6 दिसंबर 1992’ में उस एफआईआर का ब्यौरा दिया है, जो 23 दिसंबर 1949 की सुबह लिखी गई थी। एस.एच.ओ. रामदेव दुबे ने भारतीय दंड संहिता की धारा 147/448/295 के तहत एफआईआर दर्ज की थी। उसमें घटना का जिक्र करते हुए लिखा गया था, “रात में 50-60 लोग ताला तोड़कर और दीवार फांदकर मस्जिद में घुस गए और वहां उन्होंने श्री रामचंद्रजी की मूर्ति की स्थापना की। उन्होंने दीवार पर अंदर और बाहर गेरू और पीले रंग से ‘सीताराम’ आदि भी लिखा। उस समय ड्यूटी पर तैनात कांस्टेबल ने उन्हें ऐसा करने से मना किया लेकिन उन्होंने उसकी बात नहीं सुनी। वहां तैनात पीएसी को भी बुलाया गया, लेकिन उस समय तक वे मंदिर में प्रवेश कर चुके थे।”
2010 के फैसले में भी था रामलला का हिस्सा
30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अयोध्या के विवादित स्थल को राम जन्मभूमि करार दिया था। हाई कोर्ट ने 2.77 एकड़ जमीन का बंटवारा कर दिया गया था। कोर्ट ने सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्माही अखाड़ा और रामलला के बीच जमीन बराबर बांटने का आदेश दिया था।
1 जुलाई 1989 को कहा गया- राम इस संपत्ति के मालिक
1989 के आम चुनाव से पहले विश्व हिंदू परिषद के एक नेता और रिटायर्ड जज देवकी नंदन अग्रवाल ने 1 जुलाई को भगवान राम के मित्र के रूप में पांचवां दावा फैजाबाद की अदालत में दायर किया था। इस दावे में स्वीकार किया गया था कि 23 दिसंबर 1949 को राम चबूतरे की मूर्तियां मस्जिद के अंदर रखी गई थीं। इसके साथ ही यह स्पष्ट दावा किया गया कि जन्म स्थान और भगवान राम दोनों पूज्य हैं और वही इस संपत्ति के मालिक भी हैं।
बाबर का किया गया था उल्लेख
आपको बता दें कि इस मुकदमे में मुख्य तौर पर इस बात का उल्लेख किया गया था कि बाबर ने एक पुराना राम मंदिर तोड़कर वहां एक मस्जिद बनवाई थी। दावे के समर्थन में अनेक इतिहासकारों, सरकारी गजेटियर्स और पुरातात्विक साक्ष्यों का हवाला भी दिया गया था।
इसी मुकदमे में हुई थी विशाल मंदिर की बात
इसी मुकदमे में पहली बार कहा गया था कि राम जन्म भूमि न्यास इस स्थान पर एक विशाल मंदिर बनाना चाहता है। इस दावे में राम जन्म भूमि न्यास को भी प्रतिवादी बनाया गया था। अशोक सिंघल इस न्यास के मुख्य पदाधिकारी थे। इस तरह पहली बार विश्व हिंदू परिषद भी परोक्ष रूप से पक्षकार बना। (साभार आजतक)
मुस्लिम पक्ष को मिलेगी 5 एकड़ जमीन
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा है कि विवादित जमीन पर रामलला का हक है। जबकि मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में ही 5 एकड़ जमीन किसी दूसरी जगह दी जाएगी। कोर्ट ने कहा कि केंद्र या राज्य सरकार अयोध्या में उचित स्थान पर मस्जिद बनाने को जमीन दे।