जब मेले की खुशियां और रौनक मातम में बदल गई..

हरमुद्दा
आज ही दिन यानी कि 13 अप्रैल 1919 को, बैसाखी का दिन था। अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से तकरीबन डेढ़ किलोमीटर दूर जलियांवाला बाग में भव्य मेला चल रहा था। अवसर था बैसाखी का। हजारों की तादात में महिला, पुरुष, बच्चे खुशियां बटोर रहे थे। मेले में रौनक थी कि अचानक माहौल बदल गया और मातम छा गया। देखते ही देखते बूढ़े, बच्चे और जवान काल के गाल में समा गए। मेले में मौजूद लोगों का नाम इतिहास के सबसे भयावह हादसे में शामिल हो गया। हादसे के बाद पंजाब के क्रांतिकारी उधम सिंह ने 21 साल बाद बदला लिया और 1940 में गवर्नर जनरल माइकल डायर को लंदन में गोलियों से छलनी कर दिया।
कौन है उधमसिंहScreenshot_2019-04-13-16-36-09-577_com.google.android.googlequicksearchbox
जलियांवाला बाग हत्याकांड में हजारों को गोलियों से भून दिया गया था, जिससे पूरे भारत में आक्रोश का माहौल था। इनमें से एक थे उधम सिंह। बचपन में ही माता-पिता को खो चुके उधम सिंह ने इस हत्याकांड से बेघर हो गए। जिस वजह से उन्हें भाई के साथ अमृतसर के एक अनाथालय में शरण लेनी पड़ी।
खाई थी तब कसम
कुछ साल बाद उधम सिंह के भाई का निधन होने के उपरांत अनाथालय छोड़ दिया और क्रांतिकारियों के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए। अनाथ होने के बाद और इस हत्याकांड में लोगों कि लाशों को देख उधम सिंह जलियांवाला बाग की मिट्टी हाथ लेकर कसम खाई थी, कि हत्याकांड के जिम्मेदार जनरल डायर को वो मौत के घाट उतारेंगे।
और पहुंच गए लंदन बदला लेने
सन् 1934 में उधम सिंह लंदन पहुंचे और वहां एल्डर स्ट्रीट कमर्शियल रोड पर रहने लगे। वहां सफर के मकसद से एक कार खरीदी और साथ में अपना मिशन पूरा करने के लिए छह गोलियों वाली एक रिवाल्वर भी खरीदी। आखिरकार 1940 में सैकड़ों भारतीयों का बदला लेने का मौका मिल गया।
21 साल बाद ले लिया बदलाIMG_20190413_163803
जलियांवाला बाग हत्याकांड के 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को लंदन के काक्सटन हाल में एक बैठक थी, जहां माइकल डायर भी वक्ताओं में शामिल था। उधम सिंह उस बैठक में एक मोटी किताब में रिवॉल्वर छिपाकर पहुंचे। इसके लिए उन्होंने किताब के पृष्ठों को रिवॉल्वर के आकार में उस तरह से काट लिया था, जिससे डायर की जान लेने वाला हथियार आसानी से छिपाया जा सके। उधम सिंह ने बैठक के बाद दीवार के पीछे से माइकल डायर पर गोलियां चला दी और तत्काल मौत हो गई।
भागा नहीं तब भी
उधम सिंह ने वहां से भागने की रत्तीभर भी कोशिश नहीं की, अपनी गिरफ्तारी दे दी। उन पर मुकदमा चला और 4 जून 1940 को उधम सिंह को हत्या का दोषी ठहराया गया और 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी के फंदे पर लटका दिया।

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