मजबूरी और कर्ज़ 🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲 🔲 आशीष दशोत्तर इस कर्ज़ की उम्मीद उन्होंने कभी नहीं की थी। कभी यह सोचा ही...
हरियाणा
मांग संवारा करो उगते सूरज की लाली से मांग सुबह की सजाया करो ओस में भीगे गुलाबों से फ़िज़ा का...
समझ 🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲 🔲 आशीष दशोत्तर 'परंपराएं हमने ने ही बनाई।अपने भले के लिए ही बनाई। ये परंपराएं कब हमारी आदतों...
बेख़बर 🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲 🔲 आशीष दशोत्तर 'देखिए यह अख़बार क्या कह रहा है।' उन्होंने मेरे सामने अख़बार पटकते हुए कहा। मैंने...
सितम और ग़म 🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲 🔲 आशीष दशोत्तर उनके पास आज एक मित्र का फोन आया। मित्र ने फोन पर सीधे-सीधे...
दवा के दर्द 🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲 🔲 आशीष दशोत्तर वे गई थीं दर्द की दवा लेने और ले आई अपने साथ...
🔲 नरेंद्र गौड़ डाॅ. किरण मिश्रा की कविताएं उन दृश्यों को सामने रखती हैं जो अतिपरिचित हैं, सबके देखे भाले...
हरमुद्दा जावरा, 3 जुलाई। आज के दौर में जबकि किसी भी क्षेत्र का कोई भी व्यक्ति अपने किसी साथी अथवा...
वक्र-चक्र 🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲🔲 🔲 आशीष दशोत्तर वह सीधे-सीधे दुकानदार से पूछ रहा था कि अपना बिगड़ा हुआ रोटेशन तुम कब ठीक...