‘‘उन्नीसा‘‘ सपने ‘‘बीसा‘‘ हों
🔳 नए साल पर विशेष 🔳
‘‘उन्नीसा‘‘ सपने ‘‘बीसा‘‘ हों
✍ आशीष दशोत्तर
वर्ष का बदलना हर बार होता है लेकिन वर्ष के साथ अगर और कुछ बदले तो यह बदलाव कहलाता है। हमको भी यह महसूस करें कि 31 दिसंबर और 1 जनवरी में क्या फर्क होता है तो शायद हमें लगेगा की कुछ नहीं।सभी कुछ वैसा ही होता है,लेकिन नए साल के आने का उत्साह मन में होता है। यह उत्साह आपके भीतर से पैदा होता है और यही कुछ नवीनता लाता है। और यह सिलसिला हर बार चलता रहता है।
हालांकि नए वर्ष के अवसर पर कहने को कुछ नहीं होता लेकिन फिर भी यह वह समय होता है, जब हम बीते हुए का आकलन करें और आने वाले पल में अपनी कुछ योजनाएं बनाएं और कोशिश करें नया साल आने वाले साल से बेहतर साबित हो। यानी हम और आगे की तरफ बढ़े। अभी नए वर्ष में हम प्रवेश कर चुके हैं। हम अपनी कोशिशों से ‘उन्नीसा‘सपनों को इस नए साल में ‘बीसा‘ करने की कोशिश करें। इस साल में वे योजनाएं बनाएं जिन से हमारा जीवन ‘‘इक्कीसा‘‘की ओर उन्मुख हो सके।
इस वक्त हम जिस दौर से गुजर रहे हैं वह काफी संशय भरा है। व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक, राजनीतिक, नीतिगत और मूल्यगत स्तरों पर भी हमें कई सारी परेशानियां दिखाई दे रही हैं।लगभग यह समझा जा रहा है कि इन परिस्थितियों से उबरना मुश्किल है, लेकिन, हर मुश्किल का हल होता है, आज नहीं तो कल होता है। इसी कल की तलाश में हम आज को संवारने की कोशिश में जुटे हैं। व्यक्तिगत पहलुओं पर विचार करें तो हमें पिछले कुछ वर्षों के दौरान मानसिक रूप युवा अधीर हुआ है जिसे सुनकर चिंता होती है। कवि कहता है कि ,ख़तरनाक होता है सपनों का मर जाना।लेकिन हमारे दौर में सपने ही मर रहे हैं। युवा इस वक़्त सभी की निगाह में है। सरकारें युवाओं के दम पर बन रही है। मगर यही युवा उपेक्षित है। छोटी परेशानियों में घिर कर आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहा है।
युवा वर्ग पर जरूरी चिंतन
इस नए साल में इसी युवा वर्ग पर चिंतन किया जाए तो कुछ राह निकल सकेगी। देश में युवाओं की आत्महत्या के ताजा आंकड़े बेहद डरावने हैं। समय-समय पर हमारे साकने आने वाली रिपोर्ट इस बात से आगाह करती है कि भारत में खुदकुशी करने वालों में सबसे ज्यादा युवा हैं। खबरें बताती हैं कियुवाओं की आत्महत्या की घटनाओं में 15 साल में 23 प्रतिशत का इजाफा हुआ। रिपोर्ट के मुताबिक, 2015 में एक लाख 33 हजार से ज्यादा लोगों ने खुदकुशी की, जबकि 2000 में ये आंकड़ा केवल एक लाख आठ हजार के करीब था। आत्महत्या करने वालों में 33 प्रतिशत की उम्र 30 से 45 साल के बीच थी, जबकि आत्महत्या करने वाले करीब 32 प्रतिशत लोगों की उम्र 18 साल से 30 साल के बीच थी।
