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हरमुद्दाभोपाल, 3 अप्रैल। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के संकल्प और साहसी निर्णयों ने मध्यप्रदेश को विकासशील राज्य की अग्रिम पंक्ति...

‘जीवन के दुःख-दर्द हमारे बीच ही हैं और  खुशियां  भी हमारे करीब।ज़रूरत इन्हें देखने और  महसूस  करने की है। सड़क पर चलते हुए जब किसी  आदिवासी के फटे पैर दिखते हैं तो भीतर का कवि  जाग जाता है।उस पीड़ा को वही समझ सकता है जो उस आदिवासी के प्रति संवेदना रखता हो।‘ इन संवेदनाओं को अपने सक्रिय जीवन में कई बार अभिव्यक्त करते रहे हिन्दी और मालवी के कवि, डाॅ. देवव्रत जोशी आम जनता की पीड़ा, दुःख-दर्द से, कलम और देह से  उसी तरह जुड़े रहे  जिस तरह कोई शाख पेड़ से जुड़ी रहती है।  पाॅच दशक तक निरंतर लिखते हुए देवव्रत जी ने साहित्य के कई उतार-चढ़ाव  देखे। वे छंदबद्ध रचना छंदमुक्त दौर के सर्जक/साक्षी रहे। उन्होंने गीत-नवगीत और नई कविताएॅं लिखी।  उनकी कलम जब भी चली नई परिपाटी को गढ़ती चली गई। ज़िन्दगी से लम्बी जद्दोजहद के...

हरमुद्दारतलाम, 1 अप्रैल। भारतीय संस्कृति और संस्कृत के उदभट्ट विद्वान साहित्यकार डॉ. मुरलीधर चांदनीवाला ने कोरोना वायरस संक्रमण के प्रभाव...

 सीरीज पर 2-1 से इंडिया का कब्जा हरमुद्दापुणे, 28 मार्च। रविवार को पुणे में खेले गए वन डे सीरीज...

🔲 ना होली की उमंग, शोर और ना ही शराबा, कोरोना वायरस ने कर दिया उत्सव का खराबा 🔲 थाना...