पाठक की स्मृतियों का हिस्सा बनना कविता के लिए आवश्यक : डाॅ. किरण मिश्रा
🔲 नरेंद्र गौड़
डाॅ. किरण मिश्रा की कविताएं उन दृश्यों को सामने रखती हैं जो अतिपरिचित हैं, सबके देखे भाले है और इसीलिए वो हमसे अक्सर अनदेखे रह जाते हैं। वह हमारे एकदम आसपास बिखरे जीवन के दृश्य है। इनमें आंसू भी है और लहू भी। ये कविताएं जीवन के बहुत जरूरी सवालों को बेलाग ढंग से और बेखौफ होकर उठाती है। इनमे किसी तरह का संकोच या हकलाहट नहीं है।
पुरुष सत्तात्मक समाज में स्त्री की अस्मिता से जुड़े सवाल हो या तथाकथित सेक्युलर राजनीति के कारनामे, हर कहीं किरण मिश्रा विमर्श के सीमित दायरों में अपने को कैद नहीं रखती, वह उससे बाहर आकर उन सच्चाइयों को वर्गीय राजनीति समझ के साथ देखने की कोशिश करती है।इसलिए उनकी दृष्टि बहुत हद तक अस्मिता विमर्शवादियों से अलग भी है। इनका मानना है कि पाठक की स्मृतियों का हिस्सा कविता को होना चाहिए। पाठक के मन में उतारे बिना कविता लिखना सार्थक नहीं।
प्रकाशन एवं पुरस्कार
नई दिल्ली निवासी डाॅ. मिश्रा समाजशास्त्री हैं और इसके अलावा वह शैक्षणिक सलाहकार, इग्नू, साथ ही वह डिग्री काॅलेज कानपुर में पूर्व प्राचार्य भी रह चुकी हैं। इनके अनेक आलेख दैनिक हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण, लोकसत्य, लोकमत, जनमत की पुकार तथा ग्राम संदेश में प्रकाशित होते रहे हैं और स्वर सरिता पत्रिका (लोककला सीरिज जयपुर) में भी आपकी रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। इसके अलावा आपकी अनेक रचनाएं हरिगंधा, मधुमति, साहित्य अकादमी की पत्रिका इंद्रप्रस्थ आह! जिंदगी, दुनिया इन दिनों, सेतू पत्रिका, अटूट बंधन, सौरभ दर्शन, विकल्प आदि में प्रकाशित होती रही है। इसके अलावा आपकी अनेक रचनाओं का प्रसारण आकाशवाणी के राष्ट्रीय चैनलों पर भी हो चुका है। किरण मिश्रा के अनेक शोध पत्र राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं में छप चुके हैं। इनकी अनेक समाजशास्त्रीय पुस्तकों का भी प्रकाशन हो चुका है। इन्हें वर्ष 2013 में माटी साहित्य सम्मान, 2012 में निराला श्री पुरस्कार, 2015 में गगन स्वर पुरस्कार, मिल चुका है। वर्ष 2017 में रामप्रसाद बिस्मिल सम्मान से भी आपको सम्मानित किया जा चुका है।
चुनिंदा कविताएं
मेरा मन ब्रह्माण्ड है
हम एक पसली से बनी आत्माएं है
जिनका डेरा ब्रह्मांड में है
मैं ब्रह्मांड के उस कोने में रुकना चाहती हूँ
जहां आत्माओं ने प्रेम गीत गाये है
ये देह उन गीतों का अंकुर है
तुम्हारी भुजाओं के कसाव से
मेरी देह से प्रस्फुटित होती सिसकिया
चक्रीय पुनर्जन्म की संभावनाओं का मार्ग है
जो नीचे बहुत नीचे पृथ्वी पर हस्तांतरित हो रही है।
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मैं उसके जोड़े में उसकी दो आत्मा हूँ
प्रकाश पुंज में समा उठता है ब्रह्माण्ड
तुम्हारी देह की सुगंध
मेरी सांसों में समाती है
धरती अपनी धुरी पर घूमती है
दूर आकाशगंगा के पार
हमारे ब्रह्माण्ड के भेद धीरे धीरे खुलते है
दो तारे सदियों पुरानी भाषा मे फुसफुसाते है
फुसफुसाहट नाद में बदलती है
नाद और बिंदु का मिलन एक नया ब्रह्माण्ड रच रहा है।
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आत्माएं घर लौटती हैं
अश्वत्थ और शमी
लकडी के दो टुकड़े आत्माओं के घर है
जिनकी ऊष्मा से एक महाप्रकंपन के साथ
प्रेम के स्वर ब्रह्मांड में बिखर जाते है
रहस्य बुनती आत्माएं
एक सिरा पकड़ाती है अव्यक्त सत्ता के
और दूसरा सिरा लेकर निकल पड़ती है
सृष्टि बुनने को।
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स्त्रियां फूल सींचती है
अन्न पैदा करती स्त्री
गढ़ती हैं मन
जल खोजती स्त्री
देती है प्राण
देह की ऊष्मा देती स्त्री
रचती है सृष्टि
और ब्रह्मांड जगमगा उठता है।
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ब्रहांड नाद ही हमारे गीत है
तुमने बाँसुरी में फूंक मारी है
ध्वनि से प्रज्ज्वलित हो गई अग्नि
सारे सत्य और सौंदर्य एक साथ खड़े हो
कर रहे है स्नान अग्नि का
मैं ने लगा लिए है हाथ अपनी आंखों में
हर अंधेरा हटाने को
सारा अंधेरा आकाश से परे दिखाई देता है
देह का ब्रह्माण्ड स्वर्ग नरक से दूर है
हमारे साथ सिर्फ हमारी आत्माएं है
जो सवार है
सत्व राजस तमस पर
ब्रह्माण्ड उर्वर हो रहा है आत्माओं के साथ।
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ब्रह्याण्ड रचिता है
इलेक्ट्रान और प्रोटान मिलते हैं जैसे
वैसे ही मिलते है मैं और तुम
ये अंतरू प्रेरित मौन है
जो निर्मित करता है ब्रम्हांड को
यिन और यांग
लौटते हैं एक दूसरे की तरफ
अपने मिलन के लिए
संसार चक्र चलाने को
एक दूसरे के अस्तित्व के लिए जीते
सृष्टि संतुलन को।
(इलेक्ट्रानों की संख्या बराबर प्रोटानों की संख्या)