इन युवाओं में भी खुदकुशी करने वालों में पुरुषों की गिनती महिलाओं से कहीं ज्यादा है। 2015 में 91,500 से ज्यादा पुरुषों ने खुदकुशी की। ये आंकड़ा खुदकुशी करने वालों के कुल आंकड़े का 68 प्रतिशत से भी ज्यादा है, जबकि खुदकुशी करने वाली महिलाओं की गिनती 42 हजार से कुछ ज्यादा रही। ये आंकड़ा खुदकुशी करने वालों की कुल गिनती का साढ़े 31 प्रतिशत है। तीन साल पहले के आंकड़ों के मुताबिक महाराष्ट्र राज्य में सबसे ज्यादा 1230 युवाओं ने आत्महत्या की थी, जो कुल आंकड़े 8934 का 14 प्रतिशत है। इसके बाद दूसरे नंबर पर तमिलनाडु 955 और तीसरे पर छत्तीसगढ़ 625 आता है। महाराष्ट्र और तमिलनाडु दो ऐसे राज्य हैं, जो आर्थिक रूप से संपन्न राज्यों की श्रेणी में आते हैं, जो आर्थिक प्रगति के दवाब को दिखाता है। इस आत्महत्या के पीछे कारण क्या है हम जानते हैं।युवाओं में आत्महत्या करने की बड़ी वजह बेरोजगारी है।बीते साल के पहले वाले साल में हुई आत्महत्या के कारणों पर नजर डालें तो परीक्षाओं में फेल होने के कारण 2646 लोगों ने आत्महत्या की थी। इसके अलावा प्रेम प्रसंग के कारण भी 4476 लोगों ने अपनी जिंदगी को खत्म कर लिया। बेरोजगारी के कारण देश में करीब 2723 और प्रोफेशनल जिंदगी में हताशा के चलते 1590 लोगों ने अपनी जीवन लीला को समाप्त कर लिया था।
युवाओं के हताश और निराश होने में परिवारों का भी दोष
युवाओं के हताश और निराश होने में परिवारों का भी दोष है। परिवार नामक संस्था विखंडित हो रही है। अब नाम मात्र के संयुक्त परिवार बचे हैं जिनमें तीन-चार पीढ़ियां एक साथ रहती हों और न ऐसे आदर्श एकल परिवार बचे हैं जिनके सदस्य सुखपूर्वक एकसाथ रहते हों।शहरों में दो पीढ़ी वाले एकल परिवार ही ज्यादा नजर आते हैं। इस एकल परिवार में भी समस्याएं बढ़ रही है। एकल परिवारों से माता-पिता भी परिवार से बेदखल हो रहे हैं। जिन्दगी व्यस्त होती जा रही है। नयी पीढ़ी के पास घर की ओर देखने का भी समय नहीं है। उत्तर आधुनिक भारत में एक नये समाज का उदय हो रहा है जो अपनी भौतिक, पेशागत और यौन महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए परंपरागत बंधनों को तोड़ रहा है। निजता, व्यक्तिगत पसंद को ज्यादा तरजीह दी जाने लगी है। निजी पसंद और निजता आज का खास मंत्र बन गई है। निजी स्वतंत्रता मिल जाने के परिणामस्वरूप परिवार के सदस्यों की व्यक्तिगत रूचि और नवीन आदर्शों का महत्व अधिक बढ़ गया है। परिवार एक औपचारिक संगठन बन कर रह गया है। पारिवारिक नियंत्रण कमजोर हुआ है। विवाह और व्यक्तिगत मामलों में अब स्वतंत्र निर्णय लिये जाने लगे हैं। सामाजिक मान्यता और मर्यादा से जकड़े संबंधों के दिन अब लदने लगे हैं। उभरते नये भारत का यह सबसे बड़ा स्याह पक्ष है।यानी समस्या की जड़ में कई समस्याएं हैं। इन समस्याओं पर हमें विचार करना होगा। चूंकि हम नया साल मना चुके हैं और इसमें कदम रखते हुए यह सोच रहे हैं कि हमें अपनी दिशा क्या रखना होगी तो हमें इस बारे में अवश्य विचार करना होगा कि हमारा युवा क्यों विमुख हो रहा है। भविष्य की नींव में अतीत के साथ वर्तमान का भी योगदान होता है। हमारा अतीत वैभवशाली है यह सोचकर ही हम संतुष्ट न हो जाएं और अपने वर्तमान को भी सुधारने का संकल्प लें। इस नए साल में अगर इस एक लक्ष्य को ही हम साध सके तो हमारा साल सौगातभरा साबित होगा।