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✍  प्रकाश भटनागर

🔳 कमलनाथ के जन्मदिन पर उनकी तारीफ में जारी विज्ञापन हो गया भ्रम का शिकार
उर्दू के ‘सफर’ का हिंदी अर्थ यात्रा है। लेकिन अंग्रेजी में ‘सफर’ से आशय तकलीफ वाला होता है। मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी ने मुख्यमंत्री कमलनाथ के जन्मदिन पर उनके सफर का ‘राग दरबारी’ वाली शैली में जो वर्णन किया है, उसे देखकर समझ नहीं आ रहा कि आशय उर्दू शब्द से है या अंग्रेजी वाले से। क्योंकि मुख्यमंत्री की तारीफ के नाम पर इस  पूरे पेज वाले विज्ञापन में बताया गया है कि, ‘नाथ को सुंदरलाल पटवा ने चुनाव मैदान में पटखनी दी थी।’

इसमें आगे यह भी लिखा है, ‘आपातकाल के बाद 1979 में जनता पार्टी की सरकार के दौरान संजय गांधी को एक मामले में कोर्ट ने तिहाड़ जेल भेज दिया था। तब इंदिरा गांधी संजय की सुरक्षा को लेकर चिंतित थीं। कहा जाता है कि तब कमलनाथ जानबूझकर एक जज से लड़ पड़े और जज ने उन्हें सात दिन के लिए तिहाड़ जेल भेज दिया था। वहां वह संजय गांधी के साथ ही रहे।’ तारीफों के इन खंदकनुमा पुलों का क्रम यहीं नहीं थमता। प्रदेश कांग्रेस कमेटी यह भी फरमाती है, ‘1993 में भी कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनने की चर्चा थी। बताया जाता है कि तब अर्जुन सिंह ने दिग्विजय सिंह का नाम आगे कर दिया। इस तरह उस समय कमलनाथ सीएम बनने से चूक गये थे। अब 25 साल बाद दिग्विजय के समर्थन के बाद उन्हें मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला।’

निश्चित ही होश में नहीं होगा वह

जिसने भी इस विज्ञापन की संरचना की, वह निश्चित ही होश में तो नहीं ही रहा होगा। नशा कई तरह का होता है। शराब, गांजा और भांग आदि से लेकर सत्ता का नशा भी सिर चढ़कर बोलता है। इन्हीं में से किसी एक या फिर एक से अधिक सम्मिश्रण वाले नशे की पिनक में आकर ही यह सामग्री तैयार की गयी होगी। लेकिन उनका क्या, जो ऐसे विज्ञापनों को अंतिम स्वीकृति प्रदान करते हैं? उन्हें भी खैर क्या गलत कहा जाए। ताकत के मद में चूर होकर उनकी भी मति भ्रष्ट हो गयी है। और वैसे बोला ये भी जाता है कि ‘पूरे कुएं में ही भांग पड़ी है।’ यहां कुएं से आशय सरकार और कांग्रेस दोनों से लगाया जा सकता है। हर नशे का अलग असर होता है, तो भांग और अफीम जैसे नशे भ्रम उत्पन्न करने का गुण रखते हैं। अब कमलनाथ के जन्मदिन पर उनकी तारीफ में जारी यह विज्ञापन ऐसे ही भ्रम का शिकार हो गया है।

स्तुति के नाम पर ऐसा हास्यास्पद अनाचार

यह विज्ञापन साफ बताता है कि प्रदेश कांग्रेस कमेटी में किस तर्ज पर काम हो रहा है। यदि शिवाजी नगर स्थित इस भवन के आसपास कोई कुआं है, तो उसकी जांच की जाना चाहिए। अपन यह दावा करने की स्थिति में है कि उसके पानी में भंग घुली मिलेगी। वरना यह संभव ही नहीं है कि किसी मुख्यमंत्री की स्तुति के नाम पर उसके साथ ऐसा हास्यास्पद अनाचार कर दिया जाए। इससे भी बड़ा ठहाका तो यह कि कांतिलाल भूरिया इस विज्ञापन को भाजपा की साजिश बता रहे हैं। अरे जनाब! गलती से सार्वजनिक रूप से पतलून गीली हो गयी तो इसका दोष पड़ोसी को तो मत दो। कुछ तो शर्म करो, अपने लिए नहीं तो उस मुख्यमंत्री के लिए ही सही, जिसके सियासी जीवन के खाते में आज जैसी महानतम मूर्खता पहले कभी भी, किसी भी रूप में परिलक्षित नहीं हुई है। प्रदेश कांग्रेस तो खेर अब जाहिर है कि मना कर रही है कि यह विज्ञापन उसने जारी नहीं किया है। यह इंकार भी अपने आप में मजेदार है। वैसे सूत्र बता रहे हैं कि इसे सरकार में शामिल किसी मंत्री ने ही जारी कराया है। अब कमलनाथ इस मूर्खता पर कैसे रिएक्ट करते हैं, यह उनके भोपाल लौटने के बाद ही पता चलेगा।

विज्ञापन के जरिये निकाली खुन्नस

एक सच्चा संस्मरण याद आ गया। मेरे एक मित्र की उन दिनों अखबार में तन्ख्वाह महज 500  रुपए थी। बाकी सारे स्टाफ से बहुत कम। कई दिन से संपादक उनकी इस संबंध में की गयी फरियादों पर ध्यान नहीं दे रहे थे। तब मित्र अखबार का फीचर पेज देखा करते थे। उन्होंने उस पर एक चुटकुला प्रकाशित किया। जिसमें संपादक अपने क्राइम रिपोर्टर से पूछता है कि उसने एक घर में पांच सौ रुपए की चोरी को ‘चोरों ने भारी-भरकम रकम पर हाथ किया साफ क्यों लिखा?’ रिपोर्टर ने जवाब दिया, ‘यह मेरी महीने भर की तन्ख्वाह है, तो मैं तो इसे भारी-भरकम रकम ही लिखूंगा।’ पता नहीं क्यों मुझे लगता है कि मंत्रिमंडल के किसी ऐसे ही असंतुष्ट ने इस विज्ञापन के जरिये अपनी खुन्नस निकाल ली है। अब असंतुष्ट तो मंत्री होने के बाद भी हुआ जा सकता है।

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