सतातन संस्कृति के पुरोधा स्वामी श्री सत्यमित्रानंद जी हुए ब्रह्मलीन, समाधि 26 जून की शाम को
हरमुद्दा
देहरादून, 25 जून। सतातन संस्कृति के पुरोधा और विश्व में वैदिक संस्कृति का प्रचार करने वाले जगद्गुरू शंकराचार्य, पद्मभूषण पूज्य गुरुदेव स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि जी महाराज ने मंगलवार को सुबह अंतिम सांस लेकर ब्रह्मलीन हो गए। बुधवार को भारतमाता जनहित ट्रस्ट के “राघव कुटीर” के आंगन में उन्हें शाम चार बजे समाधि दी जाएगी।
उल्लेखनीय है कि वे हरिद्वार में भारत माता मंदिर के संस्थापक भी थे। स्वामी सत्यमित्रानन्द गिरि का जन्म 19 सितंबर 1932 में उत्तर प्रदेश के आगरा में हुआ था। सन्यास आश्रम में प्रवेश से पहले उनका नाम अम्बा प्रसाद था।
बीमार थे स्वामीजी, हुए अनुष्ठान
स्वामी जी पिछले 15 दिनों से गंभीर रूप से बीमार थे। देहरादून के मैक्स हॉस्पिटल में उनका उपचार चल रहा था। वेंटिलेटर पर रहने के बाद उन्हें 5 दिन पहले हरिद्वार स्टेट उनके आश्रम ले आया गया था। यहीं पर उनकी कुटी को आईसीयू बनाकर इलाज कर रहे थे। साथ ही उनके दीर्घायु होने की कामना को लेकर धार्मिक अनुष्ठान भी किए जा रहे थे।
संत जगत सहित हिंदू धर्मावलंबियों में शोक की लहर
स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि महाराज के ब्रह्मलीन होने का समाचार मिलते ही संत जगत के साथ ही हिंदू धर्मावलंबियों में शोक की लहर छा गई। स्वामी अवधेशानंद गिरी, जगतगुरु राज राजेश्वर आश्रम महामंडलेश्वर चेतनानंद, महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद, स्वामी विवेकानंद भूमा पीठाधीश्वर स्वामी अच्युतानंद तीर्थ ने उनके ब्रह्मलीन होने पर शोक व्यक्त किया है।