बीसीसीआई ने की पुष्टि दोनों खिलाड़ियों के नाम की नहीं हुई घोषणा हरमुद्दागुरुवार, 15 जुलाई। कोरोना वायरस का...
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श्वेता नागर शिकागो विश्व धर्म महासभा में अपने उदबोधन के बाद स्वामी विवेकानंद न केवल भारतीय धर्म, संस्कृति के...
श्री बहुगुणा के निकट सहयोगी रहे “पर्यावरण डाइजेस्ट” के संपादक डॉ. खुशाल सिंह पुरोहित की यादों के झरोखे से...
श्वेता नागर अभी हाल ही में समाचारों में 'सर्वाइवल' गिल्ट के बारे में सुनने को मिल रहा है। सर्वाइवल...
विश्व के 120 देशों तक पहुंची कीर्ति हरमुद्दा रतलाम, 8 मई। कहते हैं कि 'पूत के पांव पालने में...
🔲 डॉ. रत्नदीप निगम मित्रों , आज आपको शीतला सप्तमी की वास्तविक, प्रामाणिक एवम भारत के आयुर्वेद विज्ञान की रोचक...
🔲 घर की दहलीज के बाहर खुशियां बांटी ना, तो "बगैर मास्क" वालों को यमराज कोरोना नहीं छोड़ेगा 🔲 दिनेश...
हरमुद्दाभोपाल, 3 अप्रैल। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के संकल्प और साहसी निर्णयों ने मध्यप्रदेश को विकासशील राज्य की अग्रिम पंक्ति...
‘जीवन के दुःख-दर्द हमारे बीच ही हैं और खुशियां भी हमारे करीब।ज़रूरत इन्हें देखने और महसूस करने की है। सड़क पर चलते हुए जब किसी आदिवासी के फटे पैर दिखते हैं तो भीतर का कवि जाग जाता है।उस पीड़ा को वही समझ सकता है जो उस आदिवासी के प्रति संवेदना रखता हो।‘ इन संवेदनाओं को अपने सक्रिय जीवन में कई बार अभिव्यक्त करते रहे हिन्दी और मालवी के कवि, डाॅ. देवव्रत जोशी आम जनता की पीड़ा, दुःख-दर्द से, कलम और देह से उसी तरह जुड़े रहे जिस तरह कोई शाख पेड़ से जुड़ी रहती है। पाॅच दशक तक निरंतर लिखते हुए देवव्रत जी ने साहित्य के कई उतार-चढ़ाव देखे। वे छंदबद्ध रचना छंदमुक्त दौर के सर्जक/साक्षी रहे। उन्होंने गीत-नवगीत और नई कविताएॅं लिखी। उनकी कलम जब भी चली नई परिपाटी को गढ़ती चली गई। ज़िन्दगी से लम्बी जद्दोजहद के...