🔲 डॉ. रत्नदीप निगम मित्रों , आज आपको शीतला सप्तमी की वास्तविक, प्रामाणिक एवम भारत के आयुर्वेद विज्ञान की रोचक...
पंजाब
🔲 संजय भट्ट भाई साहब को आपदा में अवसर ढॅूढने में महारत हांसिल थी। वे किसी भी आपदा में अवसर...
🔲 घर की दहलीज के बाहर खुशियां बांटी ना, तो "बगैर मास्क" वालों को यमराज कोरोना नहीं छोड़ेगा 🔲 दिनेश...
‘जीवन के दुःख-दर्द हमारे बीच ही हैं और खुशियां भी हमारे करीब।ज़रूरत इन्हें देखने और महसूस करने की है। सड़क पर चलते हुए जब किसी आदिवासी के फटे पैर दिखते हैं तो भीतर का कवि जाग जाता है।उस पीड़ा को वही समझ सकता है जो उस आदिवासी के प्रति संवेदना रखता हो।‘ इन संवेदनाओं को अपने सक्रिय जीवन में कई बार अभिव्यक्त करते रहे हिन्दी और मालवी के कवि, डाॅ. देवव्रत जोशी आम जनता की पीड़ा, दुःख-दर्द से, कलम और देह से उसी तरह जुड़े रहे जिस तरह कोई शाख पेड़ से जुड़ी रहती है। पाॅच दशक तक निरंतर लिखते हुए देवव्रत जी ने साहित्य के कई उतार-चढ़ाव देखे। वे छंदबद्ध रचना छंदमुक्त दौर के सर्जक/साक्षी रहे। उन्होंने गीत-नवगीत और नई कविताएॅं लिखी। उनकी कलम जब भी चली नई परिपाटी को गढ़ती चली गई। ज़िन्दगी से लम्बी जद्दोजहद के...
आशीष दशोत्तर आपकी सभ्यता पर किसी को कोई संदेह नहीं होना चाहिए। आप तो सभ्य हैं ही। बल्कि सभ्य...
आशीष दशोत्तर कई फागुन गुज़ारे हैं सहन कर दंश नफ़रत केचलो इस बार होली में बिखेरे रंग उल्फ़त के।...
डॉ. नीलम कौर गीत, गजल गुलाबी ह्वै गईकविता भी थोड़ी सयानी ह्वै गई,पी कर गम-खुशी की भांगकथा -कहानी शराबी...
मूल्यांकन के आधार पर लगा सकते हैं स्थानीय रूप से प्रतिबंध हरमुद्दादिल्ली, 24 मार्च। कोरोना के बढ़ते मामले के...
आशीष दशोत्तर बदलते समय की बदलती व्यथाएं, कहीं गुम हुई है पुरानी कथाएं, लो फागुन यहां ‘फाॅग‘ में कसमसाए,...